सारांश

आधुनिक हिंदी साहित्य के लेखकों में मुंशी प्रेमचंद जी अग्रणी माने जाते हैं। मुंशी प्रेमचंद जी उर्दू साहित्य में भी उतने ही प्रसिद्ध हैं जितने की हिंदी साहित्य में । एक उपन्यासकार, कथाकार और कहानीकार होने के साथ-साथ मुंशी प्रेमचंद जी एक समाज सुधारक और विचारक भी थे। समाज की तत्कालीन वास्तविक परिस्थितियों का वर्णन जितनी वास्तविकता से प्रेमचंद जी ने किया है शायद ही इतनी वास्तविकता किसी अन्यत्र रचनाओं में देखने को मिलती है। अगर प्रेमचंद्र से पहले के उपन्यासकारों की बात करें तो उनके लिखने का दृष्टिकोण व्यक्तिवादी था परंतु प्रेमचंद जी ने व्यक्तिवादी परंपरा से ऊपर उठकर सामाजिक परंपरा,  सामाजिक मुद्दों, सामाजिक वास्तविकता से संबंधित रचनाओं का साहित्य में आगाज किया और उस पर खुलकर टिप्पणियां भी की।

मुंशी प्रेमचंद का वास्तविक नाम धनपत राय था। प्रेमचंद्र जी ने अपने साहित्यिक जीवन की शुरुआत उर्दू के एक सहित्यकार  के रूप में शुरू किया उन्होंने लगभग 300 कहानियाँ और उपन्यास लिखे। उनके प्रसिद्ध उपन्यास- गोदान, निर्मला, गबन, रंगमंच, और सेवासदन हैं । उनकी प्रसिद्ध रचनाओं में मैदान-ए-अमल, बे-वाह, चौगान आदि शामिल हैं। यह कहना गलत नहीं होगा कि प्रेमचंद उर्दू कहानियों के पिता थे। प्रेमचंद की प्रसिद्ध रचनाओं और उनकी कहानियों को मानसरोवर कहानी के संग्रह में आठ भागो में संग्रहित किया गया है।  प्रेमचंद्र जी उर्दू में लघु कहानियों के जनक भी माने जाते हैं, और उनके प्रमुख उपन्यासों पर तो फिल्मों का निर्माण भी हो चुका है। उनके उपन्यासों में मध्यम वर्ग तथा निम्न वर्ग के सामाजिक समस्याओं तथा जीवन के यथार्थ का चित्रण बड़े ही स्वाभाविक रूप से किया गया है उनके उपन्यासों को पढ़ कर तो ऐसा लगता है मानो आंखों के सामने वह पूरा चित्र उतर आया हो। उन्होंने हिंदू-मुस्लिम एकता पर भी जोर दिया।

मुंशी प्रेमचंद सामाजिक सम्वेदना के संवाहक माने जाते हैं वे न केवल सामाजिक संदर्भ और परिवेश में किसी व्यक्ति के अस्तित्व और मूल्य को स्वीकार करते हैं बल्कि वे यथार्थवादी चित्रण और समस्याओं के विश्लेषण में भी विश्वास करते हैं। एक लेखक के रूप में उनका उद्देश्य समाज को जागरूक करना है। प्रेमचंद का सामाजिक यथार्थवाद उनकी उम्र के किसी भी अन्य लेखक की तुलना में अधिक सकारात्मक और प्रगतिशील है। उनके लेखन में सामाजिक परिप्रेक्ष्य का अनुसरण करने वाले उपन्यासकार अधिक स्पष्ट रूप से और प्रभावी ढंग से व्यक्ति और समाज के कल्याण के बारे में कल्पना करते हैं। जीवन का यह दृष्टिकोण उनके लेखन में परिलक्षित होता है जो उनकी कला को अधिक अभिव्यंजक और सत्य बनाता है।

प्रेमचंद अपने लेखन में सामाजिक जीवन के यथार्थ का परिचय देने वाले पहले ऐसे उपन्यासकार, कहानीकार और साहित्यकार हैं जिनके उपन्यासों को देखने से जीवन के विभिन्न पहलुओं को देखने का एक नजरिया मिलता है तथा तत्कालीन समाज में व्याप्त बुराइयों तथा अत्याचारों के प्रति संवेदना को व्यक्त करने के लिए लेखनी चलाते हैं और लेखनी के माध्यम से संवेदना को व्यक्त करते हैं |अगर हम उनके प्रसिद्ध उपन्यासों की बात करें तो वह समाज में व्याप्त बुराइयों को दर्शाते हैं| मुंशी प्रेमचंद जी के सामाजिक  उपन्यास लिखने का मुख्य प्रेरणा स्रोत सामाजिक जीवन के प्रति, समाज कल्याण के प्रति उनका उत्साह था।

प्रसिद्ध उपन्यास गोदान की बात करते हैं तो उसमें जीवन के विभिन्न पहलुओं-ग्रामीण जीवन, गरीबी, अमीरों द्वारा अत्याचार, साहूकार  द्वारा अत्याचार,  व्यक्तिगत संबंध, पारिवारिक जीवन की समस्याओं, सामाजिक समस्याओं आदि को दर्शाया गया है| गोदान का अर्थ है- गाय का दान करना या उपहार देना। यह यह उपन्यास हो रही और उसके परिवार के चारों तरफ घूमता है। इस उपन्यास में होरी एक किसान है जोकि संघर्ष का प्रतीक है। होरी एक किसान के प्रतीक रूप में अपने अंदर सभी तूफान को छुपाए हुए है। इस उपन्यास में गाय का आना एक प्रतिष्ठा का प्रतीक है, होरी का भाई हीरा होरी की गाय को जहर दे देता है जो कि ईर्ष्या का प्रतीक है, भाई को बचाने के लिए पुलिस का रिश्वत लेना भ्रष्टाचार का प्रतीक है।

इस उपन्यास में भ्रष्ट राजनीतिक व्यवस्था के कारण समाज में उत्पन्न हुई बुराइयों को दिखाया गया है ।  उपन्यास में  हमें अलग-अलग विचारों के दो लोगों के बीच प्रेम और घृणा संबंधों के बारे में बताता है -मिस मालती और मिस्टर मेहता। मिस मालती पुरुषों और महिलाओं के बीच समानता पर विश्वास करती हैं जबकि मिस्टर मेहता का मानना ​​है कि समाज में पुरुषों की तुलना में महिलाओं को एक उच्च स्थान  दिया जाना चाहिए, जो कि सामाजिक प्रगति की लौ का प्रतीक है। इस उपन्यास में अन्नदाता का प्रतीक किसान जीवन के संघर्षों को जन्म से लेकर मृत्यु तक बड़े मार्मिक ढंग से दर्शाया गया है जिसे पढ़कर कोई ऐसा नहीं होगा जिसकी आंखों में आंसू ना आए तथा अपने जीवन से किसी ना किसी रूप संबंधित ना कर पाए चाहे वे उसके पूर्वजों या पूर्वजों के पूर्वज या फिर माता-पिता हो।

उपन्यास निर्मला में प्रेमचंद ने दहेज प्रथा जैसी सामाजिक कुरीतियों का पर्दाफाश किया है और बेमेल विवाह का । जिसमें युवती हमेशा पीड़ित रहती है। वास्तव में, यह उपन्यास निर्मला नाम की एक युवती की दयनीय कहानी है, जो कई बच्चों के साथ एक वृद्ध विधुर से विवाहित कर दी जाती है । अपने पति द्वारा बेवफाई के संदेह से उसे बहुत मानसिक यातनाओं से गुजरना पड़ता है।

उपन्यास रंग भूमि में सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों की एक विस्तृत श्रृंखला को दर्शाता है जिसमें ग्रामीण गरीबी,  भेदभाव, छुआछूत और पिछड़ेपन की पृष्ठभूमि में भारत और पाखंडी भारत के बीच तनाव को दर्शाता है ।  औद्योगीकरण को  इस उपन्यास में दिखाया गया है। उद्योगपति के बारे में बताया गया है।  जब तक कोई व्यक्ति अपने साथी मनुष्यों के साथ क्रूर व्यवहार नहीं करता है, वह व्यवसायी बनने में सफल नहीं हो सकता है। इस प्रकार, प्रेमचंद जी ने इस उपन्यास के माध्यम से  भारतीय गांवों में सदियों पुरानी सामाजिक परंपराओं और नए ब्रिटिश साम्राज्यवाद की लहर के बीच संघर्ष को चित्रित किया  है।

प्रेमचंद का सबसे महत्वपूर्ण उपन्यास कर्मभूमि जो राष्ट्रीय आंदोलन की पृष्ठभूमि में लिखा गया था । अपने समकालीन कई सामाजिक बुराइयों जैसे नशा और अशिक्षा, भूमि विवाद, ज़मींदारों के अत्याचारों,  मंदिरों में अछूतों के प्रवेश  पर  प्रतिबंध आदि को दिखाया गया है।

प्रेमचंद  जी ने उपन्यास गबन में  ब्रिटिश युग में भारत के निम्न मध्यम वर्ग के भारतीय युवाओं के गिरते नैतिक मूल्यों को दिखाया है। एक व्यक्ति ऊंचाइयों तक पहुंचने के लिए क्या करता है?  एक अमीर व्यक्ति के रूप में झूठी छवि को बनाए रखने के लिए और ऊंचाइयां  पर पहुचने के लिये क्या-क्या नही करता है? इस उपन्यास के माध्यम से दिखया है।  यह कहानी रामनाथ की है जो एक सुंदर, सुख की तलाश करने वाला, घमंडी, नैतिक रूप से कमजोर व्यक्ति है, जो अपनी पत्नी को जालपा को खुश करने की कोशिश करता रहता  है, जो अपनी पत्नी जलपा को गहने उपहार के तौर पर देता है, जिसे वह वास्तव में अपने अल्प वेतन से नहीं खरीद सकता है और फिर ऋणों के जाल में फंस जाता है, जो अंततः उसे गबन करने के लिए मजबूर करता है। गोदान के बाद इसे प्रेमचंद का सबसे अच्छा काम माना जाता है।

इस प्रकार यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि मुंशी प्रेमचंद के सभी उपन्यास सामाजिक परिवर्तन और गरीब किसानों के शोषण, वेश्यावृत्ति, बाल विवाह जैसी सामाजिक बुराइयों के प्रति उनके उत्साह को दर्शाते हैं, विधवाओं की समस्याएं अध्ययन और आलोचना के लिए विषय हैं। उनकी उम्र राजनीतिक उथल-पुथल और तेजी से सामाजिक-आर्थिक बदलावों का युग थी, जिसमें प्रेमचंद की प्रतिभा का उदय और फूल दिखाई दिया। जब प्रेमचंद ने लिखना शुरू किया, तो वे प्रचलित सामाजिक और राजनीतिक अशांति से असंतुष्ट थे। एक लेखक के रूप में उनका उद्देश्य समाज को रहने के लिए एक बेहतर जगह बनाना था। इसलिए वे सामाजिक मुद्दों और सामाजिक नैतिकता पर चर्चा करते हैं, जो समकालीन समाज के लिए नया है। इस प्रकार प्रेमचंद अपने समय के प्रतिनिधि लेखक बने रहे।

उपरोक्त उपन्यासों की विभिन्न विशेषताओं को देखते हुए हम यह कह सकते हैं कि मुंशी प्रेमचंद के लगभग सभी उपन्यास सामाजिक जीवन की समस्याओं, ग्रामीण जीवन की वास्तविकता तथा उनकी समस्याएं, गरीबों और किसानों का शोषण, वेश्यावृत्ति, बाल-विवाह,  बेमेल विवाह जैसी सामाजिक कुरीतियों को दर्शाते हैं उनके उपन्यासों में राजनीतिक उथल-पुथल तथा भ्रष्टाचार को भी दिखाया गया है| ऐसा प्रतीत होता है की यह बुराइयां हमारे समाज में अभी भी कहीं ना कहीं और किसी ना किसी रूप में आज भी विद्यमान है| मुंशी प्रेमचंद जी ने अपने उपन्यास के माध्यम से समाज को एक दृष्टि प्रदान की थी, समय भले ही परिवर्तित हुआ है लेकिन हमारा समाज ने प्रगति तो की है, उन्नति भी की है लेकिन अगर इन सब बुराइयों को देखते हैं तो यह बुराइयां भी प्रगति पर हैं| इन सब बुराइयों की तरफ हमारा ध्यान आकर्षित नहीं होता है क्योंकि आज आधुनिकीकरण और तकनीकी युग में इन बुराइयों ने नया रूप ले लिया है- बलात्कार, भ्रष्टाचार, निम्न तबके का शोषण, राजनीतिक भ्रष्टाचार, राजनीतिक उथल-पुथल हो| यदि हम मुंशी प्रेमचंद जी के सुप्रसिद्ध उपन्यास गोदान को देखें तो उसमें ग्रामीण जीवन के संघर्षों, गरीबों और किसानों के शोषण, तो वही निर्मला में दहेज प्रथा, बेमेल विवाह और बाल विवाह जैसी कुप्रथा तो रंगभूमि में सामाजिक, राजनीतिक उथल-पुथल, गरीबी, भेदभाव, छुआछूत और पिछड़ेपन, पाखंड और औद्योगिक क्रूरता तो आगे कर्मभूमि में समकालीन समाज की बुराइयों जैसे नशा, अशिक्षा, जमीदारों के अत्याचार, मंदिरों में निम्न तबके के लोगों के प्रवेश वर्जित होना तो वही गबन उपन्यास में मध्यम वर्ग के युवाओं में गिरते नैतिक मूल्यों, झूठी छवि बनाए रखने के लिए अनैतिक व्यवहार तथा चकाचौंध को उन्होंने अपने उपन्यास के माध्यम से यथार्थ रूप में दिखाया है| तभी तो मुंशी प्रेमचंद जी को सामाजिक जीवन के यथार्थ दृष्टा के रूप में भी जाना जाता है।

सन्दर्भ ग्रन्थ

 

डॉ. ममता देवी यादव
प्रवक्ता, जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान,
 कड़कड़डूमा दिल्ली

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *