प्रस्तावना:-

आधुनिक युग संचार तकनीकी का युग है। संचार माध्यमों के द्वारा ही इंसान हर खोज खबर को देख और पढ़ लेता है। आज इस कोरोना महामारी में लोगों का संपूर्ण कार्य इन संचार माध्यमों से ही हो रहा है। लॉकडाउन के दिनों में भी वहीं संचार माध्यमों से अपना मनोरंजन तथा अपनी जॉब को संभाले हुए हैं, अपनों से भी वहीं संचार माध्यमों से ही जुड़ा है। इंसान अपने मनोरंजन तथा अपनी भावनाओं के लिए इन संचार माध्यमों का सहारा लेकर उन्हें व्यक्त करता है। भारतीय फिल्म का प्रभाव जनता पर सर्वाधिक पड़ता है क्योंकि वह चाहे अमीर हो या गरीब पढ़ा लिखा हो या अनपढ़ भारतीय सिनेमा सबको समान रूप से प्रभावित करती है। मनोरंजन का सबसे सर्वश्रेष्ठ साधन सिनेमा ही है, सिनेमा में समाज को प्रदर्शित किया जाता है, व्यक्ति अपने दुख को थोड़ी देर के लिए भूल जाता है। जिस प्रकार साहित्य समाज का दर्पण होता है उसी प्रकार सिनेमा भी समाज का रूप दिखाता है।

सिनेमा मनोरंजन के साथ-साथ शिक्षाप्रद बातें प्रदान करता है। प्राचीन फिल्मी सफर में एक फिल्म बनाने के लिए मात्र नायक ही नहीं होता, नायिका की भूमिका भी अहम होती है, बिना अभिनेत्री की कोई फिल्म बन ही नहीं सकती। फिल्म जगत की शुरुआत में नारी का रूप सीमित था वह गुंडों से गिरी है तो उसे नायक द्वारा बचाया जाता है, डरी सहमी नायिका का, प्रेम की मूर्ति कुछ गानों तक ही सीमित थी आंसू से घिरी हुई, परिवार के खातिर,  प्रेम का गला घोट कर दूसरों से विवाह करना ऐसी कई भूमिकाओं में नायिका नजर आती थी। हिंदी फिल्म की नायिका लंबे समय तक अपनी इसी छवि में बंधी हुई दिखाई पड़ती थी। फिल्में अक्सर नायक प्रधान ही रही है क्योंकि हमारा समाज पुरुष प्रधान रहा है। नायक को ज्यादा दिखाया जाता है। एक्शन करते हुए गुंडों से लड़ते हुए दिखाएं गए हैं। हर प्रकार से पुरुष प्रधान ही सिनेमा जगत में सर्व परी दिखाई देता है। भारतीय सिनेमा  लंबे समय तक नायक प्रधान रहा है।

भारतीय दर्शक भी नायिका को संस्कारी एवं  पतिव्रता देखने में खुश थे। नायिका केवल नाममात्र की ही होती थी, गले में मंगलसूत्र, माथे पर सिंदूर, बिंदी लगाए, वह साड़ी पहने पर्दे पर दिखाई देती थी, उसका पति चाहे दूसरी स्त्री से प्यार करे, शराबी हो, लेकिन वह फिर भी उसकी बनी रहकर यही कहती थी कि “भला है बुरा है जैसा भी है मेरा पति तो मेरा देवता है।” नायिका का पति  कैसा ही निकम्मा, शराबी हो, पर उसे वह छोड़ेगी नहीं ऐसी नायिका को आम दर्शक भी देखना चाहता था लेकिन धीरे-धीरे समय बदलता गया तो भारतीय सिनेमा में भी काफी बदलाव आया है। हिंदी फिल्म जगत में निरंतर नारी की छवि बदलती हुई दिखाई देती है, धीरे-धीरे वह नायिका से खलनायिका भी बनी है।  पुरुष प्रधान फिल्म की जगह अब नायिका प्रधान फिल्में बनने लगी है, नायिका अपनी सास, अपने पति के जुल्मों का प्रतिकार करने लगी है, खुद घर की चारदीवारी से बाहर निकल कर नौकरी करने लगी है।

सिनेमा में नारी का बदलता रूप :-

फिल्मों में नारी जीवन के कुछ पहलू को उठाया जाने लगा है।  नारी के जीवन से जुड़ी बातें, उसके अनुभव, उसकी समस्याएं या यूं कह दूं कि नारी जीवन की सामाजिक, पारिवारिक मुद्दों को फिल्मों में उठाया गया है अब नायिका प्रधान फिल्में बनने लगी है, दामिनी, खून भरी मांग, लज्जा, मृत्युदंड, जख्मी औरत आदि फिल्मों की नायिकाओं ने हिंदी फिल्मी जगत में नारी के लिए नई राह बनाई है। बैंडिट क्वीन, मदर इंडिया, गजगामिनी, जुबेदा, जैसी फिल्मों में भी नारी का चित्रण किया गया है। हिंदी सिनेमा जगत के द्वारा नारी अपने अस्तित्व को तलाश रही है।  हर दशक में नारी के  अलग-अलग रूप उभर कर  सामने पर्दे पर दिखाए  गए हैं।  आदर्श पत्नी, प्रेमिका की भूमिका निभाने वाली नारी अब नौकरी पेशा करने वाली वर्किंग वूमेन बन गई है। अब तो ऐसी स्थिति को भी फिल्मी पर्दे पर दिखाया जाता है डर्टी पिक्चर में कैसे संघर्ष करती स्वयं को गिराकर उन्नति की राह पर बैठी नायिका को दिखाया है। ‘क्या कहना’ मैं कुंवारी मां बनना तो कहीं लिव इन रिलेशन में रह रही नारी को भी पर्दे पर प्रदर्शित किया गया है।  घर के अंदर भी कई समस्याएं एक नारी को होती है उसे भी फिल्म में बताया जाने लगा है। समाज में नारी, घर में अपनों के बीच सुरक्षित नहीं है देह, यौन शोषण होता है, उसे समाज के डर से दबाया जाता है।  इन सभी बात को तथा सच्ची घटनाओं को भी हिंदी फिल्म जगत पर्दे पर प्रदर्शित कर रहा है।  प्यार में धोखा, उसका शोषण होने पर भी हथियार भी उठा लेती है नारी। ‘मैरी कॉम’ फिल्म में नायिका प्रधान फिल्म है जो उसकी सफलता की कहानी है जो नारी जगत के लिए प्रेरणा की तरह है शून्य से शिखर तक पहुंचने की एक कहानी है।  नारी विमर्श फिल्मों में एक नया स्वर बनकर उभरा है जो नारी के जीवन के सभी पहलुओं को स्पष्ट करता है।  21वीं सदी में सूचना प्रौद्योगिकी के युग में समाज में परिवर्तन के साथ हो नारी के जीवन में भी परिवर्तन आया है और यह हिंदी फिल्म जगत में हमें स्पष्ट दिखाई देता है।

वर्तमान नारी रूप और फिल्म :-

नायिका जहां पुराने दशक के सिनेमा जगत में साड़ी में लिपटी हुई रहती थी वहीं वर्तमान में कम से कम कपड़े अंग प्रदर्शन के द्वारा आकर्षक दिखना चाहती है। अभिनय से लोहा मनवाने वाली सुंदर कपड़े मेकअप अंग प्रदर्शन को भी महत्व देने लगी है। नायिका प्रधान फिल्मों ने भी समाज का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। विवाह का मंडप छोड़कर प्रेमी के साथ या कैरियर के लिए भाग जाना, अपने अस्तित्व को खोजना, घर से लेकर बार रैंप तक राजनीति के फलक पर चमकती नारी का चित्रण हिंदी सिनेमा में हुआ है।  ‘शादी में जरूर आना” फिल्म में नारी अपने कैरियर के लिए विवाह मंडप से भी भाग जाती है, ‘बैंडिट क्वीन’ फिल्म एक भारतीय महिला डकैत फूलन देवी के जीवन पर आधारित है, ‘चांदनी बार’ मुंबई में कई महिलाओं के अंधेरे और असहाय जीवन को प्रकाश में लाती है। ‘मदर इंडिया’ को भारतीय सिनेमा में क्लासिकल फिल्म माना गया है, नरगिस ने अपनी अदाकारी से अमिट छाप छोड़ी है। ‘इंग्लिश विंगलिश’ फिल्म एक साधारण हाउसवाइफ महिला की कहानी है जो अंग्रेजी नहीं आने से मजाक बनती है लेकिन अपनी दृढ़ निश्चय से वह अंग्रेजी सीख कर सबके सामने अंग्रेजी में स्पीच देती है, सबको नजरें झुकाने के लिए मजबूर कर देती है।

निष्कर्ष :-

हिंदी फिल्म सिनेमा जगत में 21वीं सदी में नारी का रूप बदल चुका है। नारी प्रधान उनकी समस्याएं, समाज में हुए बदलाव, उसकी सफलता, उसकी सच्ची घटनाएं आदि विषयों पर फिल्में बनने लगी है। नारी छोटे छोटे कपड़ों में अंग प्रदर्शित करती, शोषण का प्रतिकार करती नारी नजर आती है, नारी दंगल में भी पहलवानी करती दिखाई देती है।  इस प्रकार पुरुष प्रधान की फिल्मों में वह मात्र प्रेमिका पत्नी मात्र बनकर रह कर अपने अस्तित्व को सिद्ध करती हुई फिल्म में नजर आने लगी है।  फिल्म जगत में नारी का रूप बदल गया है।

सन्दर्भ ग्रंथ सूची :-

  1. भारतीय सिनेमा में स्त्री विमर्श, तेजस पूनियां https://hastakshep.com/news-2/entertainment-and-bollywood/women-in-indian-cinema/cid3256887.htm
  2. हिंदी सिनेमा में स्त्री विमर्श का स्वरूप, डॉ. एम. वेंकटेश्वर http://m.sahityakunj.net/entries/view/hindi-cinema-mein-stri-vimarsh-kaa-swaroop
  3. हिंदी सिनेमा में स्त्री की बदलती छवि, डॉ. कल्पना गवली , http://amstelganga.org/हिंदी-सिनेमा-में-स्त्री-क/
  4. हिंदी सिनेमा में नारी चेतना, डॉ स्वेता चौधरी, https://shwetashindi.blogspot.com/p/blog-page_89.html
  5. फिल्मों में ‘महिलाओं की स्थिति’, अमर उजाला ,18 अगस्त 2013 https://www.amarujala.com/lucknow/women-position-in-film-industry
  6. हिंदी सिनेमा को महिलाओं ने दी अलग पहचान, हिंदी न्यूज़ , गुरूवार 7 मार्च 2013 https://www.jagran.com/women-empowerment/for-classical-actresses-play- a-vital-role-in-hindi-cinema-10194717.html
  7. बदलती छवि का पर्दा ,लेखिका :- प्रतीक्षा पांडेय , जनसत्ता नवंबर 25 ,2015 https://www.jansatta.com/duniya-mere-aage/bollwyood-cinema-hindi-cinema-cinema-change-films-movie-film-festival/51183/
  8. भारतीय सिनेमा की नयी स्त्री, यशवनी पांडेय

https://yashaswinithethirdeye.blogspot.com/2018/10/bhaarateey-sinema-kee-nayee-stree.html

 

पंकज गौड़
शोधार्थी हिंदी विभाग
ज्योति विद्यापीठ महिला विश्वविद्यालय, जयपुर

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