आदि मानव की विकास परम्परा का आधार मूलभूत आवश्यकता के अतिरिक्त भाषा भी मुख्य आधार रहा है । क्योंकि भाषा ही वह माध्यम है जिसके द्वारा एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति तक अपने विचारों को पूर्णतया प्रेषित करने मे सक्षम होता है इसलिए हमें अपने विचारों को ऐसी भाषा में दूसरों तक पहुँचाना चाहिए जो भाषा सरल और स्पष्ट हो । भाषा के माध्यम से ही हम राष्ट्र को आपस में जोड सकते हैं, संस्कृति और समाज को संगठित रूप में देख सकते हैं। अतः हमेशा से ही भाषा का मानव समाज और संस्कृति से बहुत गहरा संबंध रहा है । भाषा का प्रयोग मुख्यतः दो रूपों में किया जा सकता है ।

प्रथम वर्ग में भाषा का वह रूप आता है जिसमें मनुष्य को रस और सौंदर्य की अनुभूति होती है । जिसमें कविता, कहानी, नाटक, उपन्यास आदि साहित्यिक विधाओं का सृजन होता है और दूसरा वर्ग वह है जिसमें मनुष्य की बोली जाने वाली भाषा और साहित्य से भिन्न प्रयोजनों की भाषा को रखा जा सकता है जिसमें कामकाज, लोक व्यवहार और बाजार आदि की भाषा होती है !

हिंदी के लोक व्यवहार की बात करें तो हिंदी का व्यवहार आज पूरे देश में किसी न किसी रूप में हो रहा है । उसका जन आधार उसकी लोक प्रियता है ।

देश के विभिन्न भाषा भाषियों के बीच आपसी संपर्क के रूप में हिंदी ने काफी प्रगति की है । केवल कथन श्रवण तक ही नहीं बल्कि जीवन के विभिन्न क्षेत्रों की आवश्यकता अनुसार जनसामान्य के बीच आपसी व्यवहार के रूप में यह समादृत हुई है । इसके पीछे हिंदी सहजता, सरलता और सुगमता आदि गुणों का विशेष योगदान है । देश को भावनात्मक रूप से संगठित और जनमानस में आत्मसम्मान तथा आत्मनिर्भरता को भावना जागृत करने में भी हिंदी का महत्वपूर्ण योगदान है ।

लोक व्यवहार में हिंदी इतनी प्रचलित है कि पूरब-पश्चिम, उत्तर-दक्षिण के धार्मिक सांस्कृतिक केन्द्रों, धामों, मंदिरों, मठों, को जोडने तथा कला कौशल, स्थापत्य, चित्र एवं मूर्ति आदि कलाओं से परिचित कराना और विभिन्न जीवन शैलियों, विचारों एवं चिन्तनों को एक दूसरे तक पहुँचाने में मदद की है । अपने वैशिष्य के कारण ही हिंदी दक्षिण से उत्तर सबकों जोडने का कार्य करती है । सर्वग्राहकता के गुण ने हिंदी को जाति, धर्म और प्रांत से ऊपर उठकर संपर्क भाषा के आसन पर विराजमान किया है ।

मध्यकालीन सांस्कृतिक आंदोलन के सूत्रधार बंगाल, गुजरात, महाराष्ट्र, पंजाब आँध्रप्रदेश आदि विभिन्न क्षेत्रों के रहने वाले थे । इन सभी लोगों ने हिंदी के माध्यम से ही अपने विचार जनता के सामने रखे । गुरू गोरखनाथ ने हिंदी भाषा में अपना संदेश प्रचारित प्रसारित  किया । गुरूनानक ने जनसामान्य तक अपनी बात पहुँचाने के लिए पंजाबी के अतिरिक्त सधुक्कडी और ब्रजभाषा को माध्यम बनाया । गुरू अमरदास, गुरू रामदास ने अपना संदेश पंजाब से बाहर पहॅुचाने के लिए सबकी समझ में आने वाली भाषा की आवश्यकता महसूस  की । यहाँ यह धातव्य है कि बोधगम्यता में हिंदी की कोई बराबरी नहीं है ।

स्वाधीनता आंदोलन की बात करें तो स्वाधीनता आंदोलन की सफलता के लिए यह आवश्यक था कि उसे सार्वदेशिक बनाया जाये क्योंकि सन 1857 के प्रथम संघर्ष में हमें इसलिए असफल होना पडा क्योंकि वह संघर्ष अखिल भारतीय नहीं हो सका । उस प्रथम स्वाधीनता संग्राम को अखिल भारतीय नहीं बनाये जा सकने के अनेक कारणों में से एक कारण राष्ट्रव्यापी भाषा का अभाव भी था । एक अखिल भारतीय भाषा के अभाव में संपूर्ण देश को जोडकर नहीं रखा जा सका और वह आंदोलन मात्र हिंदी प्रदेशों तक ही सीमित होकर रह गया । स्वाधीनता संग्राम असफल जरूर हुआ लेकिन यह सिखा गया कि जब तक अखिल भारतीय स्तर पर संगठित नहीं होंगे तब तक देश को आजादी मिलना नामुमकिन है । इसलिए यह आवश्यक समझा गया कि विभिन्न भाषा भाषियों के बीच एक संपर्क भाषा ही, राष्ट्रव्यापी भाषा हो ताकि येाजनाओं का सही क्रियान्वयन हो सके और संपूर्ण देश को जोडकर एक साथ रखा जा सके । यद्यपि उस समय अखिल भारतीय स्तर पर संस्कृत और अंग्रेजी जैसी भाषाएं व्याप्त थी लेकिन इनमें से कोई भी ऐसी भाषा नहीं थी जो जनभाषा बन सके, लोक व्यवहार की भाषा बन सके । सरलता, सहजता, स्वाभाविकता और बोलने वालों की संख्या के आधार पर हिंदी को ही राष्ट्रभाषा और संपर्क भाषा के रूप में अपनाने पर सभी की सहमति बनी ।

वर्तमान समय मीडिया का युग है । मीडिया आज के समय में हर व्यक्ति पर छायाा हुआ है । चाहे वह कोई आम व्यक्ति हो या फिर खास । मीडिया को अगर व्यापक अर्थों में समझा जाये और हिंदी भाषा से उसके संबंध को आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक व्यवहार के संदर्भ में देखा जाये तो बहुत से ऐसे पक्ष उजागर होने लगते हैं जो सामान्यतः छुपे ही रहते हैं । अगर हम हिंदी की बात करें तो यह निर्विवाद है कि खडी बोली ही आज की हिंदी है । खडी बोली के अतिरिक्त जो भी भाषा-उपभाषा-बोली रूप हैं वे सभी या तो पुरातात्विक महत्व के होकर रह गये हैं या फिर आंचलिक स्तर की आम बोलचाल की भाषा के रूप में सिमटकर रह गये ।

अवधी, मगही, ब्रज, मालवी, भोजपुरी, गढवाली, कुमाउंनी, मारवाडी आदि सभी भाषा- बोलियाँ खडी बोली के वर्चस्व को स्वीकार कर चुकी हैं और सभी हिंदी भाषी क्षेत्र भी खडी बोली को साहित्य और कामकाज की भाषा के रूप में स्वीकार कर चुके हैं । भारत में हिंदी मीडिया की भाषा है, पत्र-पत्रिकाओं की भी और टेलीविजन की भी । संपूर्ण भारत और भारत के बाहर हिंदी के प्रचार-प्रसार का क्षेत्र कुछ समय पूर्व तक हिंदी सिनेमों को दिया जाता था, पर आज इस कार्य को मंनोरंजन चैनल, समाचार चैनल, खेल चैनल और कई धार्मिक चैनल जिस गति से आगे बढा रहे है वह सचमुच आश्चर्यजनक है । मात्र डेढ सौ वर्षों में दिल्ली-मेरठ के क्षेत्र से निकल कर कोई भाषा करोडों लोगों की भाषा बन जाएगी , यह अकल्पनीय सा लगता है, मगर हुआ यही है । दुनिया में शायद ही किसी भाषा का इतना तीव्र विकास और व्यापक फैलाव हुआ होगा ।

आज समूचा भारतीय समाज राजनीतिक सहित बाजार की ताकतों के रहमोकरम पर हैं । ये ताकतें देशी विदेशी दोनों तरह की हैं । अगर किसी भी देशी-विदेशी कंपनी को अपना उत्पाद बााजर में उतारना होता है तो उसकी पहली नजर ऐसी भाषा पर पडती है जो आमजन में प्रचलित हो, लोक-व्यवहार की भाषा हो और जिसका क्षेत्र भी विस्तृत हो । इन सभी शर्तों को हिंदी भाषा ही पूर्ण करती है । इसलिए उनका विज्ञापन कर्म भी हिंदी में ही अधिक होता है । हिंदी के मनोरंजन चैनलों और समाचार चैनलों की दुनिया हिंदी विज्ञापनों की दुनिया तो है ही, अंग्रेजी चैनलों में भी हिंदी भाषा के विज्ञापन बडे पैमाने पर दिखाये जाते हैं । जैसै-जैसे ये गतिविधियाँ बढ रही हैं हिंदी भाषाई क्षेत्र का विस्तार हो रहा है । हिंदी का यह प्रचार-प्रसार दिनोंदिन मजबूत होता जा रहा है । इस प्रकार मीडिया के सहयोग से हिंदी को बढावा मिल रहा है । बाजार और वैश्वीकरण के दबावों ने हिंदी को जरूरत और मांग के अनुकूल ढालने में बडी भूमिका निभाई है ।

कम्प्यूटर और इंटरनेट जैसी सूचना तकनीक ने भी हिंदी को बहुत कुछ दिया है मगर यही हिंदी या तो सीधे अंग्रेजी शब्द और मुहावरे अपना रही है या फिर सीधे अंग्रेजी को स्थान देकर स्वयं हट रही है । फिर भी हिंदी सरल हो रही है फैल रही है । बहुत से हिंदी प्रेमी इस बात से प्रसन्न हैं कि चाहे जैसे हो लेकिन हिंदी फल-फूल रही है, समृद्ध हो रही है । मगर सभी विचारक इसे हिंदी के लिए अच्छा नहीं मानते हैं । बहुत से हिंदी विद्वान इसे नकली विस्तार और विकास मानते हैं, जो तभी तक है जब तक हिंदी व्यापार और व्यवसाय के लिए जरूरी बनी हुई है । आज तेजी से विकसित होती अर्थव्यवस्था वैश्वीकरण और उदासीकरण ने हिंदी के विकास में अहम भूमिका निभाई है । उदासीकरण ने हिंदी को बाजार की भाषा बनाया क्योंकि विश्व के पूँजीपति देशों की व्यावयसायिक दृष्टि भारत को एक बडे बाजार के रूप में देखती है और बाजार में मुनाफे के लिए हिंदी को बाजार की भाषा बनाया । हिंदी के विस्तार का यही सबसे बडा व्यावसायिक कारण है । पिज्जा हो बर्गर, बेचने के लिए हिंदी विज्ञापन का ही सहारा लेना पडता है । हिंदी के विस्तार और उसे लोकप्रिय बनाने में हिंदी फिल्मों का बहुत बडा योगदान है । अब तो विदेशी फिल्में चाहे वे अंग्रेज, चीनी, जापनी या फ्रेंच किसी भी भाषा में हो उन फिल्मों को हिंदी भाषा में डब करके भारत में प्रस्तुत किया जाने लगा है । सभी प्रकार के टी.वी. कार्यक्रमों में हिंदी का बोलबाला है अर्थात टी.आर.पी बढाने के लिए हिंदी धारावाहिक बनाते हैं । टी.वी. के साथ-साथ रेडियों में भी हिंदी भाषा का बोलबाला है । आज भी भारत में रेडियों सुनने वालों की कमीं नहीं है क्योंकि आज के समय में भी गाँवों में जहाँ बिजली और अखबार नहीं पहॅुंच पा रहे हैं वहाँ सूचना और मनोरंजन का एक मात्र साधन रेडियों है और वैसे भी रेडियों की भाषा भी लोक व्यवहार की, आमजन की भाषा होती है जिसे गाँव का अनपढ व्यक्ति भी आसानी से समझ लेता है ।

हिंदी का लोक व्यवहार इतना विस्तृत भू-भाग तक फैला हुआ है कि आज के समय में भी अधिकांश समाचार पत्र हिंदी के ही प्रकाशित होते हैं । क्योंकि हिंदी भाषी समाज बहुत विस्तृत समाज है । और आज के समय में भी भारत में हिंदी बोलने वाले ही अधिक मिलते  हैं । इस तरह कहा जा सकता है कि निसंदेह हिंदी विकसित हुई है लेकिन बाजर तथा संचार के कारण हिंदी बोलने वाले बढे हैं किन्तु पढने वालों की संख्या में गिरावट आई है । लागों का मानना है कि हिंदी में रोजगार की संख्या बढी है लेकिन स्थिति वह नहीं है जो अंग्रेजी की है । इसी प्रकार चिकित्सा, विज्ञान, तकनीकी उच्च शिक्षा जो प्रत्यक्ष रूप से रोजगार और व्यवसाय से जुडी हुई है, केवल अंग्रेजी में ही उपलब्ध है । भाषा बेशक व्यक्ति के भाव और सहज विश्वास से जुडी हुई होती है अतः उससे लगाव स्वाभाविक है, लेकिन व्यावहारिक स्तर पर यह निर्भर करता है कि हमें क्या और कितना हासिल हुआ है । यही कारण कि आज हर व्यक्ति जो सत्ता के केन्द्र में पहुँचना चाहता है, उसे हिंदी का ज्ञान होना आवश्यक हो गया है, वह भी हर हाल में हिंदी सीखना चाहता क्योंकि हिंदी आमजन की भाषा है, लोक व्यवहार की भाषा है और आम जनता के वोट जुटाने के लिए उनकी भाषा में ही बात करना आवश्यक होता है ।

हिंदी आज संसार की सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं में से एक है । उसका स्वरूप भारत में ही नहीं, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी विकसित हुआ है । एशिया ही नहीं यूरोप और अमेरिका जेसी जगहों में भी हिंदी बोलने और समझने वाले लाग हैं प्रायः कहा जाता है कि आने वाले समय में वही भाषाएं जीवित रहेंगी, जो बाजार की भाषाएं होंगी । इस कसौटी पर हिंदी दुनिया के सबसे बडे बाजार की भाषा है । अतः उसका भविष्य सुरक्षित है ।

संदर्भ ग्रंथ – 

1. भाषा, साहित्य, और संस्कृति, डॉ. मुकेश अग्रवाल, पृ. 163

2.  हिंदी भाषा, डॉ. भोलानाथ तिवारी, पृ. 85

3. राजभाषा हिंदी : प्रसंग और संदर्भ, संपादक : कृष्ण लाल अरोड़ा, पृ. 15-16

4. वर्तमान संदर्भ में हिंदी, डॉ. मुकेश अग्रवाल, पृ. 113

5. वर्तमान संदर्भ में हिंदी, डॉ. मुकेश अग्रवाल, पृ. 59

 

डॉ. ममता सिंगला
एसोसिएट प्रोफेसर, हिंदी विभाग
भगिनी निवेदिता कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय

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