अनुक्रमणिका

संपादकीय- डॉ. आलोक रंजन पांडेय बातों-बातों में  प्रो. गजेंद्र पाठक से सहचर टीम की आत्मीय बातचीत शोधार्थी हिन्दी कथा साहित्य : बाजारवाद और उपभोक्तावाद – डॉ. कमलिनी पाणिग्राही तुलसी की […]

संपादकीय

वाद-विवाद के मूल में अपने तर्कों के द्वारा अपने पक्ष को रखने पर बल दिया जाता है। वाल्टर बेजहॉट ने कहा है ”अनुकरण की संस्कृति अधिकतर समाजों में पायीं जाती […]

प्रो. गजेंद्र पाठक से सहचर टीम की आत्मीय बातचीत

सहचर टीम – नमस्कार,आपके पास बक्सर,दिल्ली के किरोड़ीमल कॉलेज और जे.एन. यू. और हैदराबाद के अनुभव हैं,आपने इन चार अलग – अलग जगहों को जिया है। बक्सर ठेठ भोजपुरी का […]

हिन्दी कथा साहित्य : बाजारवाद और उपभोक्तावाद – डॉ. कमलिनी पाणिग्राही

आज भूमण्डलीकरण के दौर में उपभोक्तावादी संस्कृति के कारण सारा विश्व बाज़ार के रूप में स्थापित हो चुका है। बाज़ारवाद से आज समाज का कोई वर्ग, क्षेत्र अछूता नहीं है। […]

तुलसी की नारी चेतना – रश्‍मि‍ पाण्‍डेय / डॉ. सुशीला लड्ढा / डॉ. सुनील ति‍वारी

तुलसी की नारी संबंधी भावना उनके दार्शनि‍क मतवाद पर आधारि‍त थी। उन्‍होंने शंकराचार्य के समान माया का केवल अवि‍धारूप ही नहीं देखा था वरन् उसका दूसरा पक्ष जो जगत को […]

स्वयं प्रकाश की लोककथात्मक कहानियों में जनपक्षधरता – बीरज पाण्डेय

प्रत्येक भाषा का अपना साहित्य होता है जो लोक कथाओं, लोक गीतों, मुहावरों व कहावतों तथा समसामयिक सृजन के रूप में विद्यमान रहता है। इनमें लोक कथाओं की अपनी विशिष्ट […]

दक्षिण कोरिया में हिन्दी : एक सिंहावलोकन – द्विवेदी आनन्द प्रकाश शर्मा 

भूमिका वैश्वीकरण की वजह से विदेशी भाषाओं को सीखने की माँग बढ़ी हैl उभरते हुए विशाल बाज़ार के रूप में भारत विश्व का ध्यान आकर्षित कर रहा हैl भारतीय अर्थव्यवस्था […]

मुक्तिबोध की रचनाएँ: परिपूर्ण क्षणों की अपूर्ण अभिव्यक्तियाँ – सौरभ कुमार यादव

मुक्तिबोध, हिंदी साहित्य के क्षेत्र में एक ऐसा नाम है, जिसका लोहा हर कोई मानता है या कहिये कि हर किसी को मानना पड़ता है। कविता, कहानी, आलोचना हर क्षेत्र […]

गांधी और स्त्री सम्बन्धी सवाल – डॉ. संजीव कुमार तिवारी

भारतीय सन्दर्भ में आधुनिकता पर विचार प्रारंभ करते ही नारी विषयक चिंतन की भूमिका महत्त्वपूर्ण हो जाती है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के विचार के केन्द्र में जो स्वराज, स्वतंत्रता, स्वावलम्बन […]