साहित्य व सिनेमा – डॉ. अंजु कुमारी

सहायक साहित्य व सिनेमा समाज को दिशा निर्देश करने वाले प्रमुख मनोरंजनात्मक परंतु उद्देश्य मूलक विद्या है। साहित्य और सिनेमा दोनों पृथक विद्याएँ है। साहित्य पढ्य है वही सिनेमा दृश्य […]

भारतीय हिन्दी सिनेमा में गीतकार शैलेन्द्र का योगदान – बुद्धिराम

सिनेमा या फिल्मों का हमारे सामाजिक जीवन में ज्ञान, मनोरंजन, सूचना व शिक्षा की दृष्टि से अत्यन्त महत्व है। इसलिए यह हमारे जीवन का एक अहम अंग बन चुका है। […]

‘आँधी’ : आज भी समय की धार पर खरी है फिल्म – डॉ.अनिता प्रजापत

सन् 1975 में प्रदर्शित हिंदी फिल्म ‘आँधी’ भारतीय सिनेमा के इतिहास में एक अनूठी और यादगार फिल्म है। इस फिल्म में मुख्य कलाकार संजीव कुमार और सुचित्रा सेन थे, जिन्होंने […]

मलयालम सिनेमा : एक सफरनामा – डॉ० प्रीति के

आज सिनेमा का विश्व भर में प्रसार हुआ है । दुनिया की लगभग सभी भाषाओं में फिल्में बन रही हैं। भारत में भी सभी प्रमुख भाषाओं में फिल्में बनती हैं। […]

हिंदी का सिनेमा, साहित्य और समाज – प्रो. माला मिश्र

साहित्य को समाज का दर्पण कहा जाता है। यदि इस नज़रिए से सिनेमा को देखा जाए तो सिनेमा को समाज की अन्तर्शिराओं में बहने वाले रक्त की संज्ञा दी जा […]

सिनेमा और  हिंदी साहित्य का भावनात्मक जुड़ाव – डॉ. किरण ग्रोवर

सारांश :– संचार एक ऐसी प्रक्रिया है जिसने भावों विचारों, तथ्यों, अनुभवों और दृष्टिकोण को एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक सहभागिता हेतु प्रेषित किया जाता है। समाज की शैक्षिक, […]

समाज का मुखौटा उतारती २१ वीं सदी की मलयालम फिल्में बनिस्बत बॉलीवुड की मसाला फिल्मों की दुनिया – षैजू के

आज के हिंदी भाषी दर्शकों का मलयालम फिल्मों से सबसे कम वास्ता रहा है। सोशल मीडिया पर पसरी इन आंख मारने की बेजा हरकतों से जुड़ने के अलावा उन्होंने वही […]

हिंदी सिनेमा में स्त्री की बदलती छवि – डॉ. उर्मिला शर्मा

‘साहित्य समाज का दर्पण है।’ सिनेमा भी इसीप्रकार समाज और साहित्य का दर्पण है। सिनेमा एक ऐसा माध्यम है जिसकी पहुँच जन-जन तक है। इसके माध्यम से साहित्यिक कृतियों को […]

भारतीय सिनेमा : युवा वर्ग और शिक्षा का अस्तित्व – डॉ. नम्रता जैन और डॉ. रत्नेश कुमार जैन

प्रस्तावना :-          आधुनिक काल में मानव जीवन बहुत व्यस्त हो गया है उसकी आवश्यकताएं बहुत बढ़ गई है। व्यस्तता के इस युग में मनुष्य के पास मनोरंजन का समय […]

फिल्म ‘माझी : द माउन्टेन मैन’ के बहाने दलित संस्कृति और समाज का अध्ययन – महेश सिंह

हिंदी सिनेमा के 100 वर्षों के इतिहास का अध्ययन करने पर पता चलता है कि पौराणिक कथाएँ हिंदी फिल्मों के कथानक के मुख्य स्रोत रहे हैं। खासकर रामायण और महाभारत […]