हिंदी का सिनेमा, साहित्य और समाज – प्रो. माला मिश्र

साहित्य को समाज का दर्पण कहा जाता है। यदि इस नज़रिए से सिनेमा को देखा जाए तो सिनेमा को समाज की अन्तर्शिराओं में बहने वाले रक्त की संज्ञा दी जा […]

सिनेमा और  हिंदी साहित्य का भावनात्मक जुड़ाव – डॉ. किरण ग्रोवर

सारांश :– संचार एक ऐसी प्रक्रिया है जिसने भावों विचारों, तथ्यों, अनुभवों और दृष्टिकोण को एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक सहभागिता हेतु प्रेषित किया जाता है। समाज की शैक्षिक, […]

समाज का मुखौटा उतारती २१ वीं सदी की मलयालम फिल्में बनिस्बत बॉलीवुड की मसाला फिल्मों की दुनिया – षैजू के

आज के हिंदी भाषी दर्शकों का मलयालम फिल्मों से सबसे कम वास्ता रहा है। सोशल मीडिया पर पसरी इन आंख मारने की बेजा हरकतों से जुड़ने के अलावा उन्होंने वही […]

हिंदी सिनेमा में स्त्री की बदलती छवि – डॉ. उर्मिला शर्मा

‘साहित्य समाज का दर्पण है।’ सिनेमा भी इसीप्रकार समाज और साहित्य का दर्पण है। सिनेमा एक ऐसा माध्यम है जिसकी पहुँच जन-जन तक है। इसके माध्यम से साहित्यिक कृतियों को […]

भारतीय सिनेमा : युवा वर्ग और शिक्षा का अस्तित्व – डॉ. नम्रता जैन और डॉ. रत्नेश कुमार जैन

प्रस्तावना :-          आधुनिक काल में मानव जीवन बहुत व्यस्त हो गया है उसकी आवश्यकताएं बहुत बढ़ गई है। व्यस्तता के इस युग में मनुष्य के पास मनोरंजन का समय […]

फिल्म ‘माझी : द माउन्टेन मैन’ के बहाने दलित संस्कृति और समाज का अध्ययन – महेश सिंह

हिंदी सिनेमा के 100 वर्षों के इतिहास का अध्ययन करने पर पता चलता है कि पौराणिक कथाएँ हिंदी फिल्मों के कथानक के मुख्य स्रोत रहे हैं। खासकर रामायण और महाभारत […]

रजत-पट पर राजस्थानी संगीत के स्वर्णिम हस्ताक्षर – सीमा जोधावत वर्मा

राजस्थान स्थानीय कलाकारों का प्रदेश कहलाता है। देश का यह सबसे बडा प्रदेश आज भी अपनी मिट्टी से जुड़ा दिखायी देता है। मारवाड़-मेवाड़ की अमर शौर्य गाथाओं के साथ यहां […]

हिन्दी सिनेमा पट कथा लेखन और भीष्म साहनी – डॉ. नवीन कुमार

पटकथा अर्थात परदे की कहानी, परदा बड़ा हो या छोटा यानि कि सिनेमा और टेलीविजन दोनो ही माध्यमो के लिए बनने वाली फिल्मों, धारावाहिकों आदि का मूल आधार पटकथा ही […]

राग दरबारी जारी है बनाम लोकतंत्र की संस्थाओ से मोहभंग की कथा – डॉ. चन्दन कुमार

1945 से 2010 तक अनवरत साहित्य साधना करने वाले श्रीलाल शुक्ल का लेखन काल लगभग 65 सालों का रहा है । आजादी के बाद के भारत के गांवो ,शहरों ,कस्बों […]

हिंदी सिनेमा और नारी – पंकज गौड़

प्रस्तावना:- आधुनिक युग संचार तकनीकी का युग है। संचार माध्यमों के द्वारा ही इंसान हर खोज खबर को देख और पढ़ लेता है। आज इस कोरोना महामारी में लोगों का […]