डोरबेल बजी जा रही थी। रामसिंह भुनभुनाये “इस बुढ़ापे में यह डोरबेल भी बड़ी तकलीफ़ देती है।” दरवाज़ा खोलते ही डाकिया पोस्टकार्ड और एक लिफ़ाफा पकड़ा गया।
लिफ़ाफे पर बड़े अक्षरों में लिखा था ‘वृद्धाश्रम’।
रुंधे गले से आवाज़ दी-“सुनती हो बब्बू की अम्मा, देख तेरे लाडले ने क्या हसीन तोहफ़ा भेजा है!”
रसोई से आँचल से हाथ पोछती हुई दौड़ी आई – “ऐसा क्या भेजा मेरे बच्चे ने जो तुम्हारी आवाज भर्रा रही है। दादी बनने की ख़बर है क्या?”
“नहीं, अनाथ!”
“क्या बकबक करते हो, ले आओ मुझे दो। तुम कभी उससे खुश रहे क्या!”
“वृद्धश्रम शब्द पढ़ते ही कटी हुई डाल की तरह पास पड़ी मूविंग चेयर पर गिर पड़ी।
“कैसे तकलीफों को सहकर पाला-पोसा, महंगे से महंगे स्कूल में पढ़ाया। खुद का जीवन अभावों में रहते हुए इस एक कमरे में बिता दिया।” कहकर रोने लगी
दोनों के बीते जीवन के घाव उभर आये और बेटे ने इतना बड़ा लिफ़ाफा भेजकर उन रिसते घावों पर अपने हाथों से जैसे नमक रगड़ दिया हो।
दरवाज़े की घण्टी फिर बजी। खोलकर देखा तो पड़ोसी थे।
“क्या हुआ भाभी जी ? आप फ़ोन नहीं उठा रहीं है। आपके बेटे का फोन था। कह रहा था अंकल जाकर देखिये जरा।”
“उसे चिन्ता करने की जरूरत है!” चेहरे की झुर्रियां गहरी हों गयी।
“अरे इतना घबराया था वह, और आप इस तरह। आँखे भी सूजी हुई हैं। क्या हुआ?”
“क्या बोलू श्याम, देखो बेटे ने..” मेज पर पड़ा लिफ़ाफा और पत्र की ओर इशारा कर दिया।
श्याम पोस्टकार्ड बोलकर पढ़ने लगा। लिफ़ाफे में पता और टिकट दोनों भेज रहा हूँ। जल्दी आ जाइये। हमने उस घर का सौदा कर दिया है।”
सुनकर झर-झर आँसू बहें जा रहें थे। पढ़ते हुए श्याम की भी आँखे नम हो गई। बुदबुदाये “इतना नालायक तो नहीं था बब्बू!”
रामसिंह के कन्धे पर हाथ रख दिलासा देते हुए बोले- “तेरे दोस्त का घर भी तेरा ही है। हम दोनों अकेले बोर हो जाते हैं। साथ मिल जाएगा हम दोनों को भी।”
कहते कहते लिफ़ाफा उठाकर खोल लिया। खोलते ही देखा – रिहाइशी एरिया में खूबसूरत विला का चित्र था, कई तस्वीरों में एक फोटो को देख रुक गए । दरवाजे पर नेमप्लेट थी सिंहसरोजा विला। हा हा जोर से हँस पड़े।
“श्याम तू मेरी बेबसी पर हँस रहा है!”
“हँसते हुए श्याम बोले- “नहीं यारा, तेरे बेटे के मज़ाक पर । शुरू से शरारती था वह।”
“मज़ाक..!”
“देख जवानी में भी उसकी शरारत नहीं गयी। कमबख्त ने तुम्हारे बाल्टी भर आँसुओं को फ़ालतु में ही बहवा दिया।” कहते हुए दरवाजे वाला चित्र रामसिंह के हाथ मे दे दिया।
चित्र देखा तो आँखे डबडबा आईं।
नीचे नोट में लिखा था- “बाबा, आप अपने वृद्धाश्रम में अपने बेटे-बहू को भी आश्रय देंगे न।”
पढ़कर रामसिंह और उनकी पत्नी सरोजा के आँखों से झर-झर आँसू एक बार फिर बह निकलें ।
सविता मिश्रा