वर्तमान परिदृश्य में मीडिया अभिव्यक्ति का अग्रणी माध्यम हो गया है। जिसमें सबसे अधिक चर्चित सोशल मीडिया है। सोशल मीडिया ने बहुत कम समय में अधिक गति धारण की है। अखबार व पत्रिका को अपनी पैठ जमाने में जहां एक लंबा समय लगा वहीं सोशल मीडिया दो दशकों में ही अपनी अच्छी पहचान कायम करने में सफल रहा है।
इस धरती के उद्भव से ही मनुष्य सामाजिक प्राणी रहा है। वह जहां भी उठता-बैठता, खाता-पीता रहा है वहाँ एक अपना समाज बनाता है। उस समाज में वर्ग व वर्ण भेद भी हमेशा से रहे हैं। मनुष्य जब अपनी अभिव्यक्ति अपने समुदाय में करता था तो अपनी बात रख सकता था लेकिन समुदाय के बाहर या सत्ता में बैठे ऊँचे लोगों तक वह अपनी बात रखने में असमर्थ था। पहले के राजा महाराजा का आदेश कोई उनका व्यक्ति एक निश्चित स्थान पर आकर लोगों के बीच सुना देता था और लोगों को वह आदेश मानने की बाध्यता थी। लेकिन समय परिवर्तनकारी होता है। धीरे-धीरे करके मानवीय जीवन में परिवर्तन हुआ। भारत में प्रेस के कारखाने खुले। कई पत्र-पत्रिकाओं पर प्रतिबंध लगा कई व्यक्तियों के लिखने और बोलने पर प्रतिबंध लगा।
आजादी के बाद भी सूचना के आदान-प्रदान बहुत धीरे माध्यम से ही हो पाते थे। सरकारी सूचनाओं के लिए हम अखबार तक ही सीमित थे। लेकिन 2004 में फेसबुक ट्विटर व यू-ट्यूब ने सूचना के प्रसार में क्रांति ला दी। एक बड़े वर्ग का जो कब्जा किताबघरों, पत्रकारिता या अभिव्यक्ति के साधनों पर था वह सोशल मीडिया के आने से एक हद तक बहुत कम हो गया। आज गलत या सही जो भी आप सोचते समझते हैं जिस भी मुद्दे पर आप कुछ कहना चाह रहे हैं वह आप फेसबुक या अन्य सोशल मीडिया के माध्यमों के जरिए कह सकते हैं। पहले कोई भी सरकारी महकमा पत्र जारी करके कोई सूचना बताता था।
अब हर एक सरकारी मंत्रालय का वेरीफाइड ट्विटर अकाउंट है और कोई भी सूचना सबसे पहले वहां से प्राप्त हो जाती है। कोई भी हर्ष या शोक की सूचना हमें दूरदर्शन या आकाशवाणी से मिलती थी आज कोई शोक या हर्ष की सूचना प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति के ट्विटर अकाउंट से पता चल जाती है। ऐसे कई लेखक या कलाकार कुछ वर्षों में बहुत प्रसिद्ध हुए हैं जो किसी प्रदेश के किसी छोटे से गाँव में अपना वीडियो बनाकर यू-ट्यूब पर अपलोड करते हैं और देखते ही देखते वह वीडियो वायरल हो जाता है।
अभिव्यक्ति का स्थान बहुत तेजी से सोशल मीडिया ने ले लिया है तथा आज के युवाओं को इसने सबसे अधिक प्रभावित किया है।
जो भी कोई चीज प्रसिद्धि पाती है तो उसमें कमियाँ भी आने लगती हैं उसका गलत प्रयोग भी होने लगता है उसका गलत उपयोग ना हो उसके लिए सरकार ने साइबर लॉ का गठन किया है। भारतीय संसद द्वारा यह अधिनियम 17 अक्टूबर 2000 को पारित किया गया। 27 अक्टूबर 2009 को एक घोषणा द्वारा इसे संशोधित किया गया और अब यह प्रभावी रूप से लागू है।

 

आशीष कुमार पाण्डेय
शोधार्थी
हिन्दी विभाग
दिल्ली विश्वविद्यालय

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