
सामान्यतः सामाजिक से हमारा तात्पर्य किसी देश एवं काल विशेष से संबंधित मानव समाज में अभिव्यक्त परिवर्तनशील जागृति से होता है। इसका उद्भव सामाजिक अन्याय, अनीति, दुराचार, शोषण की प्रक्रिया […]
सामान्यतः सामाजिक से हमारा तात्पर्य किसी देश एवं काल विशेष से संबंधित मानव समाज में अभिव्यक्त परिवर्तनशील जागृति से होता है। इसका उद्भव सामाजिक अन्याय, अनीति, दुराचार, शोषण की प्रक्रिया […]
संपादकीय – डॉ. आलोक रंजन पांडेय बातों-बातों में हबीब तनवीर के संदर्भ में कपिल तिवारी से ऋतु रानी की बात-चीत शोधार्थी पाठकों से संवाद करती स्वयंप्रकाश की कहानियाँ : डॉ.शशांक […]
आधुनिक संपादन कला के वैशिष्ट्य के लिए जिन बिंदुओं की महत्त्वपूर्ण माना जाता है, उस वैज्ञानिक आधार की पृष्ठभूमि शिव पूजन सहाय द्वारा संचालित ‘हिमालय’ में उस समय देखा जा […]
साहित्य को समाज का दर्पण कहा जाता है। साहित्य एक-दूसरे के दुःख में दुःखी होना और एक-दूसरे के सुख में सुखी होना सिखाता है। वह संपूर्ण मनुष्य का कल्याण हो […]
हिन्दी सिनेमा का आरम्भ पारसी थिएटर की देन है। उन्नीसवीं शताब्दी के अंतिम दशक में महाराष्ट्र और गुजरात में पारसी थिएटर का जन्म माना जाता है। इसके आरंभिक रंगकर्मियों में […]
आदि मानव की विकास परम्परा का आधार मूलभूत आवश्यकता के अतिरिक्त भाषा भी मुख्य आधार रहा है । क्योंकि भाषा ही वह माध्यम है जिसके द्वारा एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति […]
ईषावास्यमिदं सर्व यत्किंचित जगत्यां जगत। तेन त्यक्तेन भुन्जीथा मा गृधः कस्यस्विद्धनम्।। -इषोपनिशद् मंत्र ईश्वर ने उपहार स्वरूप प्रकृति की समस्त वस्तु उपभोग के लिए संसार के सभी मनुष्यों को प्रदान […]
भारतीय संस्कृति में अहिंसा को सबसे बड़ा धर्म स्वीकार किया गया । मानवीय सभ्यता के मूल में अहिंसा की भूमिका सबसे अहम है । वैसे तो वैदिक ग्रंथों में अहिंसा […]
सारांश : सूरदास कृष्णकाव्यधारा के अप्रतिम कवि हैं। उनके पदों की विरहानुभूति मार्मिक, सहज और प्रभावी हैं। यह प्रेम का दर्पण है। प्रेम ऐसा भाव है जिससे कोई भी अछूता […]