कुमार सोनकरन का दोहार्द्धशतक

01. वे नरेन्द्र पशुतुल्य हैं, क्या ब्राह्मण क्या सूद। अन्तस में जिनके नहीं, मानवता मौजूद।। 02. खून माॅंस भी एक है , जाति योनि भी एक। फिर नरेन्द्र हैं क्यों […]

गोलेन्द्र पटेल की कविताएँ

1).  चोकर की लिट्टी मेरे पुरखे जानवर के चाम छिलते थे मगर, मैं घास छिलता हूँ मैं दक्खिन टोले का आदमी हूँ मेरे सिर पर चूल्हे की जलती हुई कंडी […]

आज का सुकरात – सन्तोष खन्ना

सूरज आज खुश था। उसने बी.ए.  की परीक्षा अच्छे नंबरों में पास कर ली थी । उसके घर वाले भी प्रसन्न थे । उसकी मां ने मेहनत- मज़ूरी कर सूरज […]

सफर  जासूसी उपन्यासों का – शैलेन्द्र चौहान

किशोरावस्था में रूमानी और जासूसी उपन्यास खूब पढ़े। साथ-साथ साहित्यिक पुस्तकें भी पढ़ता था। आज जब इन उपन्यासों की लोकप्रियता को याद करता हूँ तो सोचता हूँ बजाय इन्हें सिरे […]

 महिला योगदान: पुराणकाल से अब तक – डॉ. होशियार सिंह यादव

                       कभी पूजा उसको तो कभी ठुकराया है कभी पुरुष तो कभी नारी युग आया है। स्त्री एवं पुरुष समाज […]

लाेक और दलित जीवन का प्रभावी आख्यान – सूर्यकांत नागर

‘वसंत के हरकारे: कवि शैलेन्द्र चौहान’, सुरेन्द्र सिंह कुशवाह द्वारा संपादित शैलेन्द्र के व्यक्तित्व-कृतित्व पर केन्द्रित बीस आलेखों का संकलन है। इसमें सूरज पालीवाल, प्रकाश मनु, वसंत मुखोपाध्याय, अभिज्ञात, शीलचंद […]

स्वातन्त्र्य वीर सावरकर को करीब से देखिए – तेजस पूनियां

सिंधु नदी से सागर तक हम एक ही हैं। हमारी एक ही आइडियोलॉजी होनी चाहिए हिंदुत्व। हिंदुत्व हिन्दू धर्म नहीं है और सनातन धर्म भी हिन्दू धर्म का केवल एक […]

अनुक्रमणिका

अनुक्रमणिका संपादकीय  डॉ. आलोक रंजन पांडेय शोधार्थी निराला के काव्य में सामाजिक यथार्थ – डॉ. काळे मदन भाऊराव भारतीय ज्ञान परंपरा और भक्ति काव्य – डॉ. जयन्त कुमार कश्यप हिंदी […]

निराला के काव्य में सामाजिक यथार्थ – डॉ. काळे मदन भाऊराव

हिन्दी साहित्य के इतिहास में करीब करीब दो शताब्दियों तक छायावाद का प्रभाव रहा है। हिन्दी साहित्य कालविभाजन के अन्तर्गत छायावाद का काव्य प्रमुख रहा है। कालविभाजन करनेवाले सभी इतिहासकारों […]