1. बाल गीत – माँ तुम बताओ ना

कोयल अब कूं-कूं नहीं करती,
गौरेया अब फुदकती नहीं दिखती।
न ही सुनाई देती है मैना की,
मनमोहक बातें।

बुलबुल के चुलबुलेपन की,
केवल रह गई हैं अब यादें।
मिट्ठू अब मीठी बातें,
नहीं सुनातें हैं।
मोर तो अब सपने में भी नहीं आते हैं

माँ तुम बताओ ना?
तुम कब तक इनकी,
कहानी सुनाओगी।
वास्तविकता से कब मेरा,
परिचय करवाओगी।

क्या ये अब केवल
कहानी के पात्र हैं।
या फिर पूर्णिमा के चाँद हैं,
या कोई बात बीती हुई बात हैं।
इस हक़ीक़त को मुझे
समझाओ न।
माँ अब तुम बताओ न।

2. धर्म संकट में ईश्वर

कुछ बकरे सुबह हरी-हरी
मुलायम घास खा रहें हैं।
वे नहीं जानते कि उनका
जिरह किया जाएगा किसी ईश्वर को
खुश करने के वास्ते या दी जाएगी बलि
किसी महत्वकांक्षा की पूर्ति के लिए
सदियों से प्रकृति के तमाम
जीव जंतुओं की दी जाती रही है बलि
मनुष्य की जीभ की तुष्टि के लिए या
ईश्वर को मनाने के वास्ते
और धीरे-धीरे मनुष्य होता गया
विकसित से अति विकसित
और ईश्वर द्वारा उतपन्न प्रजातियाँ
हो रही समाप्ति की कगार पर
और सड़कों पर पूरी दुनियाँ में
छा गए मनुष्य और तमाम पशु पक्षी
छुप गए जंगल स्वयं के बिलों में
अपनी प्रजाति की खैर मनाने
फिर तो मनुष्य पर हुआ किसी
अदृश्य से वायरस का आकर्मण और
शक्तिशाली मानव छिप गया अपने घरों में
मनुष्य ही नहीं ईश्वर ने भी कैद कर लिया
अपने पूजा स्थल इबादत गाह में
अपने भक्तजनों की भीड़ से बिल्कुल अलग
शायद वह नहीं सुनना चाहता अपने भक्तों की प्रार्थनाएँ
बचपन में माँ यह बताया करती थी
इस दुनिया में जो कुछ होता है
उसमें ईश्वर की मर्ज़ी होती है
तो क्या अब ईश्वर नहीं स्वीकार करना चाहते
अपने भक्तों की प्रार्थनाएँ
या वे धर्म संकट में हैं कि कैसे स्वीकार करें
इसकी जीवन उद्धार की प्रार्थनाएँ
जो स्वयं तमाम प्रजाति के जीवन के बेल संहारक
हाँ संहारक संहारक

 

राकेशधर द्विवेदी
गोमतीनगर
लखनऊ

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