फ़िल्में साहित्य का एक अंग हैं और आर्थिक दृष्टि से बड़ा बाजार भी। बढ़ते वैश्वीकरण और संचार तकनीकी के विस्तार के कारण भारत विदेशी फ़िल्मों के लिए एक बड़ा बाज़ार बन गया है। 2016 में आई ‘द जंगल बुक’ और 2015 में ‘ज़ुरासिक वर्ल्ड” जैसी फ़िल्मों ने अपनी कुल कमाई का 10% से अधिक भारतीय बाज़ार से प्राप्त किया। 2015 की ‘फास्ट एंड फ्यूरियस-7’ ने अपनी कुल कमाई का 58% से अधिक विदेशी भाषाओं में रूपांतरित वर्ज़न से प्राप्त किया। (स्रोत: आईएमडीबी)
ये आंकड़े यह दर्शाते हैं कि विदेशी भाषा मे रूपांतरित या विदेशी सबटाइटल युक्त फ़िल्मों की मांग धीरे-धीरे बढ़ने वाली है। भारत की विशाल जनसंख्या और लोगों के सिनेमा प्रेम के आलोक में, अंग्रेज़ी सिनेमा, हिन्दी के लिए एक बड़ा अवसर उपलब्ध करता है। चूंकि हमारे देश में आज भी अंग्रेज़ी बड़े वर्ग की प्रथम व द्वितीय भाषा नहीं है और इसी कमी को हिंदी सबटाइटल के द्वारा पूरा किया जा सकता है। यद्यपि अंग्रेजी फ़िल्मों के सबटाइटल कई भाषाओं में लिखे जा रहे हैं, फिर भी हिंदी भाषा में सबटाइटल लेखन की की कमी है।
सबटाइटल क्या हैं ?
सबटाइटल सिनेमा या टीवी स्क्रीन में वीडियो के साथ-साथ दिखाए जाने वाले कैप्शन अर्थात लिखित पाठ हैं, जो संवाद को या तो लिखित रूप में दिखाते हैं (transcribe) या फिर अनुवादित रूप में (translate) । इनके द्वारा किसी फ़िल्म, टीवी कार्यक्रम या फ़िर वीडियो गेम के संवाद या कमेंट्री को सामान्यतः लिखित रूप में स्क्रीन के निचले हिस्से में दर्शाया जाता है । सबटाइटल शब्द ‘सब’(Sub) अर्थात ‘नीचे’ और ‘टाइटल’(title) अर्थात ‘उपशीर्षक’ से मिलकर बना है। कुछ जगहों जैसे ‘लाइव ओपेरा’ में संवाद स्टेज के ऊपर लगी स्क्रीन पर भी दर्शाया जाते हैं उन्हें ‘सरटाइटल’ कहते हैं।
वास्तव में सबटाइटल, किसी कमजोर श्रवण-शक्ति या श्रवण-शक्ति रहित इंसान के लिए, या फिर ऐसे व्यक्ति के लिए जो वीडियो में बोली जाने वाली भाषा को समझ नहीं पा रहा या कोई ऐसा व्यक्ति जिसके लिए उच्चारण को समझने में कठिनाई महसूस हो रही हो, उसके लिए प्रयोग किया जाता है। सबटाइटल वीडियो के साथ इनबिल्ट (Inbuilt) भी हो सकते हैं या फिर अलग से शामिल किए गए भी। कभी-कभी सबटाइटल एक अलग से बड़ी स्क्रीन को नीचे लगा कर भी प्रदर्शित किए जाते हैं, ऐसा ज्यादातर फिल्म फेस्टिवल्स में किया जाता है।
सबटाइटल की आवश्यकता क्यों ?
शुरुआत में मूल भाषा में सबटाइटल, मूलतः कमजोर श्रवण शक्ति या बहरे लोगों के लिए लिखे जाते थे, लेकिन अब सबटाइटल मूल भाषा में उच्चारण, शब्दावली और संवाद की तीव्रता की वजह से भी लिखे जाते हैं। किसी भी फ़िल्म या वीडियो में अनेक पात्र होते हैं, जो अलग-अलग स्थानों से होते हैं इस कारण उनके उच्चारण और शब्दों में स्थानीयता का प्रभाव होता है, दर्शक उस भाषा की सभी स्थानीय बोलियों से परिचित नहीं हो सकता इसलिए सबटाइटल क्षेत्रीय उच्चारण प्रभाव को कम करने के लिए आवश्यक हो जाता है। सबटाइटल से एक फायदा यह भी होता है कि बहुत तेजी से या शोरगुल वाली जगहों में बोले जाने वाला एक भी संवाद छूटने नहीं पता और इसका अपना महत्व होता है। विदेशी भाषाई लोग मूल भाषा के सबटाइटल का प्रयोग मूल भाषा और समाज को बेहतर ढंग से समझने के लिए भी करते हैं।
अनूदित सबटाइटल भाषागत बाधा के कारण प्रयोग किए जाते हैं । दर्शक उस वीडियो की भाषा से अपरिचित होता है तो वह सबटाइटल के द्वारा उससे तादात्म्य स्थापित कर पाता है । अनूदित सबटाइटल उन दर्शकों के लिए भी होते हैं जो उस भाषा की शब्दावली से व्यापक रूप से परिचित नहीं होते ।
हिन्दी में सबटाइटल का अभाव क्यों ?
हिन्दी में सबटाइटल लेखन की कमी के कई कारण हैं । प्रमुख कारण कम दर्शक और सीमित बाज़ार है और इसी वजह से इस भाषा में सबटाइटल कम लिखे जाते हैं। आज भी जो सबटाइटल हिन्दी में उपलब्ध हैं उनमें से ज़्यादातर शौकिया तौर पर, व्यक्तिगत प्रयासों का परिणाम हैं। हिन्दी में सबटाइटल की कमी की दूसरी वजह तकनीकी समस्याएँ हैं। सभी मीडिया प्लेयर्स में हिन्दी सबटाइटल का ऑप्शन नहीं होता और कुछ प्लेयर्स में हिन्दी लिपि और मात्राएँ बिखरी नज़र आती हैं। VLC मीडिया प्लेयर में छोटी ‘इ’ की मात्रा किसी व्यंजन के साथ, स्क्रीन में गलत तरीके से प्रदर्शित होती हैं और यूट्यूब जैसे प्रसिद्ध वीडियो प्लेटफार्म भी हिन्दी सबटाइटल को पूर्णरूपेण समर्थित नहीं करते। कोई भी वीडियो हजारों फार्मेट में हो सकता है जैसे- MP4, AVI, WMV, FLV, MKV, MOV और सभी वीडियो फार्मेट हिन्दी सबटाइटल को सपोर्ट नहीं करते। इसके साथ ही गैर-अंग्रेज़ी फिल्मों के निर्माता भारत को एक बड़ा बाजार नहीं मानते और अंग्रेज़ी फिल्मों के निर्माता सबटाइटल की अपेक्षा डबिंग को तरजीह देते हैं। यही कारण है कि प्रमुख सबटाइटल उपलब्ध करने वाली साइट ‘YIFI Subtitle’ में तो हिन्दी भाषा का विकल्प ही नहीं हैं और दूसरी प्रमुख साइट ‘subscene’ में कुल 15 से 20 फिल्मों के सबटाइटल हिन्दी में उपलब्ध हैं।
सबटाइटल कैसे लिखे जाते हैं ?
सबटाइटल विशेषीकृत कंप्यूटर सॉफ्टवेयर के द्वारा बनाए जाते हैं जिसमें वीडियो का प्रत्येक फ्रेम आसानी से अलग-अलग उपलब्ध होता है। सबटाइटल में न केवल संवाद बल्कि सटीक समय, अवधि व स्थान (exact time , duration and place) भी निर्धारित किया जाता है कि कौन सा संवाद कब और कहां दिखाई देगा और कितने समय बाद वह दिखना बंद हो जाएगा। इसीलिए सबटाइटल लेखन की इनकोडिंग में ‘मिलीसेकंड’ का प्रयोग होता है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया जैसे टीवी, वीडियो, डीवीडी आदि के लिए सबटाइटल ‘टाइम कोड’ (Time Code) पर आधारित होते हैं, जबकि पारंपरिक रील वाली सिनेमा फिल्मों के लिए ‘फ्रेम की लंबाई’ (Frame Length) पर ।
सबटाइटल लेखन में दो तरह से काम होता है- पहला रियल टाइम (Real Time) जिसमें किसी समाचार बुलेटिन, खेल कमेंट्री, टॉक शो, या फिर राजनीतिक घटना की कवरिंग में लगातार लेखन किया जाता है, परंतु ऐसे सबटाइटल में कुछ सेकंड की देरी होती है और बोले गए शब्द को गलत समझ लेना या टाइपिंग संबंधी गलतियां भी दिखाई देती हैं । दूसरा तरीका ‘ऑफलाइन’ (offline) है जिसमें कार्यक्रम पहले से ही उपलब्ध होता है और फिर सबटाइटल लिखे जाते हैं।
ऐसा नहीं है की सबटाइटल केवल कंप्यूटर तकनीकी जानकारों द्वारा ही तैयार होते हैं अब ऐसे सॉफ्टवेयर उपलब्ध हैं जिनसे कोई भी व्यक्ति सबटाइटल लिख सकता है जिसमें SubtitleCreator, Open Subtitle Editor, SubMagic और AHD Subtitle Maker आदि प्रमुख हैं। प्रत्येक फ्रेम में समय के हिसाब से मूल भाषा के संवाद को लिखित रूप में टाइप किया जाता है और उसका समय, स्थान और अवधि तय की जाती है । इस प्रकार तैयार फाइल ‘srt फाइल’ कहलाती है। अनूदित सबटाइटल को तैयार करने में मूल पाठ का होना आवश्यक है। यदि मूल भाषा में सबटाइटल उपलब्ध है, जो कि अंग्रेज़ी फिल्मों में ज्यादातर उपलब्ध ही होते हैं, तो उनका अनुवाद और वीडियो के साथ तादात्म्य स्थापित करने का ही काम बचता है। मूल भाषा की srt फ़ाइल को हम ‘माइक्रोसाफ्ट वर्ड’ के माध्यम से खोलते हैं। इसको खोलते समय इनकोडिंग यूनीकोड के अंतर्गत UTF-8 या UTF-16 का प्रयोग किया जाता है। यह इनकोडिंग देवनागरी लिपि को उपलब्ध कराती है। फ़िर फाइल खुलने पर अंग्रेजी में दिये गए पाठ और संवादों का अनुवाद हिन्दी में कर लिया जाता है, फाइल को सेव करने पर हिन्दी सबटाइटल तैयार हो जाते हैं। हिन्दी के सबटाइटल मूलतः अंग्रेजी से अनुवाद पर आधारित होते हैं और अंग्रेज़ी के सबटाइटल की प्रमुख वेबसाइट YIFY Subtitles, Subscene.com, Opensubtitles.org, Moviesubtitles.org, TVsubtitles.net, Subtitlesource.org आदि हैं। चुनौतियाँ और समाधान हिन्दी सबटाइटल लेखन से कई चुनौतियाँ जुड़ी हैं। इनको समझने से पहले यह समझना अनिवार्य है कि अंग्रेजी फिल्मों के लिए सबटाइटल लेखन किसी समारोह, संगोष्ठी, अधिवेशन या राजनीतिक समारोह में दिये गए वक्तव्य की तुलना में ज्यादा खुला होता है क्योंकि वक्तव्य में अनुवाद में संप्रेषणीयता और अर्थ महत्वपूर्ण होता है जबकि फ़िल्म में मनोरंजन का तत्व जुड़े होने के कारण अनुवादक के पास काफी हद तक छूट होती है। यदि हम अंग्रेजी फिल्मों के सबटाइटल लेखन की चुनौतियों पर अपना ध्यान केन्द्रित करें तो पहली चुनौती है कि हिन्दी में संवाद लंबे हो जाते हैं, जिनको टाइमफ्रेम में फिट बैठाना कठिन होता है। जैसे ब्रदर्स (2009) फ़िल्म का एक संवाद है- “To know me is to fly with me” यदि ‘गूगल ट्रांसलेट’ के द्वारा इसका हिंदी अनुवाद किया जाए तो वह है ‘मुझे जानने के लिए मेरे साथ उड़ना है’ जबकि सही अनुवाद होगा की ‘मेरे बारे में जानने के लिए आपको उड़ान के दौरान मेरे साथ रहना होगा’। दूसरी समस्या होती है -लिंग संबंधी निर्धारण की। बिना वीडियो को देखे अनुवाद नहीं किया जा सकता। यह पता होना ही चाहिए की वक्ता का लिंग क्या है? रहा हूँ, रही हूँ, जाऊंगा, जाऊँगी जैसी समस्याएँ आती हैं। तीसरी चुनौती यह है कि कई बार, अनुवाद करने से पूर्व, उस वीडियो में, उस संवाद के परिप्रेक्ष्य को समझना पड़ता है। एक फ़िल्म में नौकरी से निकाले जाने के दौरान एक अभिनेता कह रहा है- “Is there something I could do differently here?” जिसका अनुवाद किया गया- “क्या मुझे अपना काम और मेहनत से करना चाहिए था ? चूंकि वीडियो में संवाद कोई व्यक्ति बोलता है अतः उसके होंठों के साथ भी संवाद का तालमेल सही प्रतीत होना चाहिए। इसलिए सबटाइटल लेखन में, हिन्दी में अनूदित संवाद को बार-बार चलाकर देखना पड़ता है और उसके समय और अवधि का पुनर्निर्धारण करना पड़ता है। कार्टून फिल्मों में यह दिक्कत नहीं आती क्योंकि उसमें पात्रों के होंठ संवाद के अनुसार नहीं चलते। एक अन्य चुनौती यह भी आती है कि अंग्रेजी SVO भाषा है और हिन्दी SOV, दोनों में कर्म और क्रिया के स्थान अलग अलग होते हैं। इसलिए कभी-कभी बहुत अधिक लंबे संवादों के अनुवाद के दौरान ऐसी समस्या आती है कि सबटाइटल के शब्द वक्ता के शब्दों से आगे पीछे हो जाते हैं। ऐसी स्थिति में अनुवाद में वाक्य को कई छोटे छोटे भागों में तोड़कर काम चलाया जाता है। प्रत्येक भाषा का अपना एक समाज और एक संस्कृति होती हैं। अतः किसी दूसरी भाषा में सबटाइटल के अनुवाद के दौरान त्योहार, खान-पान, रहन-सहन, रीति-रिवाज संबंधी बातों का भी ध्यान रखना पड़ता है। I will meet you on thanksgiving में हिन्दीभाषियों के लिए ‘thanksgiving’ को समझना कठिन प्रतीत होगा। इसी तरह एक फिल्म Up in the air (2009) में संवाद है – “All the things you hate about travelling, digital juice dispensers, same alcohol and the cheap sushi.” अब यहाँ इस बात का ध्यान रखना होगा कि भारतीय उपभोक्ताओं ko फ्लाइट्स में किस चीज को देखने या सुनने की आदत होती है, इसलिए इसका अनुवाद किया जा सकता है कि “प्लेन में हम एक ही बात हर बार सुनते हैं- कुर्सी की पेटी बांध लीजिए, आपातकालीन दो द्वार दाईं तरफ दो बाईं तरफ। ” U know, U see, Dude, Bro, Yup, जैसे संबोधनों को हिन्दी अनुवाद करते समय इनके अर्थ और प्रसंग अलग अलग समझना पढ़ता है हम सार्वभौमिक अनुवाद से काम नहीं चला सकते । हिन्दी में रिश्तों में भी ज्यादा व्यापकता होती है तो अनुवाद के समय यह बेहतर होता है कि समझ लिया जाए कि वास्तविक रिश्ता क्या है या फिर एक रिश्ता निर्धारित करके उसी का प्रयोग बार बार किया जाय। अंकल को कहीं चाचा फिर, उसी व्यक्ति के लिए मामा नहीं लिखा जा सकता। सबटाइटल लेखन में कलर की इनकोडिंग भी की जाती हैं अर्थात संवाद किस रंग में दिखाई देगा। दर्शक की बेहतर समझ के लिए नैरेशन, एकलाप, स्वगत या स्थिति वर्णन के लिए अलग अलग रंग का प्रयोग किया जाना चाहिए। साथ ही एक महत्वपूर्ण बात यह भी है कि अंग्रेजी फिल्मों में ऐसे शब्दों और गलियों का प्रयोग बहुतायत में होता है जो हमारी भाषा में स्वीकार्य नहीं हैं। अनुवादक को भारतीय समाज और सेंसर बोर्ड को ध्यान में रखते हुए उनको अनुवादित करना चाहिए।
धीमी शुरुआत के साथ आरंभ हुआ हिंदी सबटाइटल लेखन क्षेत्र अब अपना विस्तार कर रहा है। यद्यपि हिन्दी डबिंग ज्यादा प्रचलित रूप है फिर भी सबटाइटल का प्रयोग धीरे-धीरे बढ़ रहा है क्योंकि इससे लागत व समय में बचत होती है। इसके साथ-साथ इसकी स्वीकार्यता भी युवाओं में तेजी से बढ़ रही है क्योंकि ये तीव्र गति से पढ़ने में माहिर भी हैं और अंग्रेजी से परिचित भी, इसके साथ ही वह मूल संवाद को ही सुनना पसंद करते हैं। कई अध्ययनों में यह भी सामने आया है कि मूल भाषा के सबटाइटल लोगों की साक्षरता और पढ़ने की क्षमता को भी बढ़ा रहे हैं। भारतीय शिक्षाविद ब्रज कोठारी ने इस दिशा में बड़ा काम भी किया है। ज्यादातर यूरोपीय देशों में डबिंग केवल बच्चों के कार्यक्रमों की ही जाती है अन्यथा सबटाइटल ही लिखे जाते हैं। यदि हिंदी सबटाइटल लेखन की तकनीकी कमियों को सुधारा जाय और योग्य अनुवादकों या भाषाविदों के माध्यम से अच्छे और अर्थपूर्ण संवाद अनुवादित किए जाएँ तो हिंदी सबटाइटल लेखन भी एक महत्वपूर्ण क्षेत्र बनकर उभरेगा और हिंदी के देशीय और वैश्विक प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान देगा ।
संदर्भ सूची:
https://www.quora.com/Why-dont-we-find-Hindi-subtitles-for-any-movie-or-show
https://videoconverter.wondershare.com/subtitle/subtitle-editor.html
https://en.wikipedia.org/wiki/Subtitle
http://www.imdb.com/list/ls057729668/
http://www.imdb.com/list/ls064722964/
https://en.wikipedia.org/wiki/Brij_Kothari