आरंभिक मध्यकालीन भारत में वैधीकरण के पहलू- आरंभिक कदंब राजवंश के विशेष संदर्भ में* – योगेन्द्र दायमा

हाल के दशकों में राज्यव्यवस्थाओं का वैधीकरण इतिहासकारों के मध्य विशेष रूचि का विषय बनकर उभरा है। इस रुचि की नींव इस एहसास में जमी है कि राज्यव्यवस्थाओं का अस्तित्व […]

आँसू: विरह की मार्मिक अभिव्यक्ति – डॉ. ममता सिंगला

‘आँसू’ छायावादी काव्य का ऐसा कीर्तिमय स्तम्भ है जिसमें प्रसाद जी ने अपने विरही मन की वेदना को विराट रूप में प्रकट किया है। यह ’प्रसाद के संसारी प्रेम व्यापार […]

मानवीय मूल्यों के विघटन का दस्तावेज: चीफ की दावत – दीपक जायसवाल

कहानी समृद्ध और लोकप्रिय विधा है। यह ‘छोटे मुँह बड़ी बात करती है।’ यह अपने कलेवर में पूरी दुनिया समेटने की शक्ति रखती है। मानवीय संवेदनाओं के स्वरूप और विकास […]

बौद्ध ग्रंथों में चित्रित नालंदा विश्वविद्यालय – अंशु कुमारी                                                                        

नालन्दा पटना से दक्षिण की ओर लगभग 50 मील की दूरी पर है। अत्यन्त प्राचीनकाल से यह बौद्ध धर्म का केन्द्र था, क्योंकि बुद्ध के मुख्य शिष्य सारिपुत्र का जन्म […]

दिनकर के साहित्य में राष्ट्रधर्मी स्वर – डॉ. माला मिश्र

भारतवर्ष की उन्नति और प्रगति वैश्विक परिप्रेक्ष्य में आत्मसम्मान का आधार है । इसकी पृष्ठभूमि में भारत के दीर्घकालीन अनुभव प्रसूत ज्ञान भण्डार का विशेष योगदान है । राष्ट्रीयता का […]