मंझन कृत मधुमालती में सामाजिक मूल्य –  रेखा

मंझन कृत मधुमालती सूफी प्रेमाख्यानक काव्य परम्परा का प्रमुख ग्रन्थ है । इसका रचनाकाल सन 1545 ई. है । यह एक नायिका प्रधान कृति है, जिसमें लौकिक प्रेम से अलौकिक […]

दिल्ली महिला आयोग से अनभिज्ञ हैं महिलाएं – डॉ. अनु चौहान

दिल्ली महिला आयोग का गठन वर्ष 1994 में हुआ था। दिल्ली सरकार द्वारा पारित दिल्ली महिला आयोग अधिनियम -1994 के अंतर्गत गठित आयोग को पिछले 26 सालों से राजधानी में […]

फणीश्वरनाथ रेणु की कहानियों में गाँव के चित्र – डॉ. प्रिया ए.

फणीश्वरनाथ रेणु हिन्दी साहित्य जगत के सुप्रसिद्ध आँचलिक रचनाकार हैं। ग्रामीण अंचलों से उनके निकट का परिचय है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद ग्रामीण पृष्ठभूमि पर लिखनेवाले एक सशक्त कहानीकार के […]

स्त्री मुक्ति का स्वर और तसलीमा नसरीन का साहित्य – शिव दत्त

सृष्टि निर्माण में पुरुषों के समक्ष स्त्रियों का भी बराबर का योगदान रहा किन्तु समाज निर्माण के क्रम में पुरुषों द्वारा स्त्रियों को उचित स्थान प्राप्त नहीं हुआ । विदित […]

भारतेंदु साहित्य और हिंदी नवजागरण की चेतना में अनुवाद की भूमिका – सुमन

भारतेंदु हरिश्चंद्र का साहित्य मोटे तौर पर सन् 1858-1885 के बीच एक ऐसे ऐतिहासिक काल की उपज है, जिसके एक छोर पर भारतीय किसानों और सिपाहियों का राष्ट्रीय विद्रोह था, […]

जंगल की परिधि में आदिवासी एवं जंगल जहाँ शुरू होता है – सरोजा विनोद यादव

आदिवासियत भी वह मोह जाल है, जो प्रकृति की गोद में अपनी आँख मूंदे पड़ा रहना चाहता है | उस अनुभूति में भी अपनेपन का सुख है | वही अनुभूति […]

नैतिक संरचना के अधीन यौन मनोविज्ञान – आरती

किसी भी संरचनागत, सांस्थानिक, सामाजिक व्यवस्था के अंतर्गत उपयोगिता, नैतिकता और औचित्य सहगामी के रूप में कार्य करते दृष्टिगत होते हैं और इसी आधारशिला पर नैतिक रूप से इतरलिंगी यौन […]

अरूण कमल की काव्य-संवेदना – डॉ. साईनाथ उमाटे

अरूण कमल समकालीन हिंदी कविता के एक सशक्त हस्ताक्षर है | हिंदी कविता में जिन रचनाकारों ने समकालीन रचनाशीलता को एक कोटि के तौर पर स्थापित किया, अरूण कमल उनमें […]

इक्कीसवीं सदी में स्त्री संघर्ष के विविध समीक्षात्मक परिदृश्य – आशु मंडोरा

समकालीन समाज में विज्ञापन की दुनिया ने स्त्री की एक नयी तस्वीर बनाई है, जिसमें नारी को एक ओर सशक्तीकरण की ताकत भी मिली है तो साथ ही उसे उपकरण […]

परशुराम चतुर्वेदी और संत साहित्य – श्रुति ओझा

हिंदी भक्ति-साहित्य के अध्ययन क्षेत्र में परशुराम चतुर्वेदी की साहित्य साधना बहुत ही अनुकरणीय एवं श्लाघ्य है। वे साहित्य के क्षेत्र में एक रत्न के समान हैं, जिसके आलोक में […]