
तुलसी की नारी संबंधी भावना उनके दार्शनिक मतवाद पर आधारित थी। उन्होंने शंकराचार्य के समान माया का केवल अविधारूप ही नहीं देखा था वरन् उसका दूसरा पक्ष जो जगत को […]

तुलसी की नारी संबंधी भावना उनके दार्शनिक मतवाद पर आधारित थी। उन्होंने शंकराचार्य के समान माया का केवल अविधारूप ही नहीं देखा था वरन् उसका दूसरा पक्ष जो जगत को […]

प्रत्येक भाषा का अपना साहित्य होता है जो लोक कथाओं, लोक गीतों, मुहावरों व कहावतों तथा समसामयिक सृजन के रूप में विद्यमान रहता है। इनमें लोक कथाओं की अपनी विशिष्ट […]

भूमिका वैश्वीकरण की वजह से विदेशी भाषाओं को सीखने की माँग बढ़ी हैl उभरते हुए विशाल बाज़ार के रूप में भारत विश्व का ध्यान आकर्षित कर रहा हैl भारतीय अर्थव्यवस्था […]

मुक्तिबोध, हिंदी साहित्य के क्षेत्र में एक ऐसा नाम है, जिसका लोहा हर कोई मानता है या कहिये कि हर किसी को मानना पड़ता है। कविता, कहानी, आलोचना हर क्षेत्र […]

भारतीय सन्दर्भ में आधुनिकता पर विचार प्रारंभ करते ही नारी विषयक चिंतन की भूमिका महत्त्वपूर्ण हो जाती है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के विचार के केन्द्र में जो स्वराज, स्वतंत्रता, स्वावलम्बन […]

भारतीय समाज में परिवर्तन की प्रक्रिया विद्यमान है। नारी की दशा एवं दिशा में परिवर्तन कोई अचानक उत्पन्न अवधारणा नहीं बल्कि एक लंबे संघर्ष का परिणाम है। आजादी से पूर्व […]

भारत एक ऐसा देश है जहाँ दुनिया में सबसे ज्यादा फिल्मों का निर्माण होता है। बंबइया फिल्में जिन्हें बॉलीवुड कहा जाता है। भारतीय सिनेमा बाजार को करीब ढाई अरब अमेरिकी […]

(अवधी लोकगीतों के विशेष सन्दर्भ में) लोक, अर्थात किसी क्षेत्र विशेष के निवासी एवं उनकी जीवन शैली, जिस पर कि उस क्षेत्र की ऐतिहासिक, भौगोलिक एवं परंपरागत विशेषताओं का प्रभाव […]

समाज का वह वर्ग जो अपने अधिकारों से वंचित रहा हो और शोषण का शिकार होता है, वह आदिवासी वर्ग है। इस वर्ग को समाज में न तो स्वीकार किया […]

अशोक वाजपेयी कहते हैं कि “मुक्तिबोध परिणति के नहीं, अशोका निरन्तर प्रकिया के कवि हैं।”” मैं इसको अपने ढंग से इस तरह कहूँगा- मुक्तिबोध परिणति के उद्देश्य से बाध्य होनेवाले […]