हिंदू-मुस्लिम सौहार्द के विलक्षण पैरोकार काजी नज़रुल इस्लाम – शैलेन्द्र चौहान

हिंदू-मुस्लिम सौहार्द के विलक्षण पैरोकार और महत् आकांक्षी बांग्ला कवि-लेखक काजी नज़रुल इस्लाम आधुनिक बांग्ला काव्य एवं संगीत के इतिहास में निस्संदेह एक युग प्रवर्तक थे। प्रथम महायुद्ध के उपरांत […]

कस्बों की ज़िंदगी की ओर लौटता हिंदी सिनेमा – डॉ. मुनीश कुमार शर्मा

हिंदी सिनेमा ने सौ साल के सफर में व्यक्ति समाज से जुड़े भावों, सम्वेदनाओं, प्रेम, हिंसा, भक्ति, चरित्र, सौन्दर्य और ना जाने कितने ही रंगों को रजत पटल पर उकेरकर […]

मैथिली सिनेमा की यात्रा – प्रतिभा झा

भारतीय सिनेमा पूरी विश्व में जाना जाता है। पिछले दो दशकों में भारतीय सिनेमा में क्षेत्रीय फ़िल्मों की तादाद बढ़ी है। भूमंडलीकरण के साथ आई नई तकनीकी, सिनेमाघर और कला […]

स्वतन्त्रता आन्दोलन में हिन्दी सिनेमा का योगदान – डॉ. चंद्रकला      

आज़ादी की लड़ाई कोई एक आयामी नहीं थी। देश में छोटे से बड़े सभी स्तरों पर व्यक्तियों, संस्थानों और साहित्य के माध्यम से सभी अपना अक्षुण्ण योगदान दे रहे थे। […]

प्रधानमंत्री के नाम ख़त – दुर्ग विजय चन्द

माननीय प्रधानमंत्री जी, भारत सरकार, आप देश को विकास के पथ पर ले जाने का संकल्प दोहनराते हैं, सबका साथ, सबका विश्वास एवं सबका विकास। श्रीमान प्रधानमंत्री जी, जिस प्रकार […]

भारतीय सिनेमा : नशे का शिकार युवा वर्ग (सन्दर्भ उड़ता पंजाब, राधे – योर मोस्ट वांटेड भाई) – मीनाक्षी गिरी 

सिनेमा मूक फिल्मों से होता हुआ श्वेत श्याम और रंगीन व थ्री डी तक आ पहुंचा है जिसमें मनोरंजन से होता हुआ सिनेमा विचारात्मक या प्रतिरोध का रूप ले चुका […]

समकालीन मलयालम सिनेमा और स्त्री – विनीजा विजयन

साहित्य को समाज का दर्पण माना गया है, ठीक उसी तरह सिनेमा समाज का चित्रण करने वाला तकनीकी कलारूप है। देश के इतिहास निर्माण में सिनेमा का भी बड़ा योगदान […]

समाज को प्रभावित करता सिनेमा मनोविज्ञान – डॉ. प्रेरणा चतुर्वेदी

सिनेमा वर्तमान युग में समस्त कलात्मक अभिव्यक्ति के माध्यमों में सबसे सशक्त माध्यम बनकर उभरा है। किसी भी जाति, धर्म, वर्ग के लोगों को सीधे प्रभावित करने में यह पूर्णतया […]

फिल्म चाहे जिस भाषा का क्यों न हो उसमें साहित्य दिखना चाहिए – दिलीप कुमार शर्मा ‘अज्ञात’ 

बंगाली फिल्मों के बारे में कुछ कहने से पहले मैं समझता हूँ, एक बार बांग्ला साहित्य के बारे में बात कर लेनी चाहिए। बांग्ला भाषा और साहित्य का काल विभाजन […]

सिनेमाई परदे पर उभरता सामाजिक मूल्यों का रीमेक – डॉ. नीतू गुप्ता

समस्त प्रकृति परिवर्तनशील है। यदि इसमें समय-समय पर परिवर्तन ना हों तो इसकी एकरूपता, नीरसता बनकर रह जाएगी। प्रकृति के साथ साथ परिवर्तन का यह नियम समाज और सामजिक मूल्यों […]