मीडिया का बदलता स्वरूप – डॉ. माला मिश्रा

संचार माध्यम अथवा मीडिया का स्वरूप तेजी से इस प्रकार बदलता दिखाई दे रहा है है कि इस पर काले बादल मंडराते दिखाई दे रहे है|  अतः यह कर पाना […]

संघर्ष और उसकी युग-सापेक्षता – डाॅ. ममता सिंगला

संघर्ष किसी एक युग-विशेष की ही माँग नहीं है वरन् उसकी सार्थकता सभी युगों में स्वयं सिद्ध है, क्योंकि कुछ सामाजिक, राजनैतिक, धार्मिक तथा आर्थिक समस्याएँ ऐसी हैं, जो प्रत्येक […]

स्वाधीनता, आधुनिकता, ग्राम जीवन और परिवर्तन की चेतना का यथार्थ – राम विनय शर्मा

सन् 1967 में प्रकाशित शिवप्रसाद सिंह का ‘अलग अलग वैतरणी’ ग्रामभित्तिक उपन्यासों की चर्चा के प्रसंग में उल्लेखनीय स्थान रखता है। इस उपन्यास का आयतन बड़ा है, पात्रों की संख्या […]

बदलते वक्त में ‘कुदाल’ – बीरज पाण्डेय

केदारनाथ सिंह ‘भारतीयता’ के कवि हैं । उनकी कविताओं में एक साथ भारतीय जीवन के विविध पहलू सिमटे मिलते हैं। बदलते भारत के कैनवास के रंगों में, सजधज में आए […]

कृषक जीवन की समकालीन चुनौतियाँ – प्रभात यादव

कृषि भारतीय जीवन का आधार, रोजगार का प्रमुख स्रोत तथा विदेशी मुद्रा अर्जन का प्रमुख माध्यम है। लेकिन आज भारतीय कृषि के समक्ष बहुत सी चुनौतियाँ हैं। पहले की तुलना […]

भ्रमरगीत-परम्परा में नंददास का ‘भँवरगीत’ – गौरव वर्मा

‘भ्रमरगीत शब्द ‘भ्रमर’ और ‘गीत’ दो शब्दों से मिलकर बना है भ्रमर काले रंग का उड़ने वाला जन्तु होता है जिसे मधुप, मधुकर, अलि आदि विविध नामों से पुकारा जाता […]

आधुनिक युग में खेलों का महत्व – डाॅ. सुनीता अरोड़ा

आधुनिक युग का दौर प्रतियोगिताओं का दौर है। हर तरफ प्रतियोगिता ही प्रतियोगिता है। मनुष्य को इस तनाव, चिन्ता व प्रतियोगिता के दौर में जीने व इसके साथ चलने के […]

खेलों में मानसिक दृढ़ता का योगदान – डाॅ. मुकेश अग्रवाल

मानसिक दृढ़ता मनुष्य के जीवन में बहुत महत्वपूर्ण है। इसके द्वारा वह किसी भी क्षेत्र में अपना वर्चस्व स्थापित कर सकता है। विपरीत परिस्थितियों में भी मनुष्य की मानसिक दृढ़ता […]

आधुनिक हिन्दी में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद – वीरेन्दर

राष्ट्रवाद मूल रूप से एक सांस्कृतिक अवधारणा है। राष्ट्रवाद का स्वरूप उस राष्ट्र की धर्म और संस्कृति के द्वारा निर्धरित होता है। भारत में अनादिकाल से ही धर्म मनुष्य के जीवन का प्राणतत्त्व रहा […]

विद्यासागर नौटियाल के उपन्यास ‘सूरज सबका है’ में अभिव्यक्त यथार्थ – शिवानी

विद्यासागर नौटियाल जी यथार्थवादी लेखक के रूप में भी जाने जाते हैं। प्रेमचन्द की लेखन परम्परा के समान ही नौटियाल जी की भी लेखन कला है। वह भी प्रेमचन्द की […]