
राम के विराट व्यक्तित्व की तरह निराला का भी व्यक्तित्व विराट है। राम केवल एक चक्रवर्ती राजा के पुत्र ही नहीं वरन् उनका व्यक्तित्व एक प्रजापालक, मर्यादित, आदर्शवादी, नैतिकता की […]

राम के विराट व्यक्तित्व की तरह निराला का भी व्यक्तित्व विराट है। राम केवल एक चक्रवर्ती राजा के पुत्र ही नहीं वरन् उनका व्यक्तित्व एक प्रजापालक, मर्यादित, आदर्शवादी, नैतिकता की […]

भारत के विविध भाषा के साहित्य की भांति असमीया साहित्य भी प्राचीन इतिहास से समृद्ध है। असमीया साहित्य की इतिहास रचयिताओं ने इस इतिहास को मूल रूप से प्राचीन युग, […]

साहित्य के आदि चरित्र और भारतीय संस्कृति के प्रतीक पुरुष के रूप में राम प्रत्येक देश, काल व परिस्थिति में आदर्श नायक के रूप में प्रतिष्ठित हैं। धर्म और अधर्म […]

भवभूति संस्कृत के श्रेष्ठ नाटककार हैं। कालिदास के नाटकों में समतुल्य भवभूती के नाटक माने जाते हैं। भवभूति विदर्भ के पद्मपूर नामक स्थान के निवासी थे। भवभूति ने भट्टश्रीकंठ पछलांछती […]

शोध सार – भक्ति परम्परा का विकास प्राचीनकाल से ही आरम्भ हो गया था। राम भक्त कवियों ने अपनी मधुर वाणी के द्वारा जनसाधारण के हृदय में राम भक्ति का […]

तुलसी साहित्य में केवल रामकथाओं एवं रामस्तुति, ही प्रमुख है। सर्वाधिक प्रचलित रामचरितमानस के अतिरिक्त तुलसी साहित्य में विनय पत्रिका, गीतावली एवं दोहावली ही जनसाधारण के प्रचलन में है। शेष […]

‘रमंति इति रामः’; जो रोम रोम में रम रहा है और समूचे ब्रह्मांड में व्याप्त है; वही राम है। अमरकोश में ‘राम का एक अर्थ मनोज्ञ: भी किया गया है’[1] […]

राम शब्द का उच्चारण होते ही एक बिम्ब सामने उभर आता है । एक धनुर्धारी, सौम्य मनमोहक मुस्कान लिए अद्वितीय रूप । एक ऐसा चरित्र जो मर्यादा पुरुषोत्तम है, लोकमंगलकारी […]

सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला जी हिन्दी साहित्य के दैदीप्यमान नक्षत्र हैं, उन्होंने अपनी प्रत्येक रचना में अपनी नवोन्मेषशालिनी प्रतिभा का परिचय दिया है। निराला जी का रचनाकाल सामान्यतः 1916 से 1960 […]

जिसे हम साहित्य समझकर पढ़ रहे हैं, जिसमें हम तमाम साहित्यिक अवधारणाएँ खोजते हुए फिरते हैं, जो साहित्य जगत में एवं साहित्य के सजग पाठकों के लिए एक उत्कृष्ट रचना […]