राष्ट्र के प्रति प्रेम भावना ही ‘राष्ट्रीय भावना’ या ‘राष्ट्रीयता’ कही जाती है। राष्ट्रीयता या राष्ट्रीय भावना जब तक राष्ट्रीय चेतना नहीं बनती तब तक उसमें सम्पूर्णता निर्धारित नहीं होती क्योंकि भावना में श्रद्धा, निष्ठा तथा भक्ति तो होती है परन्तु कभी-कभी ज्ञान, विवेक तथा जाग्रति का अभाव रहता है। अतः भावना का एक और अगला पड़ाव सामने आता है ‘चेतना के रूप में’, जिसमें श्रद्धा, निष्ठा और भक्ति के साथ ज्ञान, विवेक और जाग्रति का समन्वय होता है। इस प्रकार राष्ट्रीयता या राष्ट्रीय भावना की आगामी चैतन्य यात्रा का नाम ही ‘राष्ट्रीय चेतना’ है। किसी भी राष्ट्र का अस्तित्व उस राष्ट्र की चेतना शक्ति पर प्रतिष्ठित होता है। इसी के उत्थान और पतन के साथ राष्ट्र का उत्थान और पतन होता है। वस्तुतः राष्ट्रीय चेतना किसी भी ‘राष्ट्र’ की आत्मा होती है, यह मानव की एक मूलभूत आन्तरिक चेतना है, एक प्रकार की साहचर्य भावना है, जिसका विकास एकानुभूति रखने वाले जनसमुदाय में होता रहता है। राष्ट्र के साहचर्य भावों के साथ प्रस्फुटित होने वाली यह ‘चेतना’ ही ‘राष्ट्रीय चेतना’ बनती है। यह राष्ट्रीयता का सही, सम्पूर्ण और सुयोग्य स्वरूप है। राष्ट्रीय चेतना राष्ट्र की जननी है, उसकी धारणा शक्ति है। वह मानव मन में प्रादुर्भूत एक अत्यंत प्रबल भावना है, जिसका विकास उत्तरोत्तर होता रहता है।
राष्ट्रीयता का जन्म देशभक्ति के आधार पर होता है और हमारे देश के साहित्यकारों एवं कवियों ने माता तथा मातृभूमि का वर्णन केवल इसीलिए ही नहीं किया है कि माता जन्मदात्री है और मातृभूमि पर हम निवास करते हैं, अपितु इसलिए भी किया है क्योंकि इन दोनों का संबंध हमारे जीवन की विविध प्रवृत्तियों एवं धारणाओं से भी हैं।
सुभद्राकुमारी चौहान के विषय में कहा जा सकता है कि उनका रचना संसार देशभक्ति की भावना से रंगा हुआ है और उनकी रचनाओं में देश की की मिट्टी की महक को अनुभव किया जा सकता है।
कवयित्री की कविता में राष्ट्रीय चेतना का विस्तृत रूप देखने को मिलता है। इनकी कविताओं में भारतीय संस्कृति में आस्था और प्राचीन इतिहास के गौरव परिलक्षित होता है। उनकी देशभक्ति की कविताओं ने जन-आंदोलन का काम किया, लोगों में जागृति फैलाई और देश की स्वाधीनता के लिए उत्साह जगाया है।
देशभक्ति की भावना अन्य दूसरी भावनाओं से ऊपर हुआ करती है। क्योंकि देश-परिवार, समाज, समुदाय आदि सभी से बड़ा होता है। सच्चा देशभक्त अपने देश के अतीत-वैभव एवं गौरव को बकरार रखने के लिए अपने प्राणों की आहुति दे देता है। भारत का इतिहास अतीत के गौरवशाली पृष्ठों से भरा हुआ है। क्योंकि यहाँ एक से बढ़कर एक दिग्गज देशभक्त कवि पैदा हुए हैं जिनमें प्रमुख – मैथिलीशरण गुप्त, माखनलाल चतुर्वेदी, सुभद्राकुमारी चौहान आदि रहे हैं। देशभक्त की भावना से ओत-प्रोत कविता ‘झाँसी की रानी’ की कुछ पंक्तियाँ इस प्रकार है –

“सिंहासन हिल उठे, राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,
बूढ़े भारत में भी आयी फिर से नयी जवानी थी,
गुमी हुई आजादी की कीमत सबने पहचानी थी,
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी,
चमक उठी सन् सतावन में
वह तलवार पुरानी थी।
बुन्देले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।”1

देश प्रेम की भावना ही काव्यगत राष्ट्रीय चेतना का केन्द्र बिंदु है। यह राष्ट्रीय काव्य की प्रथम प्रमुख और महत्त्वपूर्ण विशेषता है। इसलिए देश प्रेम की भावना को राष्ट्रीय चेतना का मूलाधार समझा जाता है।
वहीं अतीत का गौरव-गान राष्ट्रीय चेतना को जाग्रत करने का एक महत्त्वपूर्ण आधार है। इनकी कविताओं में अतीत का गौरवगान अत्यन्त स्पष्ट शब्दों में अभिव्यक्त हुआ है। इनके काव्य का ओजस्वी भाव देशवासियों में शत्रुओं को लोहे के चने चबाने की शक्ति और साहस भरता है। वह ‘पुरस्कार कैसा’ शीर्षक कविता में लिखती हैं –

“इन बुन्देलों की झाँसी में
शस्त्रों बिना तार कैसा?
देश प्रेम की मतवाली को
जननी! पुस्कार कैसा?”2

साथ ही वह बताती हैं कि देश की सोई हुई शक्ति को जाग्रत करने के लिए देश के अतीत अथवा वर्तमान के वीर पुरुषों के पराक्रम एवं महानता का वर्णन काव्य में प्रस्तुत किया जाना अत्यन्त प्रभावी सिद्ध होता है। इनके काव्य में यह प्रकृति यत्र-तत्र देखी जा सकती है। स्वतंत्रता संग्राम के महत्त्वपूर्ण स्तंभ माने जाने वाले गाँधी जी तथा तिलक को कवयित्री ने प्रमुखता के साथ याद किया है। क्योंकि उन्होंने आजादी की लड़ाई को नए आयाम दिये थे। गाँधी जी एवं तिलक का प्रभाव उनके काव्य में राष्ट्रीय चेतना बनकर प्रस्फुटित हुआ है –

“तिलक, लाजपत, गाँधी जी भी
बंदी कितनी बार हुए।
जेल गये जनता ने पूजा।
संकट में अवतार हुए।।”3

कवयित्री सुभद्राकुमारी चौहान की कविताओं में जाति-पाँति संबंधी विषमता को समाप्त करने की कामना से ओजस्वी वाणी में भावात्मक उद्घोष किया है शीर्षक ‘प्रभु तुम मेरे मन की जानो’ कविता में वह लिखती हैं –

“मैं अछूत हूँ मन्दिर में आने का मुझको अधिकार नहीं है।
किन्तु देवता यह न समझना तुम पर मेरा प्यार नहीं है।”4

यही इन पंक्तियों में दर्शाया गया है कि पुजारिन अटल भक्ति और दृढ़ता से खड़ी है। समाज की रूढ़ियाँ उसे रोकती हैं। वह आँसू बहाती है, किंतु अपने आराध्य के प्रति नतमस्तक है।
इनकी सभी कविताओं में लगभग राष्ट्रव्यापी स्वर मुखरित हुआ है। उन्होंने आजादी एवं स्वतंत्रता की तीव्र अभिलाषापूर्ण कविताओं का भी सृजन किया है। वीर स्तुति की इन पंक्तियों में उनके पावन मनोभाव को दर्शाया है –

“इन कुटिया को महल समझना, हम बालक अज्ञानी।
पूजा को तैयार खड़े हैं, स्वागत! आओ महारानी।।”5

भक्ति भावना तथा अध्यात्म में एक ऐसी आत्मशक्ति है, जो ‘स्व’ से लेकर समष्टि तक में चैतन्यता भर देती है। अनिवार्यतः वह राष्ट्र की आत्मशक्ति है। जिस देश की आध्यात्मिक चेतना जितनी प्रबल और जाग्रत होती है, वह राष्ट्र उतना ही बलवान बनता है। साथ ही रचनाकार केवल भक्ति या अध्यात्मिक मार्ग पर आँख बंद कर नहीं चलता अपितु कर्म-पथ पर आँखे खोलकर चलता रहता है। जिसमें सदैव कर्मवीर की प्रेरणा होती है। कविता की राह से राष्ट्रीय चेतना को साथ लेते हुए कवि अध्यात्म की ओर आगे बढ़ता है। इस प्रकार कवयित्री की राष्ट्रीय चेतना आध्यात्मिक रंग में रंग गई है। देश प्रेम की भावना को उन्होंने आध्यात्मिक स्तर पर प्रतिष्ठित किया है, यथा –

“पापों के गढ़ टूट पड़ेंगे,
रहना तुम तैयार सखी!
विजय! हम-तुम मिल कर लेंगी
अपनी माँ का प्यार सखी।।”6

सुभद्राकुमारी चौहान की कविता में अंग्रेजों द्वारा किए गए अत्याचार एवं भारतीय वीरों द्वारा उनके सशक्त जवाब को बुद्धिमता से प्रस्तुत किया गया है। उनकी कविता इसी इतिहास का प्रतिबिंब है। त्याग, बलिदान और समर्पण के भाव उनमें सर्वव्याप्त हैं। विद्रोह का स्वर भी इनकी कविताओं में देखने को मिलता है। अगर विद्रोह इनकी कविताओं का मूल स्वर है, तो बलिदान और समर्पण उनकी प्राण-ध्वनि है।
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि राष्ट्रीय चेतना का अर्थ एकता की भावना है, जो राष्ट्रीय बल, राष्ट्रीय सुरक्षा तथा अखण्डता का आधार है। राष्ट्रीय एकता और अखण्डता की भावना राष्ट्रीय चेतना का महान बल और अनिवार्य शर्त है। कवयित्री ने राखी के माध्यम से राष्ट्र की एकता और अखण्डता का वर्णन करते हुए लिखा है –

“भैया कृष्ण! भेजती हूँ मैं
अपनी राखी, तुमको आज।
कई बार जिसको भेजा है
सजा सजा घर नूतन साज।।”7

डॉ. रामकुमार वर्मा ने ‘मुकुल’ कविता संग्रह की भूमिका में स्पष्ट बताया है कि “सुभद्राकुमारी चौहान के काव्य में विविधता होते हुए भी उनकी कविताएँ राष्ट्रीय हैं। क्योंकि उनका जीवन ही राष्ट्रीय भावमय है। सच्चे अनुभवों ने उनकी इन कविताओं को अधिक स्पष्ट और हृदयग्राही बना दिया है… इन्होंने अपनी राष्ट्रीय कविताओं में वीर भाव के साथ ही साथ भावुकता भी इस प्रकार भर दी है कि उन कविताओं का मूल्य वस्तुतः देश के मूल्य के बराबर हो जाता है।”8
निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि सुभद्राकुमारी चौहान आधुनिक हिन्दी राष्ट्रीय काव्यधारा की महान कवयित्री है। हम देखते हैं कि कइयों के अन्दर एक ऐसी दृष्टि होती है, जो कलम की नोक पर आकर वीर रस का काव्य बन जाती है या वही दृष्टि राजनैतिक और सामाजिक आंदोलनों को जन्म देती है सचमुच ही वह दृष्टि सुभद्राकुमारी चौहान की लेखनी में भी थी।

संदर्भ ग्रंथ सूची –
1. सुधा चौहान, भारतीय साहित्य के निर्माता सुभद्राकुमारी चौहान, शीर्षक कविता ‘झाँसी की रानी’, पृ. 80, साहित्य अकादेमी, दिल्ली, प्रथम संस्करण, 1981.
2. सुभद्राकुमारी चौहान, पृ. 114, मुकुल तथा अन्य कविताएँ, हंस प्रकाशन, इलाहाबाद, 1980.
3. वही, पृ. 97.
4. वही, पृ. 174.
5. वही, पृ. 101.
6. वही, पृ. 82-83.
7. वही, पृ. 76.
8. सुभद्राकुमारी चौहान, भूमिका डॉ. रामकुमार वर्मा, पृ. 13, मुकुल तथा अन्य कविताएँ, हंस प्रकाशन, इलाहाबाद, 1980.

निधि मिश्रा
शोधार्थी
दिल्ली विश्वविद्यालय

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