जाती हुई सर्दी का महीना था। यही कोई लगभग 3, 3:30 का वक्त था। इस वक्त सर्दी कम ही थी पर मैंने कोट पहन रखा था । क्योंकि जब सुबह 9बजे, घर से चलता था तब सर्दी काफी होती।और शाम 5बजे लोटता तब सर्दी आपना प्रभाव जमा लेती थी। मैं बात कर रहा हूं उन दिनों की ,जब मैं नोहर के हायर सेकेंडरी स्कूल में पढ़ता था। इस सर्दी के मौसम में पसीने से लथपथ हूं। मेरे यह पसीना इस सर्दी के मौसम में कैसे आया यह बात जानने के लिए हमें दो साल पीछे की ओर जाना पड़ेगा।
 2015की जुलाई का महीना था। मैं और मेरे साथियों ने गांव बड़बिराना के सरकारी स्कूल से दसवीं की कक्षा पास कर ली। हमें आगे की पढ़ाई जारी रखने के लिए नोहर के पेड़ीवाल स्कुल में जाना पड़ा। इस स्कुल का नाम पेड़ीवाल तो कागज कारवाई तक सीमित रह गया।यह स्कुल हायर सेकेंडरी के नाम से जाना जाता है। मेरे साथी कोई ज्यादा नहीं थे, मुझे छोड़कर चार ओर। पहला सुनील बसेर जो हम सभी का लीडर ना होते हुए भी हमें लीडर लगता।इसका मतलब यह नहीं है कि हम सुनील से डरते थे। इसलिए की हम सभी इस का समान करते थे और इसकी  बात को काटते नहीं थे। सुनील गांव में अपना ज्यादातर समय हमउम्र के साथीयों में बैठने की वजाय बूढ़े बढेरों में समय बीतता था। और वहां से उन लोगों के मारे हुऐ डायलॉग को बात बता पर हम पर यूज करता।
जिस से पूरी क्लाश में हंसमुख था।क्लाश को दिनभर हंसाता,कभी कभी ज्ञान की भी बात करता था।इस बात से पूरी क्लाश इसे ताऊ कहकर बुलाती थी।इस ताऊ नाम से सुनील भी खुश था। दूजे साथी का नाम है बलवीर उर्फ डांगी।जो हम सभी में से शरीर का हटाकटा था। डायलॉग बाज तो यही बहुत था पर इसके डायलॉग लड़कों तक सिमीत थे। इस के डायलॉग सुन
मुस्कराने वाली लड़की यही कोई पांच फुट हाइट, शरीर से हल्की सी भारी और भरी हुई छाती के साथ गालों पर पड़े गढ़े जो क्यूट बनाकर  क्लास की अन्य
लड़कियों से अलग कर रहे थे।मुझे महसूस हुआ कि जिस काम के लिए बैठा था, वह अब पूरा होने वाला है।
सुनील पीछे बैठे लड़के की किताब देखने में व्यस्त था। किताब भी इस तरह से देख रहा था जैसे कि एक साथ सारी पढ़ देगा। किताबें जिनके पहले एडमिशन हो जाए उनको पहले मिलती और बाद वालों को बाद में।
मैंने सुनील के अंगुली लगाई और पूछा।
-आगे वाली लड़की कैसे है?
-दोनों में से कौनसी ? सुनील ने प्रश्न करते हुए कहा।
-छोटी वाली। मैंने आंखों से इशारा करते हुए बताया।
-चोखी है। सुनील ने मुस्कुराते हुए कहा।
-चोखी के, बडी भारी है।
और हम दोनों एक दूसरे की तरफ देखकर हंसने लगे।
अभी तक हम दोनों ने यह कन्फर्म नहीं किया था कि इसके साथ  सेटिंग कौन करेगा? पहली बार हम किसी अनजान शहर में किसी अनजान लड़की पर कांउटर मार रहे थे।
अब हम दोनों ही इस लड़की से बात करने के बहाने तलाशने लगे। कभी उससे पेन मांगना, कभी किताब,तो कभी उसका रजिस्टर लेना।ये सब मेरे किसी अनजान से बात करने के हथियार थे।
-आपके पास दो पेन हैं क्या, मैंने अपनी जेब की तलाशी लेते हुए कहा।
-हां, अपनी बैग की चेन खोलकर उसने पेन निकाल कर  हल्की सी मुस्कान के साथ मुझे दे दिया।
मेरी नजर उसके पेन से ज्यादा उसकी मुस्कान पर थी। आप पांच नंबर सेक्टर में रहते हो क्या? मैंने एड्रेस जानने के लिए ट्रिक फेंका।
-नहीं तो, मैं तो असरजाणा से आती हूं। उसने अपना एड्रेस बताया। इस स्कूल में नोहर के आसपास के गांव जैसे भूकरका, देईदास ,असरजाणा,अरड़की अन्य कई गांवों के लड़के लड़कियां पढ़ते थे। उसके गांव के नाम से यह तो पता चला वह नोहर की किन किन गलियों से आती है।
अब उसका नाम जानने के लिए मैंने दूसरा ट्रिक फेंका। -आपका नाम शिल्पा है ना, मुझे पता था इसका नाम शिल्पा नहीं है।
-प्रियंका,  उसने अपनी बैग की चैन बंद करते हुए कहा।
-प्रियंका जी,मैंने उसके नाम के पीछे जी लगाया तो वह खुलकर मुस्कुराने लगी।
प्रियंका अपने साथ बैठी एक लड़की जो उससे एक या दो इंच ऊंची थी।गेहुंआ रंग के साथ एक एक दो  फुंसी होकर ठीक होने  के निशान चेहरे पर दिख रहे थे।
प्रियंका ने जो हमारे दोनों में बात हुई थी, वो सब उसको बता दी। मैं और सुनील ,प्रियंका के बारे में बातों में लगे थे। प्रियंका और उसकी सहेली पीछे मुड़कर हमसे बोली।
– आपका कौनसा गांव है, हंसकर पूछा।
-बड़बिराना , सुनील ने बताया। मैं मन ही मन इस बातचीत से खुश था। लग रहा था कि बात बन जाएगी।
-मेरा नाम तो पूनम है आपका क्या नाम है? उस लड़की ने हम में इंट्रेस्ट लेते हुए कहा।
-अरे वाह पूनम,कितना सुन्दर नाम है।आप लग भी पूनम ढिल्लो सी रही हो। सुनील ने काउंटर मारा।
पूनम जोर से हंसने लगी और बोली-सच्ची ।
-बिलकुल, आपकी खूबसूरती के सामने फिल्मी हिरोइन भी कम है,मैंने सुनील की बात को ऊपर की ऊपर संभालते हुए कहा।बातों ही बातों में यह भी पता चल गया की वह अरडकी से आती है।
हम चारों तो गांव से है । हमें बाजार वालों से क्या मतलब?
-सही कहा सुनील। पूनम ने अपना फैसला सुनाया।
ऐसे ही छोटी छोटी बातें करते करते हम चारों एक गुट में रहने लगे। मैं इन दोनों को झूठी मुटी गांव गुहाड़ की कहानियां सुनाता और कहानियों में मसाला डालने में सुनील कसर नहीं छोड़ता।
कभी कभी तो आधी से ज्यादा क्लास इक्कठी हो जाती और मुझे थोड़ी बहुत जलन सी महसूस होती। मैं अब उस वक्त ही प्रियंका और पूनम से बातें करता जब वे अकेली होती। मैं भी किसी न किसी बहाने से उनके पास पहुंच जाता।
जब भी स्कूल की छुट्टी होती तो प्रियंका अपने गांव असरजाणा के लिए हायर सेकेंडरी से टैगोर चौक के पास से होती हुई राणी बाजार की गलियों से अपने बस स्टैंड जाती। मैं उसके पीछे पीछे कुछ कदम चलता।  आगे चलकर किसी बहाने से उसे बतला लेता। और फिर उसके साथ चलता। कई बार तो उसने पूछ लिया।
– सतीश तुम्हारा अड्डा तो यहां से बहुत दूर है, फिर तुम यहां कैसे?
-राणी बाजार में जो स्टेटबैंक है , वहां जा रहा हूं।
मेरे बैंक अकाउंट से आधार कार्ड हट गया है।
-फिर तो हम कई दूर तक साथ चलें।
-बिलकुल प्रियंका जी, मेरा बैंक में कोई काम नहीं था। न ही मुझे इस राणी बाजार जो कपड़ों का बाजार है वहां से कोई कपड़े खरीदने थे।बस यूं ही इसके साथ बातें करना ,साथ साथ चलना अच्छा लगता है। शाम को मैं और सुनील गांव के सरकारी स्कूल में घंटों तक प्रियंका पर चर्चा करते। मुझे लगा कि यह दुनिया और मेरी जिंदगी की आखिरी लड़की है। रात भर प्रियंका को खुश करने के प्लान सोचता।
कई दिनों बाद सुनील क्लास की एक अन्य लड़की के साथ कनेक्ट हो गया था। इन दिनों फ्रेंडशिप आम खास बात थी। मेरी क्लास की कुछ लड़कियां पड़ोस की क्लास के लड़कों के साथ प्यार में उलझी हुई थी। आधी छुट्टी में क्लास की लगभग सभी लड़कियां हॉल में चली जाती।  बची हुई एक दो लड़कियां क्लास की कूंट में छुपकर अपने लवर के साथ खड़ी खड़ी बात करती और लड़़के कुछ तो बीड़ी सिगरेट, पीने रेलवे स्टेशन पर चले जाते और कुछ नई लड़की सेट करने के चक्कर में अन्य क्लासों के आगे चक्कर लगाते। प्रियंका को यह सब अच्छा नहीं लगता था, पर उसने कभी खुलकर विरोध नहीं किया।जब हम बात करते तो इस विषय पर कई बार चर्चा हुई। मुझे इस प्यार मोहब्बत वाले सब्जेक्ट में कुछ ज्यादा ही इंट्रैस्ट था,पर पता नहीं क्यों, मैं भी प्रियंका का समर्थन करने लगा था। उसकी हर एक बात मुझे अच्छी लगने लगी थी। इस बात का निर्णय लेना मेरे लिए बहुत मुश्किल था कि उसकी बात सही है या गलत।
जिस दिन प्रियंका स्कुल नहीं आती।उस दिन पूनम के साथ बातें होती, प्रियंका के बारे,आधी छुट्टी तक। आधी छुट्टी के बाद मैं घर आ जाता।पता नहीं क्यों स्कूल में मुझे सूना सूना सा लगता,और क्लास की दीवारें मुझे खाने को दौड़ती। मेंने कभी प्रियंका के सामने ऐसी कोई बात या हरकत नहीं करता जिससे उसको बुरा लगे। और वो मुझसे नाराज़ हो जाए। उन दिनों मेरे अन्दर एक डर घर कर गया था। वो डर यह था कि, अगर वो मुझसे नाराज़ हो जाएगी तो क्या होगा? प्रियंका एक दिन गुमसुम बैठी थी। मुझे यूं लगा कि मुझसे कोई गलती हो गई है और वो मुझसे नाराज़ है। मैंने प्रियंका से चोरी छुपे पूनम से जाकर पूछा- तुम्हारी और प्रियंका की आपस में लड़ाई हुई है क्या? मुझे पता था की इन दोनों की कोई लड़ाई नहीं हुई।
-ना तो , अगर तूं मेरे बारे में प्रियंका को पता न चलने दे तो बताऊं,पूनम ने जासूसी तरीके से कहा।
-तुम्हारी उम्र की कसम ,किसी को नहीं बताऊंगा। मैंने उसका नाम न बताने का भरोसा देते हुए कहा। पर मुझे थोड़ा बहुत पूनम के चेहरे से आभास हुआ कि कोई बुरी खबर बताने वाली है।
– प्रियंका एक लड़के से प्यार करती है, और रात इन दोनों की फोन पर तूं -तूं ,मैं -मैं ,हो गई।
पूनम की यह बात सुनकर मेरे पैरों में थडे़ से बंध गए। बेचैनी के साथ जी घबराने लगा और कुछ देर बाद शरीर में बुखार आने लगी। मुझे पता नहीं क्यों यूं लग रहा था किसी ने धोखे से मेरा सब कुछ छीन लिया हो। कुछ देर बाद अपने-आप को संभाल कर सोचने लगा कि मेरे लिए प्रियंका तो टाइमपास थी फिर ये शरीर में हाड़-तोड़ बुखार क्यों?
                                 सतीश सम्यक
                                                                           बड़बिराना, नोहर, हनुमानगढ़
                                        राजस्थान

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