
नारी आदिम संस्कृति का उद्गम स्थल है, नारी पुरुष की प्रेरणा है और पुरुष संघर्ष का प्रतीक है। ‘‘दोनों की भिन्न प्रकृति से ही परस्पर पूरकता और जीवन की पूर्णता संभव है।’’ याज्ञवल्क्य […]

नारी आदिम संस्कृति का उद्गम स्थल है, नारी पुरुष की प्रेरणा है और पुरुष संघर्ष का प्रतीक है। ‘‘दोनों की भिन्न प्रकृति से ही परस्पर पूरकता और जीवन की पूर्णता संभव है।’’ याज्ञवल्क्य […]

‘छायावाद का काल गाँधी जी के नेतृत्व एवं राष्ट्र‘-भावना के प्रसार का काल था’ | उनसे प्रेरित होकर पुरूषों के साथ-साथ स्त्रियों ने भी देश के लिए बढ़-चढ़कर कदम उठाया। ‘असहयोग आंदोलन […]

हिंदी साहित्य के इतिहास में ‘छायावाद’ का समय 1918 से 1936 तक माना जाता है । छायावादी काव्य-भाषा और पल्लव को समझने से पूर्व दरअसल छायावाद को समझना होगा । […]

सहानुभूति, कल्पना ,अध्यात्मिक छाया, लाक्षणिक विचित्रता, मूर्तिमत्ता, प्रकृति का मानवीकरण आदि सभी विशेषताएं किसी एक ही युग में प्रचुरता के साथ मिलती हैं तो वह है छायावाद। हिंदी साहित्य में […]

समाज में नारियों की परिस्थिति अलग-अलग होती है। अलग-अलग वर्ग की नारियों की परिस्थिति भी अलग-अलग होती है। उच्च वर्ग में रह रही स्त्रियों का जीवन अलग प्रकार का होता […]

हिन्दी साहित्य के अविस्मरणीय एवं लोकप्रिय लेखक प्रेमचन्द जी ने हिन्दी में कहानी और उपन्यास को सुदृढ़ नींव प्रदान की और आदर्शोन्मुख यथार्थवादी चित्रण से देशवासियों का दिल जीत लिया। […]

भारतीय संस्कृति और भारतीयता के प्रखर उद्घोषक मैथिलीशरण गुप्त (3 अगस्त 1886-12 दिसंबर 1964) हिन्दी आधुनिक हिंदी साहित्य में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। उनके द्वारा सृजित महत्वपूर्ण कृतियां हैं- […]

मध्यकाल अपने समय और सरोकारों के साथ एक ऐसा काल है जो, मध्यकालीन रूढ़ियों से जकड़ा हुआ है। ऐसा स्वीकार किया जाता है कि समाज, मनुष्य और साहित्य का आपस […]

कहीं सुना है कि Every girl wants a bad boy, who will be good just for her … and … Every boy wants a good girl who will be bad […]

अकबरी दरबार के कवियों में रहीम (1556-1638) का विशेष स्थान है । ये बैरम खां खानखाना के पुत्र थे और इनकी माँ हुमायूँ की पत्नी की छोटी बहन थी । […]