वाद-विवाद के मूल में अपने तर्कों के द्वारा अपने पक्ष को रखने पर बल दिया जाता है। वाल्टर बेजहॉट ने कहा है ”अनुकरण की संस्कृति अधिकतर समाजों में पायीं जाती है, किन्तु चर्चा और बहस का वरदान कुछ ही समाजों को मिला है,और यह आश्चर्य की बात नहीं दुनिया में कुछ ही समाज विकास के रास्ते में आगे बढ़ पाये।” यह वही बहस पसंद समाज है। आज कल के समय किसी भी मुद्दों को जाने बिना अनुकरण की बढ़ती संस्कृति का परिणाम घातक हो सकता है। इसलिए हमें बहस की ओर अधिक से अधिक झुकाव रखना चाहिए। इससे हम किसी भी मुद्दे के सामान्यीकरण से बच पाएंगे। एक तार्किक समाज में ही कला,साहित्य और संस्कृति की उचित उन्नति हो सकती है।

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     आपके समक्ष हमारा 13वां अंक प्रस्तुत है, हम आशा करते हैं कि इस पर भी आपका उचित सहयोग मिलेगा। आपकी महत्वपूर्ण प्रतिक्रियाओं व सलाह ने इसमें गुणात्मक सुधार किए हैं। इसी वजह से हम अपने पत्रिका में निरंतर बदलाव करके बेहतर की ओर अग्रसर हैं। इस अंक में आप सभी लेखकों के सहयोग के लिए हार्दिक धन्यवाद। जिस तरह आप सभी ने पत्रिका को अमूल्य सहयोग दिया है मैं विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि हमारे यूट्यूब चैनल ‘सहचर संवाद’ को उतना ही पसंद करेंगे। आप उस चैनल को सब्सक्राइब कर हमारे नए प्रयास को सहयोग दीजिये…..

                                                                      डॉ. आलोक रंजन पाण्डेय

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