फणीश्वर नाथ रेणु हिन्दी साहित्य के  उन  महान कथाकारों में से एक हैं, जिनका साहित्य उनके समय तो प्रासंगिक था ही परंतु समय के साथ- साथ उनके साहित्य की महत्वता ओर अधिक बढ़ गई है । उनका जन्म 4 मार्च 1921 को बिहार के ओराही हिंगरा नमक गाँव मे हुआ था। इस वर्ष उनकी ( 2020) जन्मशताब्दी  मनाई जा रही है । उनको पढना और उनके आंत्रविचारों को समझना  भारत को समझना है , उसमें बसे ग्रामीण लोगों की आत्मा को समझना है । रेणु जी भारतीय लोक संस्कृति के विख्याता हैं। उनकी जन्म शताब्दी पर हम उन्हे श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं । हमारा देश एक कृषिप्रधान देश है । ऐसा माना जाता है कि भारत की आत्मा गाँव में बसती है । आजादी के बाद इसी गाँव को रेणु जी ने साहित्य के केंद्र में लाए । उनको समझने के लिए उनके कथा –साहित्य के साथ साथ उनके व्यक्तितव को समझना आवश्यक है उसका कारण है कि उनका व्यक्तित्व व साहित्य में दूरी नहीं है । उनके कहानी, उपन्यास  के साथ-साथ उनके संस्मरण ,रिपोतार्ज  आदि को समझने की भी आवश्यकता  है ।

रेणु जी ने राष्ट्र निर्माण व लोक संस्कृति को जीवित रखने के लिए आजीवन चिंतन व संघर्ष करते रहे । वह एक ऐसी संस्कृति को स्थापित करना चाहते थे जहां कोई भेदभाव न हो । वो लोक की जानकारी, लोक हित की बातें करना वो लोक हित को ही लिखना भी चाहते थे । उनका कथा साहित्य जितना आंचलिक था उतना ही राष्ट्रीय भी । उनका उपन्यास मैला आँचल एक कालजयी उपन्यास  है, जिसे उन्होंने  1954 में लिखा था । इस उपन्यास में ग्रामीण जीवन जीवित हो उठा है । तत्कालीन भारतीय ग्रामीण जीवान के सामाजिक, राजनीतिक व धार्मिक जीवन को आधार बना कर रेणु जी ने मैला आँचल को हिन्दी साहित्य में कालजयी रचना बना दिया । रेणु जी का व्यक्तित्व को कृतित्व दोनों ही अपरितम है । वह संघर्ष के माध्यम से भारतीय चेतना का निर्माण करते हैं। रेणु के उपन्यास, कहानी, रिपोर्तार्ज, रेखाचित्र, संस्मरण सब समूहगान के रूप में उपस्थित है । वह अपनी लेखनी के माध्यम से स्वतंत्र  व्यक्तित्व का बोध कराते हैं । कोई भी पाठक जब उन्हें पढ़ता है तो वह उनके इंद्रजाल से नहीं बच पाता, उसे जीवन भर भूला नहीं पाता । क्या कोई पाठक उनके कहानी’ पंचलाइट’ को एक बार पढ़ कर कभी भूल सकता है । उनके लेखन में राग –विराग, व्यंग, सामाजिक यथार्थ, प्रेम सब कुछ है ।  वह अपने साहित्य के केंद्र में साधारण मनुष्य की बात करते हैं, उन्हें शब्द देते हैं ।

रेणु जी के साहित्य में दृश्य किसी फिल्म की तरह आपके आगे से गुजरती है । चाहे उनके उपन्यास  हो या उनकी कहानियाँ वह पात्रों के माध्यम से एक –एक रेखा को खोलते चले जाते हैं, जैसे लगते हैं वह पात्रों के माध्यम से एक –एक रेखा को खोलते हैं । जैसे लगता है वह पात्र  पढ़ते  वक़्त वह हमारे सामने आकर खड़े हो जाते है । अब वो चाहे ‘पंचलाइट’ के’ पेट्रोमेक्स’ की कहानी हो या’ लाल पान की बेगम’ की’ बिरजू की माँ’ हो । कोई भी पात्र हो सब के बारे में यह बात कही जा सकती है ।

रेणु जी के मैला आँचल में आजादी के बाद के गाँव का एक भरा- पूरा चेहरा मिलता है । उन्होंने पूर्णिया के गाँव मेरीगंज  के माध्यम से पूरे आँचल को सजीव कर दिया है । इस उपन्यास में  आज़ादी  के बाद के गाँव के पिछड़ेपन को उसमें रहने वाले लोगों के पिछड़ेपन को तथा उनकी मान्यताओं, रीति –रिवाजों के पिछड़ेपन को समग्र रूप से मैला आँचल के माध्यम से चित्रित किया । ग्रामीण जीवन की एक –एक सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक मूल्यांकन करते हैं । निम्न उदाहरण से गाँव के खेतिहर मजदूरो की दीन अवस्था का पता चलता है –

‘’जिस तरह सूरज डूबना एक महान सच है, पूंजीवादी का नाश होना भी उतना ही बड़ा सच है, मिलों की चिमनियाँ आग उगलेगी और उन पर मजदूरों का कब्ज़ा होगा, जमीनों पर किसानों का कब्ज़ा होगा,चारों ओर लाल धुआँ मंडरा रहा है, उठो किसानों के सच्चे सपूतों धरती के सच्चे  मालिक उठो । क्रांति का मशाल लेकर आगे बढ़ो । ‘’

आजादी के बाद जहाँ अधिक लेखक के लेखनी का केंद्र शहरीकरण था वही रेणु जी ने ग्रामीण जीवन को ही आपने लेखन का केंद्र बनाया । आजादी के समय भारत की अधिकांश आबादी गाँव में ही निवास करती थी ओर देश का मुख्य विषय भी यही था । रेणु उदारवादी लेखक है वह कलम, कुदाल वो बंदूक के कथाकार हैं । कलम के माध्यम  से वो  कुदाल व बंदूक की बात करते हैं । कुदाल उन के जीवन का आधार है, वह कृषक थे । किसान जीवन के हर एक पक्ष से अवगत थे, तत्कालीन समाज में किसान को खेती ,कर्ज ,ऋण से कैसे जूझना पड़ता है व जानते थे ,वह तत्कालीन राजनीतिक भ्रष्टाचार से क्रोधित थे । वो इन भ्रष्टाचारियों का खुल कर विरोध करते हैं ,वह क्रांति की बात ही नहीं करते बल्कि उसे लिखते भी हैं ।

रेणु जी अपने जीवन में तीन –तीन देशों के मुक्ति आंदोलन से जुड़े रहे । 1950 के नेपाल मुक्ति आंदोलन में उन्होंने बढ़ कर भाग लिया ओर उसकी चर्चा अपने रिपोर्तार्जों में भी किया रेणु के लिए नेपाल का वही स्थान  था जो बापू के लिए दक्षिण अफ्रीका का था । वह दस वर्ष की अवस्था में ही पहली बार जेल चले गए थे । उनका क्रांतिकारी स्वर उनके सारे कथा साहित्य में  दिखाई पड़ता है । पटना के 1950 के ‘ किसान आंदोलन में  व भाग भी लेते हैं ओर लिखते भी हैं अपने पत्र’ नए सवेरे की आशा ‘ में वह लिखते हैं ‘’देश तभी खुशहाल होगा जब किसान खुशहाल होगा …..तभी रामराज्य होगा । ‘’

रेणु जी को कम आयु प्राप्त हुई थी ,वह अपने जीवन में कई बार जेल गए और कई बार बीमारी के कारण अस्पताल गए ,परंतु जेल और अस्पताल उनकी इक्छा शक्ति को कभी तोड़ नहीं पाये । उन्होंने  इस  बात की परवाह नहीं थी कि साहित्य में उन्हें ऊंचा स्थान मिलेगा कि नहीं वह तो साहित्य माध्यम से जागरूकता अभियान चला रहे थे । हिन्दी की किसी भी किताब में ऐसा आंदोलन व युद्ध का वर्णन नहीं मिलता जैसा आपको रेणु के साहित्य में मिलता है । राष्ट्रीय भक्ति उनके पूरे साहित्य में व्याप्त है ,वह लिखते हैं ‘’युद्ध मैदान में मरने वाले सीधे स्वर्ग जाते हैं । ‘रेणु जी साहित्य के माध्यम  से क्रांति, परिवर्तन  की बात करते हैं उसे महसूस करते हैं। रेणु जी अपने पत्र, रिपोर्तार्ज, संस्मरण में वो सीधे –सीधे बात करते हैं, वहीं कहानी व उपन्यास में वह यह कम कथानक के पात्रों के माध्यम से करते हैं । रेणु उसी सरकार को अच्छा समझते हैं जो समाज के सबसे कमजोर वर्ग को केंद्र में रख कर कार्य करे । वह लिखते हैं ‘जनता कह रही है रोजी ,रोटी ,ओर कपड़ा दो नहीं तो गदी छोड़ो ।’ वह खुल कर सरकार का विरोध करते हैं । रेणु तत्कालीन समाज जो अधिकांश गाँव में बसे थे उनकी आर्थिक ,सामाजिक व राजनीतिक आजादी व परिवर्तन की बात करते हैं ।

स्वतन्त्रता के उपरांत हिन्दी कहानी के दौर में जिसे  नई कहानी का आंदोलन के नाम से जाना जाता है , जिसमें ग्रामीण जीवन बनाम शहरीकरण को लेकर विवाद चल रहे थे । रेणु जी ने अपने कथा का केन्द्र बिन्दु ग्रामीण जीवन को ही बनाया शायद  यही कारण था कि आलोचकों की दृष्टि उनकी ओर बहुत बाद में गई । पहली बार कहानी पत्रिका के 1956 के विशेषांक में डॉ. नामवर सिंह ने अपने लेख में उनका उल्लेख किया है । वो लिखते हैं ‘’निसंदेह इन विभिन्न अंचलो या जन पदों के लोक जीवन को लेकर लिखी गयी है । कहानियों में  ताजगी है ओर प्रेमचंद की गाँव पर लिखी कहानियो से एक हद तक नवीनता भी ……..फणीश्वर नाथ रेणु , मार्कण्ड्ये, केशव मिश्र, शिव प्रसाद सिंह की कहानियों से इस दिशा में आशा बांधती दिखाई देती है । निर्मल वर्मा रेणु को संत मानते थे ।उन्होंने लिखा है जिस प्रकार साधू –संतों के पास बैठ कर असीम ज्ञान प्राप्त होता है, हम अपने भीतर ही घुल जाते हैं,रेणु की मुक उपस्थिती हिन्दी साहित्य में कुछ ऐसी ही पवित्रता का बोध कराती है । निर्मल वर्मा रेणु की ‘समग्र मानवीय दृष्टि ‘ का उल्लेख करते हुए लिखते हैं ‘बिहार के छोटे भूखंड की हथेली पर उन्होंने समूचे उत्तर भारत के किसान की नियति रेखा को उजागर किया ।’ रेणु हिन्दी के उन कथाकारों में से हैं जो शहरों के चकचौंध में फसने की बजाय भारत की आत्मा ग्रामीण जीवन के यथार्थ रूप से जनता को अवगत कराते हैं ओर परिवर्तन की बात करते हैं । उनकी कहानियों के तमाम पात्र उनके निजी जीवन से किसी न किसी रूप में जुड़े हुए थे । उन पात्रों के जीवन व प्रकृति की बारीकी रेखाओं से निर्मित उनकी कहानियाँ पाठकों के भीतर गूँजती हैं ।

रेणु जैसे महान कथाशिल्पी का पत्रकार होना अपने आप में  एक रोचक प्रसंग है । उन्होंने अपनी पत्रकारिता को समृद्ध किया है । रेणु जी के रिपोर्तार्जों  को ‘ एकाँकी के दृश्य ‘ नाम पुस्तक में संकलित किया गया है । इसमें उन्होंने बिहार की राजनीति, सामाजिक, सांस्कृतिक रीति –रिवाजों आदि को लेकर पत्रिकाओं के लिए स्तम्भ लेख लिखे हैं । रेणु जी अपनी कलाम से समाज का हर एक कोना झाँकता है ,चाहे वो ईश्वर हो ,मजदूरी ,किसानी ,कर्ज ,मौत ,योन-संबंध ,प्रेम सभी आपको मिल जाएगा ।

रेणु की  लेखनी में  नारायणी शक्ति है ,वह अपने साहित्य के माध्यम से भारत के रीति – रिवाजों का चित्रण करते हैं । उनके कथा के पात्र प्रकृतिक आपदा से जूझते हैं लड़ते हैं ,मरते हैं परंतु हार नहीं मानते हैं । वह अपने सांस्कृतिक  परिस्थित्यों के प्रति जागरूक  रहते हैं । रेणु की भाषा संयमित , मर्यादित है । आंचलिक उनके रूप में थी ओर भारतीयता उनके प्राणो में  थी । वह अपने साहित्य ने समस्या को उकेरते नहीं समाधान की भी बात करते हैं ,वह चिंता नहीं चिंतन भी करते हैं । उनके लिए मानव के उदेश्य की पूर्ति सबसे बड़ा उदेश्य रहा । समाज के शुभ – अशुभ ,सांस्कृतिक चेतना ,सामाजिक मर्यादाओ ,नव्य मानवता को विकसित करते हैं।  वह अपने साहित्य से एक नए विश्वास ,उमंग व परिवर्तन की बात करते है । रेणु अपने साहित्य में लोक संस्कृति को  जैसे की तैसा लिखते हैं कोई आडम्बर नहीं करते  हैं। वह अपने साहित्य के माध्यम से कला –संस्कृति की बात करते हैं, उसे जीवित रखते हैं । रेणु जनमानस की चेतना के मूल्यों को जीवित किया है ,शाश्वत मूल्यो  को जीवित रखा है । उनका साहित्य जितना समकालीन था , अब पहले से भी अधिक प्रासंगिक है । आज के नई पीढ़ी को रेणु जी के साहित्य से सीख लेने की आवशयक है ,उनका सम्पूर्ण कथा – साहित्य भारतीय संस्कृति की महान सम्पदा है |

निधी झा

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