हिंदी साहित्य में महिलाओं के लेखन की शुरुआत की बात जब भी आती है तो हम सबसे प्रचलित नाम जिसने स्वयं को कृष्ण प्रेम में डुबा दिया, उसका नाम लेते हैं अर्थात् हम मीराबाई को याद करते हैं।उनका लेखन उनके समय को, उनके प्रेमी हृदय को दर्शाता है। आधुनिक काल में जब शिक्षा का विस्तार हुआ, महिलाओं के लिए शिक्षा के दरवाज़े के साथ अन्य कई अवसर उपलब्ध हुए तो कई महिला रचनाकारों ने अपनी प्रतिभा के साहित्य जगत में अपनी छाप छोड़ी। महादेवी वर्मा को आधुनिक युग की मीरा के रूप में जाना जाता है। इसके पीछे एक बड़ा कारण उनका वैसे ही स्नेहिल व प्रेमी हृदय का होना अवश्य होगा जिसे हम उनकी रचनाओं में देख पाते हैं, उनके निजी जीवन के पात्रों के प्रति देख सकते हैं। रेखाचित्र व संस्मरण लेखन में उन्होंने हिंदी साहित्य को अमूल्य धरोहर दिया है। उनके रेखाचित्रों की शृंखला को पढ़कर उनके हृदय को आप आसानी से पहचान सकते हैं कि उनका हृदय न केवल मनुष्यों के प्रति अपितु सभी प्राणियों के लिए समान रूप से प्रेम उड़ेलता है। इसे मध्यकालीन मीरा का आधुनिक रूपांतरण कहा जाए तो कोई समस्या नहीं होनी चाहिए। हाँ यह बात अवश्य है कि महादेवी वर्मा जैसे बड़े रचनाकारों को सिर्फ़ आधुनिक युग की मीरा कह दिया जाना उनके क़द को छोटा करता है इसलिए यह एक नाम जो चल पड़ा है वह ठीक है परंतु यह उनका समस्त मूल्यांकन नहीं है। उनके साहित्य का फलक इससे कहीं ज़्यादा विस्तृत है। छायावाद हिंदी साहित्य के इतिहास में भक्तिकाल के बाद दूसरा सबसे महत्वपूर्ण काव्यकाल रहा है और महादेवी वर्मा छायावाद के चार स्तम्भों में एक मज़बूत स्तम्भ के रूप में मौजूद रहीं,इसे इस तरह भी देख सकते हैं कि वे उसमें अकेली महिला हैं। उन्होंने साहित्य स्वयं की लेखनी से खुद को साहित्य का सशक्त हस्ताक्षर साबित किया। निराला ने अनायास ही नहीं उन्हें ‘हिंदी के विशाल मंदिर की सरस्वती’ कहा। वे न केवल समाज को बाहर से देख रही थीं अपितु एक मनुष्य के अंदर चलने वाले उठा-पटक,पीड़ा,दर्द व रूदन को भी देख रही थी। उनके काव्य में इन सबकी सुंदर अभिव्यक्ति हमें देखने को मिलती है। पद्म विभूषण व ज्ञानपीठ जैसे बड़े सम्मानों का मान बढ़ाने वाली महादेवी जी को हमने इस विशेषांक के माध्यम से याद करने की कोशिश की है। उनके साहित्य को हमारे पाठकों तक पहुचाने का प्रयास किया है। इस २३वे अंक में शामिल सभी रचनाकारों के परिश्रम के प्रति हम आभार प्रकट करते हैं क्योंकि बिना उनके प्रयास के यह सम्भव न था। हमें उम्मीद है कि आगे भी उनका सहयोग लगातार बना रहेगा। यह अंक अब आपके समक्ष है, इसमें कहीं कोई त्रुटि हो तो उसके लिए माफ़ी। आप पाठकों का सहयोग व स्नेह हमें बराबर मिलता रहता है,हम आगे भी यही उम्मीद करते हैं…
डॉ. आलोक रंजन पाण्डेय

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