जीवन के करुणभाव को अभिव्यक्त करने वाली, रचनाओं में संवेदनशीलता को अमूल्यभूत आधार देने वाली कवित्री महादेवी वर्मा के नाम से जाना जाता है |महादेवी वर्मा छायावादी कवित्री के रूप में अपना शीर्ष स्थान रखती हैं।  महादेवी वर्मा जी की रचनाओं को उनके व्यक्तित्व के प्रतिबिंबित रूप में देखा जा सकता हैI उनकी रचनाओं में सजगता,  संवेदनशीलता,  सहजता और मानव मूल्य को देखा जा सकता है।  उनकी रचनाएं आज के समाज में बदली हुई सामाजिक सहकारिता और सामाजिक मूल्य का प्रकृति के साथ जुड़ाव को देखना अति आवश्यक है।  यहां तक, महादेवी वर्मा की रचनाएं समाज को एक दिशा देती हुई देखी जाती हैं। इसके साथ ही इनकी रचनाओं के माध्यम से कैसे एक मनुष्य अपने को प्रकृति के साथ संबंध स्थापित करके अपने जीवनचर्या को मर्यादित, सुनियोजित और संवेदनशील बना सकता हैI

महादेवी वर्मा एक छायावादी कवित्री के साथ एक रहस्यवादी कवित्री के रूप में भी जानी जाती हैं। इनकी रचना  ‘निहार’ उसमें से एक है।  यही नहीं इनकी व्यक्तिगत अनुभूति को प्राकृतिक, सामाजिक, राजनीतिक, पारिवारिक दृष्टिकोण को प्रदर्शित करते हुए रेखांकित की गई है।   महादेवी वर्मा की कहानी ‘गिल्लू’ जिसमें उनकी प्रकृति और जीवो के प्रति अनुभूति और उसका संबंध को देखने को मिलता है।  किस प्रकार एक गिलहरी जिसका नाम गिल्लू है जो की प्रकृति का द्योतक है उसकी संबंध महादेवी वर्मा के दिनचर्या से प्रारंभ होकर उनके क्रियाकलापों और उनके व्यवहार में प्रदर्शित होता है। महादेवी वर्मा को महाकवि की उपाधि दी गई है क्योंकि उनकी रचनाएं एक मानवीकरण को रेखांकित करती हुई संवेदनात्मक रचनाकार के रूप में स्थापित करती हैंI

महादेवी वर्मा जी ने महिलाओं की व्यथा और महिलाओं की स्थिति को अपनी रचनाओं में प्रमुखता से स्थान दिया हैI “मैं नीर भरी दुख की बदली” के माध्यम से इनकी रचनाओं में महिलाओं की व्यथा को प्रतिबिंबित किया गया है।

महादेवी वर्मा  महिलाओं की आवाज और महिलाओं के सामाजिक उत्थान, उनके अधिकारों को प्रमुखता से अपनी रचनाओं के माध्यम से सामाजिक व्यवस्था और राजनीतिक व्यवस्था में सुधार की बात करती हैं।  नारी संवेदनाशीलता की एक प्रतिबिंब के रूप में इनको इसलिए भी माना जा सकता है क्योंकि नारी की स्थिति को एक सारगर्भित सरोकारता और महत्ता को अपनी रचनाओं में प्रमुखता से दिखाने का प्रयास किया है। नारी व्यथा को समाज के सामने के रखने के लिए भी इनको जाना जाता हैI

मानव व्यक्तित्व में विरह का एक महत्वपूर्ण स्थान है  विरह वर्णन को महादेवी वर्मा की रचनाओं और उनके काव्य संकलन में देखा गया है । यही नहीं इन्होंने दो तरह की विरह का वर्णन किया है। प्रेम विरह और आध्यात्मिक विरह जो कि मानव व्यक्तित्व को प्रदर्शित करती है।

महादेवी वर्मा की रचनाओं में विरह के प्रतिबिंब को देखते हुए इनको ‘आधुनिक युग की मीरा’ भी कहा गया है।  महादेवी वर्मा की विरह वेदना को दर्शाती हुई कविता-

जो तुम आ जाते एक बार,

कितनी करुणा कितने संदेश,

पथ में बिछड़ जाते बन पराग

गाता प्राणों का तार-तार अनुराग भरा उन्माद

राग आंसू लेते वे पद पखार,

जो तुम आ जाते एक बार

 इस रचना में महादेवी वर्मा की विरह के भाव को  देखा गया है।  यही नहीं महादेवी वर्मा जी की रचना – ‘दीपशिखा’ में भी विरह की वेदना के रूप में देखने को मिलता है।  यह मानव संवेदना को दर्शाती हुई रचनाएं हैं इसलिए यह कहा जा सकता है कि संवेदनशीलता की प्रतिरूप महाकवित्री महादेवी वर्मा छायावाद की ही नहीं बल्कि आधुनिक युग में उनकी रचनाओं को महत्व, संवेदना की पराकाष्ठा और संवेदनात्मक रचनाओं में महत्वपूर्ण स्थान मिलता हैI

महादेवी वर्मा को एक संवेदनशील कवित्री के रूप में इसलिए भी देखा जा सकता है कि उनकी रचनाओं में संवेदनात्मक व्यथा को मार्मिक, करुणामयी, रचना के प्रतिबिंब के रूप में देखा गया है।  महादेवी वर्मा की रचनाओं में इन सब बातों को लेकर एक तरह का विद्रोह और आक्रोश को देखा गया हैI

महादेवी वर्मा जी की रचनाओं के पात्रों के जीवन को देखने पर ऐसा मिलता है जिसमे शोषण और शोषित दोनों का अलग-अलग स्थान है। कुछ विषयों में शोषित अपने अधिकारों को नहीं जानते, क्योंकि जागरूकता के अभाव में शोषण के शिकार होते हैं। महादेवी वर्मा ने समाज में सामाजिक कुरीतियां और महिला अधिकारों  और शोषित वर्ग के अधिकारों को पुरजोर से उठाने का प्रयास किया है।  जैसा कि रामा,  गीता,  अनुभूत की मां और  अलोपी जैसे पात्रों के माध्यम से महादेवी वर्मा ने यह बताने का प्रयास  किया है कि समाज में सामाजिक सरोकारता और सामंजस्य को बनाए रखने के लिए सामाजिक जागरूकता का होना बहुत आवश्यक है। सामाजिक अधिकारों के जागरूकता के अभाव में सामाजिक कुरीतियां, अव्यवस्था को स्वीकार करना एक व्यवस्था बन जाती है जो कि असामाजिक असंवेदनात्मकता की ओर अग्रसर करते हुए अव्यवस्थित समाज को जन्म देती हैI

महादेवी वर्मा छायावादी कवित्री के साथ-साथ एक यथार्थवादी कवित्री के रूप में भी अपने रचनाओं में संवेदनशीलता के प्रतिबिंब के रूप में  दीन-दलितों की दुर्दशा को रेखांकित करती हैं जो कि रचना अतीत के चलचित्र में देखा गया हैI

‘लछमा’ नामक पहाड़ी पात्र जो कि कई दिन से भूख से व्याकुल रहती, अंत में अपने भूख की व्याकुलता को कम करने के लिए मिट्टी खाने के लिए मजबूर बाद हो जाती है, उसके बाद वह पानी पीकर अपने को जीवित रखती है। समाज में निम्न वर्ग के यथार्थ को दर्शाते हुए उनके विभिन्न रचनाओं में काछी, कुम्हार, धोबी, भंगी, कुली, कबाड़ी, अहिर, वेश्या, अंधे, गूंगे, लंगड़े, चोर, डकैत, जुआरी शराबी आदि के सामाजिक यथार्थ को दर्शाती हैंI

‘श्रृंखला की कड़ियां’ नामक रचना को महादेवी वर्मा की एक संवेदनात्मक रचना के रूप में देखा जा सकता है, जहां पर उन्होंने नारी की व्यथा को और समाज में समाज के द्वारा शोषित पीड़ित स्त्री के रूप में रेखांकित किया है। इनकी रचना में मार्मिकता और संवेदनशीलता की अभिव्यक्ति देखने को मिलती है। समाज में नारी का क्या स्थान था?  उनके जीवन को सामाजिक स्तर पर कैसे देखा गया था?  महिलाओं की सामाजिक सरोकारता को उन्होंने अपने रेखाचित्रों में विभिन्न ग्रामीण स्त्रियों के माध्यम से प्रतिम्बिबित किया है।

‘अतीत के चलचित्र’ में महादेवी वर्मा ने एक विधवा स्त्री की व्यथा को दिखाया है:  जोकि सेठ से ब्याही गई थी। वह बाल विधवा हो गयी थी। बाल विधवा होकर किस प्रकार अपना जीवन व्यतीत करती है। महादेवी वर्मा ने उसकी व्याख्या इस प्रकार किया है जैसे कि वह अपना दर्द बताती हैं। यही रचना का स्वरूप और रचना में अभिव्यक्ति महादेवी वर्मा को एक  संवेदनशील कवित्री के रूप में स्थापित करता है जोकि जीवन की यथार्थता, करुणा, पीड़ा और व्यथा को मार्मिकता और सामाजिक कुरीतियां, उसके दुष्परिणाम को व्याख्या करती हुई रचनाएं समाज को एक नया दृष्टिकोण देने में सहायक होती हैंI

महादेवी वर्मा जी की रचनाओं और इनके योगदान को देखते हुए महाकवि निराला ने इनको हिंदी के विशाल मंदिर के सरस्वती के रूप में भी देखा है। ”  यही नहीं इन्होंने हिंदी की सभी विधाओं में अपने रचनाओं के माध्यम से एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया है। एक ऐसी कवित्री जोकि छायावाद युग में सामाजिक  मानवीय सरोकारता को दिखाने की कोशिश की थीI इसीलिए इनको छायावाद की महा कवित्री के रूप में जाना जाता है।  महादेवी वर्मा ने महिला सशक्तिकरण को अपनी रचनाओं में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से स्थान दिया है। इसिलिये महादेवी वर्मा जी को संवेदनशील महाकवित्री कहा जाता है।

संदर्भ- सूची – 

  • नीरा कुक्रेजा सोहानी. “wayback machine .” मार्च 2002. https://web.archive.org/web/20021019230033/http://www.indiatogether.org/women/people/varma.htm. हिदी . 9 मई 2021.
  • शंकर शरन. “गूगल .” 2010. https://nroer.gov.in/home/file/readDoc/598356ed16b51ca5bc24272d/mahadevi-varma-on-education.pdf. हिंदी . 8 मई 2021.
  • सत्यप्रकाश मिश्र. “तद् भव. काम.” 15 जनवरी 2007. https://web.archive.org/web/20070922133831/http://www.tadbhav.com/Mahadevi%ka.htm#mahadevi. हिंदी . 10 मई 2021.
  • “http://egyankosh.ac.in/bitstream/123456789/28308/1/Unit-pdf.” दि.न. http://egyankosh.ac.in/bitstream/123456789/28308/1/Unit-37.pdf. hindi . 10 May 2021.
  डॉ.  ममता देवी यादव
  लेक्चरर, मंडलीय शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान,
  कड़कड़डूमा, दिल्ली (SCERT, Delhi)

 

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