1. चिंता की लकीरें 

हर तरफ़ छाया हुआ है घुप अंधेरा,
खौफ़नाक मंजर ने बनाया घनेरा।
माथे पे मेरे खिंची चिंता की लकीरें,
तम से ढका दिनमान हो न सवेरा।।

राह चलते हुए अब लगता है डर,
इंसानियत पर हर जगह है कहर।
इंसान घुट घुट कर बस! जी रहा,
आतंक का माहौल है हर शहर।।

सुनसान सड़कों पर न आवाजाही,
अनजान सा इक खौफ़ की गवाही।
महिलाओं के चेहरे पर डर समाया,
घर से बाहर लगे काली सी स्याही।।

लोकतंत्र का पहरा हुआ कमजोर है,
बस! दिखावे का ही महज़ शोर है।
चीत्कार न ही सुनाई देते अब उन्हें,
सत्ता के लिए वोट पर बस जोर है।।

हमारे मस्तिष्क में अंकित चिंता यही,
कब क्या हो जाए समाज में भी कहीं।
लूटखसूट व बेईमानी का है बोलबाला,
इस तंत्र का ढांचा अब कैसे हो सही।।

2. मेरा गाँव तेरा शहर 

मेरे गाँव वाले बहुत ही भोले भाले सच्चे हैं,
चालाकी होशियारी में अभी बहुत बच्चे हैं।
प्रेम व इंसानियत पर गाँव के लोग देते जोर,
दिल के बड़े, मकान भले छोटे व कच्चे हैं।।

दो चार गाँवों में सब लोग मुझे पहचानते हैं,
तेरे शहर में बगल में न किसी को जानते हैं।
शहर में खुली हवा पाने को तरसते हैं लोग,
हम अपने गाँव के मैदान में जी भर दौड़ते हैं।।

शहर में बड़ी बड़ी कोठियां व लग्जरी कार है,
गाँव में मेरे बड़ा सा साथ में रहता परिवार है।
दादा दादी चाचा चाची के संग रहते मस्ती में,
हम गाँव में बड़ो से पाते सद्गुण व संस्कार हैं।।

हर ख़ुशी व ग़म में मिल जुल के साथ रहते हैं,
शाम चौबारे पर जुट मन की व्यथा कहते हैं।
शहर में दर्द से सड़क पर कराहता रहता कोई,
वीडियो बनाकर फेसबुक पर शेयर करते हैं।।

हमें देहाती न समझों कि गाँव से आएँ हुए हैं,
तुम्हारे बड़े बड़े शहर हमने ही बसाएं हुए हैं।
वीरान हो जाएंगे तेरे ये शहर व बड़े बड़े माल,
गाँव के लोग ही शहर की रौनक बढ़ाएं हुए हैं।।

3. बेटियों का करें सम्मान 

बेटियों को उड़ने के लिए दें अब खुला आसमान,
उन्हें बनाने दो ख़ुद एक अलग अनूठी पहचान।
कब तलक पिता भाई के सहारे ही चलती रहेंगी,
बेटियों को भी लगाने दो लक्ष्य पर सही निशान।।

हर क्षेत्र में बेटियाँ सितारा बनअब चमक रहीं हैं,
साइना, सिंधू, मैरीकॉम जैसी बन निखर रहीं हैं।
कल्पना चावला बनकर नील गगन में उड़ने दो,
रणक्षेत्र में भी कौशल से चमक बिखेर रहीं हैं।।

घर में बेटियों के रहने से आँगन ख़ूब महकता है,
बेटियों से ही घर का हर कोना कोना चहकता है।
बेटियाँ ही बनती हैं माँ बहन बहुएं हमारे घर की,
बेटी से पिता के कन्यादान का सपना सजता है।।

बेटों की तरह ही बेटियों की करनी चाहिए परवाह,
बेटियों से भी पूछनी चाहिए उनकी इच्छा व चाह।
बेटा बेटी में विभेद अब अवश्य खत्म होना चाहिए,
बेटियों को सुख सुविधा देकर बनाने दो अब राह।।

कुछ नर भेड़िए करते हैं बहन बेटियों का अपमान,
वो अपने घर में भी न देते होंगे बेटी को सम्मान।
ऐसे मानसिकता वालों को सरे आम मारो गोली,
जिससे ऐसे दानव भी सीखें बेटी का करना मान।।

अपनी उन्नति से बेटियाँ कर रही हैं अब चमत्कार,
शिक्षा खेल साहित्य में पा रहीं हैं बेटियाँ पुरस्कार।
देश ही नहीं वरन विदेशों में भी मचा रहीं हैं धूम,
पुरुषों के समान ही बेटियाँ अब करती ललकार।।

 4. ये हमारे रिश्ते

ये रिश्ते भी अजीब होते हैं,
दिल के बेहद क़रीब होते हैं।
जितना भी भुलाना चाहे इन्हें,
यादों में हमें दिखाई देते हैं।।

रिश्तों में हो सत्यता की नींव,
तब वो ख़ुशियाँ भी हमें देते हैं।
जब झूठ से हम निभाएं रिश्ते,
आँखों में आँसू बहते रहते हैं।।

रिश्तों में बहे प्यार की ख़ुशबू,
दिल में संगीत सुनाई देते हैं।
जो दर्द में देता है मरहम तुम्हें,
सच में मन मीत वही होते हैं।।

माँ का बेटे से जो हो रिश्ता,
ममता की छांव हमें देते हैं।
पति पत्नी के रिश्ते सदैव ही,
विश्वास पर टिके होते हैं।।

भाई बहन के प्यारे से रिश्ते,
सब रिश्तों में अहम होते हैं।
ये एक धागे से बंधकर सदा,
कैसे सुंदर से पवित्र होते हैं।।

जिन्हें न हो अपनों का साथ,
वे बड़े ही बदनसीब होते हैं।
हमारे दिल को सकूँन जो दें,
वे रिश्ते ख़ुशनसीब होते हैं।।
★★★★★★★★★★
स्वरचित, मौलिक व अप्रकाशित

लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव
बस्ती, उत्तर प्रदेश

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