भारतेन्दु के मौलिक नाटकों में भारतीय स्वतंत्रता का परिदृश्य – जितेन्द्र शुक्ला

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र उन युग-प्रवर्तकों में से है जिनके व्यक्तित्व के माध्यम द्वारा इतिहास की बिखरी हुई शक्तियाँ सिमट कर एक हो जाती है और जो भविष्य के लिए एक निश्चित […]

भक्ति काल : सृजनशीलता और भाषा  (कबीर के विशेष संदर्भ में) – प्रो. माला मिश्र

कबीर की काव्यभाषा में मुख्यतः प्रयुक्त हुए शब्दों के मूल स्रोतों के संदर्भ  में उनकी सृजनशीलता का विश्लेषण बड़ा ही रोचक है। लोकजीवन से गृहीत शब्दों के मूल स्रोत के […]

सिलहटी रामायण – अभय रंजन

सिलहट पूर्वोत्तर बांग्लादेश में एक महानगरीय शहर है । बंगाल के पूर्वी सिरे पर सूरमा नदी के दाहिने किनारे पर स्थित एक उष्णकटिबंधीय जलवायु और हरे-भरे ऊंचे इलाके वाला शहर […]

स्वाधीनता पूर्व की हिंदी कहानियों में विवाहेतर संबंध – कुसुम सबलानिया 

शोध सार – इस शोध पत्र में समाज में आए विचलन को साहित्य की सशक्त विधा कहानियों के जरिए समझने की कोशिश की गई है। साहित्य को समाज का दर्पण […]

कबीरा खड़ा बाज़ार : एक सामाजिक समस्या – सरिता समरबहादुर यादव

मनुष्य से ही समाज का निर्माण होता है। व्यक्ति समाज की इकाई है। सामाजिक गतिविधियों का सीधा प्रभाव व्यक्तियों के मन-मस्तिष्क पर पड़ता है। सामाजिक गतिविधियों के परस्पर संबंध ही […]

सामाजिक विज्ञान के परिप्रेक्ष्य में बाल मजदूरी – डॉ. सीमा दास

सार मानव अधिकारों के महत्वपूर्ण मानकों में बच्चों के अधिकार भी शामिल हैं। विकासशील देशों के श्रम बाजार में बच्चों का शोषण और उनके बचपन के वैध अधिकार से इनकार […]

अनुवाद में प्रोक्ति, परिवृत्ति की अवधारणा – डॉ. श्रीराम हनुमंत वैद्य  

प्रस्तावना:-       प्रत्येक भाषा का अपना एक विशिष्ट परिवेश होता है, जिसमें वह भाषा पलती है, फुलती है। कोई भी दो भाषाएं ध्वनि, शब्द, अर्थ, उच्चारण, लय, पदबन्ध, वाक्य विन्यास, […]

साहित्य सृजन और इतिहास में रहीम की भूमिका – किशोरी लाल

सारांश   मध्यकालीन भारतीय इतिहास के मुगल दरबार में रहीम का सम्राट अकबर कालीन शासन में अपना एक प्रभावशाली ओहदेदार व्यक्तित्व था। वे एक कुशल सैन्य-संचालक, महान योद्धा व दानियों के […]

निर्मल वर्मा के कथा साहित्य में अभिव्यक्त प्रेम – खुशबू

प्रेम एक ऐसा विषय है, जिसमें कभी भी, कोई भी साहित्यकार अपने आपको तटस्थ नहीं रख सका है। हर युग में प्रेम अपने नए कलेवर के साथ चित्रित होता है। […]

रहीमदास के दोहों का वर्तमान परिवेश में मनोसामाजिक चित्रण – डॉ० आशा कुमारी एवं डॉ० राजेश

सारांशिका भक्तिकाल के प्रसिद्ध कवि रहीमदास अकबर के समय में उनके दरबार के नव रत्नों में से एक थे | उनकी कृतियां आज भी गंगा जमुनी तहजीब और कौमी एकता […]