मानव-मूल्यों और सांस्कृतिक विरासत के निरूपण में तुलसी-काव्य का प्रदेय – डाॅ. सुनील कुमारी तिवारी

गोस्वामी तुलसीदास भारतीय मनीषा की श्रेष्ठ उपलब्धि के रूप में सदियों से ख्यात रहे हैं। समस्त भारतीय भाषाओं में तुलसी सदृश प्रतिभा विरल है। उनका काव्य शक्तिमत्ता, सूक्ष्म निरीक्षण की […]

मोहन राकेश के नाटकों में समय और समाज – राकेश डबरिया

कोई भी कृतिकार सामान्यजन से इस अर्थ में विशिष्ट होता है कि वह अपने समय एवं समाज को सूक्ष्मता से पहचानते हुए उसकी विसंगतियों को अपनी रचनाओं में दर्ज करता […]

महादेवी के काव्य में नारी – विमर्श – डाॅ. ऋचा शर्मा

सोने को गलाकर किसी भी साॅंचे में ढाला जा सकता है परन्तु हीरे को नहीं ,उसे हम तोड़ सकते हैं गला नहीं सकते | उसका कोई भी आभूषण हम अपनी […]

समकालीनता के दौर में हिंदी उपन्यासों में आई चेतना और प्रतिरोध – मनीष कनौजिया

भारत में उपन्यास विधा की शुरूआत पाश्चात्य शिक्षण, साहित्य और संस्कृति का देश के प्राचीन साहित्य और संस्कृति के साथ संयोग होने पर हुई। इस तरह जो नए साहित्य के स्वरूप […]

विद्यापति का सौंदर्य वर्णन: विशेष संदर्भ (पदावली) – ललन कुमार

संस्कृत के आलोचकों ने सौंदर्य को इस प्रकार परिभाषित किया है- ‘सुन्दरस्य भावः सौंदर्यम्’। अर्थात् सुन्दर के भाव को सौंदर्य कहते हैं। सौंदर्य अपने मूल चरित्र में नयनधर्मी होता है। आँखिन देखी सौंदर्य कानों से सुनी सुन्दरता के बखान से कई गुणा प्रभावी होता है। प्लेटो ने सौंदर्य की परिभाषा करते हुए कहा है- ‘अगर कोई वस्तु सुन्दर है तो इसका केवल एक कारण हो सकता है कि वह अत्यंत सुन्दर है। सौंदर्य की व्याख्या नहीं हो सकती, उसका विश्लेषण नहीं किया जा सकता, वह अनुभव की वस्तु है, उसमें रमा जा सकता है। सौंदर्य वस्तु का नहीं अपितु व्यक्ति का धर्म है, जो इसे सोचता है, समझता है।’ अतः यह कहा जा सकता है कि सौंदर्य मूलतः व्यक्तिनिष्ठ होता है। यह द्रष्टा या प्रेक्षक की चेतना पर निर्भर करता है। सौंदर्य वर्णन की परम्परा बहुत पहले से संस्कृत साहित्य से चली आ रही है। कालिदास संस्कृत साहित्य में सौंदर्य के शिखर कवि हैं। इनके बाद जयदेव आते हैं। मधुर कोमलकांत पदावली के गायक जयदेव ने ‘गीतगोविंद’ के प्रथम पृष्ठ पर ही पाठकों के लिए दो शर्तेंरखी है- पहला, ‘पाठक का मन हरिस्मरण में प्रसन्न होता है’ और दूसरा यह कि ‘कामकला में कुतूहल हो।’ यही वह प्रस्थान बिन्दु है जहाँ से हरिस्मरण और कामकला-कुतूहल की दो धाराओं का संगम होता है।यही मिश्रित धारा आनेवाले युग के साहित्य को दूर तक प्रभावित करती है। इस रूप में जयदेव यदि काव्य परम्परा में भक्ति और शृंगार के बीच की खाई को पाटने का काम करते हैं तो विद्यापति उनके उत्तराधिकारी के रूप में आगे बढ़कर इस समतल काव्यभूमि पर लोकसाहित्य का विशाल महल खड़ा करते हैं। विद्यापति का काव्य प्रेम का काव्य है। प्रेम का मूल प्रेरक तत्व है- सौंदर्य। सौंदर्य का आश्रय है- यौवन।यौवन और सौंदर्य का समन्वित रूप ही प्रेम या रति है। सौंदर्य इन्द्रियों के माध्यम से उतरकर देखनेवाले के मन पर प्रभाव छोड़ता है। सौंदर्य दो तरह के हैं- बाह्य और अंतः। विद्यापति इन दोनों के वर्णन में कुशल हैं।विद्यापति की पदावली में भक्ति और शृंगार दोनों है, लेकिन परिमाण के स्तर पर शृंगारिक पद ही ज्यादा है।निराला ने पदावली की मादकता को ‘नागिन की लहर’ कहा है।इसमें राधा और कृष्ण के प्रेम तथा उनके अपूर्व सौंदर्य चित्रों की भरमार है।पदावली का केन्द्रीय विषय प्रेम और सौंदर्य है। इन पदों में माधव, राधा, कृष्ण, कन्हाई, गिरिधर आदि नाम आए हैं, लेकिन ये प्रतीक मात्र है। अंतर्वस्तु के धरातल पर विद्यापति की नायक-नायिका किसी पारलौकिक ईश्वरीय सत्ता का प्रतिनिधि न होकर ठेठ मिथिला समाज के साधारण युवक औरयुवतीहै।धर्मसत्ता और राजसत्ता के गलियारे से कवि संवेदना को सुरक्षित निकालकर वे लोक से जुड़ते हैं।लोक से जुड़ने के क्रम में वे सामान्य युवती के सौंदर्य का, उसके लज्जाशील क्रिया-व्यापारों का, उसके सहज चपलता का बारीकी से चित्रण करते हैं। विद्यापति के काव्य में एक ओर मांसल सौंदर्य का वर्णन है, तो दूसरी ओर सामाजिक आचार-विचार और  व्यावहारिक  ज्ञान […]

शिवप्रसाद सिंह के कथा साहित्य में समाज, संस्कृति और इतिहास : डॉ. साधना शर्मा

हिंदी कथा-साहित्य में शिवप्रसाद सिंह के कथाकर्म का अर्थ-सन्दर्भ अनेक दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण है। वे प्रेमचन्द की कथा परम्परा का अनुकरण नहीं करते हैं वरन् उसे मोड़ते हैं। इस मोड़ने […]

नई किरण (कहानी) : डॉ.संतोष खन्ना

सुबह के दस बजते-बजते वह तीनों पार्क में पहुँच गए। कोहरा काफी छट चुका था, क्योंकि सूर्य अपनी पूरी प्रभा के साथ पूर्व दिशा से आगे बढ़ रहा था, किंतु […]

साथी थी तुम (कविता) – शैलेंद्र कुमार सिंह

आज बहुत दिनों बाद तुमसे मेरी नज़रें मिलीं, पिछली बार का याद नहीं एक लंबा अरसा गुज़र गया है! चलते-चलते अचानक ठिठक गया मेरे क़दम मेरा साथ नहीं दे रहे […]

उसका चेहरा (लघुकथा) – मनोज शर्मा

नाश्ते के अंतिम निवाले को मुँह में निगलते हुए अश्वनी ने बैग उठाया और जल्दी से घर से बाहर की राह ली और भीड़-भाड़ वाली गलियों से होता हुआ मैट्रो स्टेशन की […]