सहचर की पूरी टीम की मेहनत के फल स्वरूप पत्रिका का यह अंक आपके समक्ष है। यह पत्रिका अब अपने सातवें वर्ष में है।इन सात वर्षों में आप सभी पाठकों एवं लेखकों के सहयोग के बिना इस शायद हम यहाँ तक नहीं पहुँच पाते। आपके इस अमूल्य सहयोग के लिए आपको धन्यवाद कहना न छोटा शब्द होगा। एक महत्वपूर्ण बात यह रही कि जो पाठक हमारी पत्रिका से लगातार जुड़े रहे थे, वे एक रचनाकार के रूप में भी अब हमारी पत्रिका में शामिल हुए हैं। हमें इस बात की ख़ुशी है कि इस पत्रिका के माध्यम से उन्होंने साहित्य के संस्कार, लेखन के संस्कार को अर्जित किया है। यह न सिर्फ़ व्यक्तिगत रूप से उनके लिए अपितु हमारे लिए भी एक गर्व का विषय है कि इस माध्यम से रचनात्मक अभिव्यक्ति वाले लोग हमारे सामने आ पा रहे हैं। हमारा उद्देश्य देश के कोने – कोने एवं विदेशों तक पहुँचना है, जहाँ पर हिंदी की प्रिंट की पत्रिकाएं आसानी से उपलब्ध नहीं हो पाती हैं। सस्ते इंटरनेट के ज़माने में जहाँ मोबाइल फ़ोन भी काफ़ी सस्ता हो चुका है | आप इस पत्रिका को कहीं पर भी आसानी से पढ़ सकते हैं। ऐसे में हमारी पूरी कोशिश है कि दूर दराज़ के उन गांवों में इन लोगों तक यह पत्रिका पहुँचे साथ ही हम उन दूर दराज़ के लोगों की आवाज़ बन सकें | इसलिए हम आप सभी पाठकों से उम्मीद करते हैं कि इस पत्रिका को अधिक से अधिक लोगों तक प्रसारित करेंगे |
मैं उम्मीद करता हूँ कि पाठकों एवं रचनाकारों का सहयोग हमारे इस पत्रिका को मिलता रहेगा। साहित्य की सेवा में हम लगातार प्रयासरत रहेंगे। यह अंक अब आपके समक्ष है यदि इसमें कोई भी त्रुटि हो उसके लिए मैं क्षमा प्रार्थी हूँ। इस पत्रिका हेतु यदि कोई भी सुझाव आप देना चाहते हैं तो उसका स्वागत है |

डॉ. आलोक रंजन पाण्डेय

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