तुलसी की नारी चेतना – रश्‍मि‍ पाण्‍डेय / डॉ. सुशीला लड्ढा / डॉ. सुनील ति‍वारी

तुलसी की नारी संबंधी भावना उनके दार्शनि‍क मतवाद पर आधारि‍त थी। उन्‍होंने शंकराचार्य के समान माया का केवल अवि‍धारूप ही नहीं देखा था वरन् उसका दूसरा पक्ष जो जगत को […]

स्वयं प्रकाश की लोककथात्मक कहानियों में जनपक्षधरता – बीरज पाण्डेय

प्रत्येक भाषा का अपना साहित्य होता है जो लोक कथाओं, लोक गीतों, मुहावरों व कहावतों तथा समसामयिक सृजन के रूप में विद्यमान रहता है। इनमें लोक कथाओं की अपनी विशिष्ट […]

दक्षिण कोरिया में हिन्दी : एक सिंहावलोकन – द्विवेदी आनन्द प्रकाश शर्मा 

भूमिका वैश्वीकरण की वजह से विदेशी भाषाओं को सीखने की माँग बढ़ी हैl उभरते हुए विशाल बाज़ार के रूप में भारत विश्व का ध्यान आकर्षित कर रहा हैl भारतीय अर्थव्यवस्था […]

मुक्तिबोध की रचनाएँ: परिपूर्ण क्षणों की अपूर्ण अभिव्यक्तियाँ – सौरभ कुमार यादव

मुक्तिबोध, हिंदी साहित्य के क्षेत्र में एक ऐसा नाम है, जिसका लोहा हर कोई मानता है या कहिये कि हर किसी को मानना पड़ता है। कविता, कहानी, आलोचना हर क्षेत्र […]

गांधी और स्त्री सम्बन्धी सवाल – डॉ. संजीव कुमार तिवारी

भारतीय सन्दर्भ में आधुनिकता पर विचार प्रारंभ करते ही नारी विषयक चिंतन की भूमिका महत्त्वपूर्ण हो जाती है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के विचार के केन्द्र में जो स्वराज, स्वतंत्रता, स्वावलम्बन […]

स्‍वातंत्र्योत्‍तर हिंदी उपन्‍यास : स्‍त्री आकांक्षा, मुक्‍ति‍ एवं वि‍द्रोह का स्‍वर – रजनी पांडेय / डॉ. सुशीला लड्ढा / डॉ. सुनील ति‍वारी

भारतीय समाज में परि‍वर्तन की प्रक्रि‍या वि‍द्यमान है। नारी की दशा एवं दि‍शा में परि‍वर्तन कोई अचानक उत्‍पन्‍न  अवधारणा नहीं बल्‍कि‍ एक लंबे संघर्ष का परि‍णाम है। आजादी से पूर्व […]

हिंदी सिनेमा और गीत-संगीत : अटूट पहचान – डॉ. माला मिश्रा

भारत एक ऐसा देश है जहाँ दुनिया में सबसे ज्यादा फिल्मों का निर्माण होता है। बंबइया फिल्में जिन्हें बॉलीवुड कहा जाता है। भारतीय सिनेमा बाजार को करीब ढाई अरब अमेरिकी […]

लोकगीतों में स्त्री की दशा एवं दिशा – साक्षी सिंह

(अवधी लोकगीतों के विशेष सन्दर्भ में)  लोक, अर्थात किसी क्षेत्र विशेष के निवासी एवं उनकी जीवन शैली, जिस पर कि उस क्षेत्र की ऐतिहासिक, भौगोलिक एवं परंपरागत विशेषताओं का प्रभाव […]

शरद सिंह के उपन्यास ‘पिछले पन्ने की औरतें‘ में उपेक्षित आदिवासी समाज का चित्रण – रक्षा रानी

समाज का वह वर्ग जो अपने अधिकारों से वंचित रहा हो और शोषण का शिकार होता है, वह आदिवासी वर्ग है। इस वर्ग को समाज में न तो स्वीकार किया […]

निरंतर प्रक्रिया के कवि : मुक्तिबोध – डॉ.पंढरीनाथ शिवदास पाटिल

अशोक वाजपेयी कहते हैं कि “मुक्तिबोध परिणति के नहीं, अशोका निरन्तर प्रकिया के कवि हैं।”” मैं इसको अपने ढंग से इस तरह कहूँगा- मुक्तिबोध परिणति के उद्देश्य से बाध्य होनेवाले […]