कबीर के काव्य में लोक संचार भावना – डॉ. चन्देश्वर यादव

कबीर क्रान्ति के अग्रदूत हैं जिन्होंने कुव्यवस्था में भूचाल ला दिया और एक नए युग का सूत्रपात किया। कबीर ने अंधविश्वास पाखण्ड और आडंबर को जड़ से हिलाते हुए समाज […]

कबीर के काव्य का संदेश – डाॅ. सरिता देवी

कबीर ने अनुभव की पाठशाला में जीवन की शिक्षा ली थी। उस समय का समाज मानवता की कब्र पर पल्लवित और पोषित हो रहा है । सामंतवाद का बोलबाला था, […]

कबीर-काव्य: मूल्य और प्रासंगिकता – कमलेश चौधरी

मध्ययुग के सामाजिक, धार्मिक व राजनैतिक परिदृश्य पर हम यदि नजर डाले तो पाते हैं कि इन तीनों ही क्षेत्रों में तत्कालीन परिस्थितियँा मूल्यों के लिए तरस रही थी। जन-सामान्य […]

कबीर की काव्य संवेदना और आधुनिक बोध – मोहिनी पाण्डेय

कबीर मध्यकाल के निर्गुण विचारधारा के कवि हैं । आधुनिक काल में कबीर का नाम बड़े आदर के साथ लिया जाता हैं धार्मिक कल के कबीर अकेले कवि हैं ,जिन्होंने  […]

विभिन्न आलोचकों की दृष्टि में कबीर – ऐश्वर्या पात्र

हिंदी साहित्य के इतिहास में कबीर एक ऐसे प्रतिभा सम्पन्न व्यक्ति हैं जिनकी प्रासंगिकता आज भी विद्यमान है। उनके जिक्र मात्र से हमारे समक्ष वही मध्ययुगीन पतनोंन्मुख समाज का चित्र […]

कबीर की सामाजिक चेतना : डॉ. साधना शर्मा

सामान्यतः सामाजिक से हमारा तात्पर्य किसी देश एवं काल विशेष से संबंधित मानव समाज में अभिव्यक्त परिवर्तनशील जागृति से होता है। इसका उद्भव सामाजिक अन्याय, अनीति, दुराचार, शोषण की प्रक्रिया […]

आचार्य शिवपूजन सहाय की संपादन कला – डाॅ. सुनील कुमार तिवारी

आधुनिक संपादन कला के वैशिष्ट्य के लिए जिन बिंदुओं की महत्त्वपूर्ण माना जाता है, उस वैज्ञानिक आधार की पृष्ठभूमि शिव पूजन सहाय द्वारा संचालित ‘हिमालय’ में उस समय देखा जा […]

  साहित्य में स्त्री विमर्श का महत्त्व और रघुवीर सहाय की रचनाएँ – दिनेश कुमार यादव

साहित्य को समाज का दर्पण कहा जाता है। साहित्य एक-दूसरे के दुःख में दुःखी होना और एक-दूसरे के सुख में सुखी होना सिखाता है। वह संपूर्ण मनुष्य का कल्याण हो […]

सिनेमा में हिन्दी भाषा का स्वरूप – अर्चना उपाध्याय

हिन्दी सिनेमा का आरम्भ पारसी थिएटर की देन है। उन्नीसवीं शताब्दी के अंतिम दशक में महाराष्ट्र और गुजरात में पारसी थिएटर का जन्म माना जाता है। इसके आरंभिक रंगकर्मियों में […]