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इंटरनेट का एक हिस्सा हमारी ज़िन्दगी का बहुत बड़ा हिस्सा बन चुका है या बनता जा रहा है। इस हिस्से को सोशल साइट्स के नाम से जाना जाता है। फ़ेसबुक, व्हाट्सएप्प, टम्बलर, इंस्टाग्राम, क्यू क्यू, वी चैट, वाइबर, स्काइप, गूगल+, ट्वीटर, वी के आदि वे नाम हैं जो इस हिस्से का 80% कब्ज़ा किये हुए हैं। फेसबुक दुनिया का सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाने वाला आभासी दुनिया का सामाजिक स्पेस है। वही व्हाट्सएप्प सोशल एप्प के मामले में सबसे ज्यादा इस्तेमाल होता है। वर्ल्ड इकनोमिक फोरम के अनुसार फेसबुक 1.8 बिलियन सक्रिय उपभोक्ता संख्या के साथ प्रथम स्थान पर है। फेसबुक जहाँ समान रूप से ग्लोब पर छाया हुआ है वही रूस में वीके के उपभोक्ता सर्वाधिक हैं। यह फेसबुक की ही तरह का सोशल साइट है।
मीडिया का सम्बन्ध सूचनाओं से अवगत कराना था लेकिन सूचना क्रांति के इस दौर में इसकी परिभाषा बदल चुकी है। अब टेलीविज़न, रेडियो जैसे मास मीडिया की जगह सोशल साइट्स और एप्प ने ले लिया है। सूचना प्रेषण का सबसे तात्कालिक माध्यम इन इंटरनेट आधारित हिस्सों से होता है। हम बस उँगलियों से स्क्रीन को धकेल कर दुनिया भर की खबरों को एक ही जगह पर देख सकते हैं। पारंपरिक मीडिया जहाँ देश- दुनिया की हर खबर को दिखा पाने में अक्षम होती है वही सोशल मीडिया नया और प्रभावी माध्यम के रूप में सामने आया है। हालात ये हैं कि समाचार एजेंसियों के पास न तो उतने ओवी वैन हैं कि वो दिल्ली और मुम्बई जैसे महानगरों से दूर सुदूर इलाकों में खबर को लाइव करने के लिए भेज सके, ऐसे में मोबाइल के कैमरे से ली गयी फूटेज से कोई भी आम लोग जो मीडिया से किसी भी रास्ते जुड़ा नहीं है संवाददाता की भूमिका में आभासी दुनिया के इन सामाजिक हिस्सों पर अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। इस हिस्से की अहमियत इस बात से समझी जा सकती है कि भारत समेत लगभग हर देश के प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति एवं अन्य पदाधिकारी इस हिस्से पर सक्रिय हैं। आधिकारिक रूप से सरकार के सभी निकायों का अपना पृष्ठ फेसबुक पर मौजूद हैं। अद्यतन के मामलों में यह हिस्सा सबसे ज्यादा तेज है।
इस हिस्से के उपयोग का अध्ययन भारत के सन्दर्भ में करें तो हम एक दो वारदातों से गुजरते हुए ‘न्यू मीडिया’ के रूप में उभर चुके इस हिस्से के महत्त्व को समझ सकते हैं। 2011 में अन्ना हज़ारे के नेतृत्व में ‘ भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन’ का व्यापक जनाधार इसी सोशल मीडिया की वजह से संभव हो पाया था। उसके परिणामस्वरूप दिल्ली में आम आदमी पार्टी का अभ्युदय भी बड़े मायने में इसी हिस्से की देन है। बीते दिन गुजरात की तत्कालीन मुख्यमंत्री आनंदीबाई पटेल ने पद से इस्तीफे की जानकारी फेसबुक पर दिया था। इतना ही नहीं ट्वीटर की लड़ाई, सरकार के नीति-नियमों का प्रचार-प्रसार का सबसे सशक्त माध्यम के रूप में इस मीडिया का उपयोग बखूबी किया जा रहा है। आज व्यापर के लिए विज्ञापन प्रेषित करने के लिए सबसे अधिक उपयोग फेसबुक का किया जा रहा है। यहाँ तक कि ऑनलाइन मार्केटिंग के विभिन्न पोर्टलों ने अपने व्यापर के लिए इस हिस्से का सबसे ज्यादा प्रयोग किया है। अब व्यापर शुरू करने और तरक्की के लिए रेडियो, टेलीविज़न में विज्ञापन देने की आवश्यकता से परे सोशल मीडिया सबसे बड़ा मंच प्रदान किया है। आज कलाकार हो, राजनेता हो, व्यापारी हो, सरकारी या गैर-सरकारी संस्थान हो सबके अपने पृष्ठ फेसबुक पर हैं। न्यूज़ फीड के रूप में हम पसंद किये पृष्ठों से जुडी जानकारियों से अवगत हो जाते हैं। बीते दिन नरेंद्र मोदी का प्रधानमंत्री बनने और उसके बाद सरकार के योजनाओं आदि के प्रचार-प्रसार में इस मीडिया ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा किया है।
आज हालात ये है कि सोशल मीडिया में आये खबर को मुख्य धारा की मीडिया बाद में जगह देती है। यह इस बात का प्रमाण है कि उपयुक्त और प्रभावोत्पादकता के मामले में यह माध्यम सफल और अहम् हो चला है। रेल मंत्री सुरेश प्रभु द्वारा ट्वीट्स पर तत्काल प्रतिक्रिया देना इस माध्यम के महत्त्व को दर्शाता है। एक ट्वीट से आप चिकित्सा सुविधा से लेकर नवजात के लिए दूध प्राप्त करने तक की घटना को संभव होते देख सकते हैं। ‘मन की बात’ और ‘नरेंद्र मोदी एप्प’ का होना इस बात को और पुष्ट करता है कि दो तिहाई भारतीय जनसंख्या का इन हिस्सों पर समय बिताना कितना महत्वपूर्ण है इसकी भूमिका को लेकर।
सकारात्मक पहलुओं से अलग इस माध्यम ने अफवाहों और दुष्प्रचार को खूब बढ़ावा दिया है। छवि धूमिल करनी हो या किसी सरकार, व्यक्ति विशेष के प्रति विरोध जताना हो, फेसबुक, व्हाट्सएप्प का खूब दुरुपयोग किया जा रहा है। आजकल इन माध्यमों द्वारा सुचारू रूप से योजनाबद्ध तरीके का इस्तेमाल करते हुए राजनीतिक पार्टियां अपना प्रचार कर रही हैं। ट्रोल की दुनिया ने इसे एक तरीके का युद्ध स्थल बना दिया है जहाँ फेक अकाउंट से लोग अभद्र और अश्लील तरीके तक से विपक्षी पर वार करते हैं। व्हाट्सएप्प इस मायने में ज्यादा खतरनाक है जहाँ रिपोर्ट, स्पैम और फ़िल्टर जैसी कोई सुविधा नहीं है। इस माध्यम ने अग्रसरित संदेशों द्वारा अपना आधिपत्य जमा रखा है। गुड मॉर्निंग, गुड नाईट से इतर आये संदेशों की प्रमाणिकता को हम बिना जाँचे अग्रसरित करते जाते हैं। इस प्रक्रिया में हमें पता नहीं होता है कि हम गलत सूचना आगे फैला रहे हैं या सही। ऐसे संदेशों के निर्माण हेतु आज कई एजेंसियां काम कर रही हैं जो तथ्यों के साथ छेड़छाड़ करके किसी निहित स्वार्थ के लिए अफवाहें फैला रही होती हैं। आज राजनीतिक बयानबाज़ी का अखाड़ा बन गया है यह माध्यम जहाँ हर मुद्दे पर अमर्यादित-मर्यादित बहस होती है।
सोशल मीडिया के प्रभाव और मुख्य धारा मिडिया के बरक्स न्यू मीडिया के रूप में स्थापित होने की कहानी विगत दिनों देश के विख्यात जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में हुए राष्ट्रविरोधी गतिविधि की घटना से जोड़ कर देख सकते हैं जहाँ विश्वविद्यालयों की स्वायत्ता और सहमति-असहमति के जगह के रूप में बचाये रखने के मुहीम में हैश टैग #StandwithJNU के नाम से दुनिया के उत्कृष्ट शिक्षण संस्थानों का समर्थन बटोरा था। यह माध्यम नया इसलिए भी है कि यह दोतरफा बहस और संवाद का मौका सबको देता है। पहले मीडिया सरकार, चिंतक, इतिहासविद् आदि की दृष्टि से हमें अवगत कराते थे जिसका प्रत्युत्तर चिठ्ठी-पत्री से संभव था परंतु आज इस माध्यम के चलते हम सक्षम हैं अपने राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और अन्य गणमान्य लोगों से रूबरू होने में। संविधान में वर्णित अभिव्यक्ति की आज़ादी के लिए मीडिया का यह रूप उस अधिकार को सार्थक सिद्ध करने का सबसे सशक्त माध्यम बनकर आया है।