आप सभी सुधी पाठकों का जो अथाह स्नेह हमारी इस पत्रिका को मिल रहा है, यह इसी का परिणाम है कि हम इस यात्रा में अब काफ़ी आगे आ पहुँचे हैं। यदि आपका सहयोग न रहा होता तो हम इस पत्रिका का 18वाँ अंक आपके समक्ष प्रस्तुत न कर रहे होते। वैसे तो यह एक सामान्य अंक है लेकिन इस अंक के मूल में हिंदी साहित्य के मध्यकाल से संबंधित सामग्री उचित मात्रा में है जो अपने-अपने विषय के शोधार्थियों द्वारा ही लिखा गया। इसके अनुसार मध्यकाल के सुधी पाठकों के लिए यह अंक काफ़ी उपयोगी साबित होगा। इसी तरह 2019 के सिनेमाघरों में किन-किन फ़िल्मों ने अपना जलवा क़ायम रखा और उनमें कौन सी फ़िल्में महत्वपूर्ण रहीं इस पर भी सिनेमा प्रेमियों को महत्वपूर्ण सामग्री देखने को मिलेगी। इसी तरह हमने उभरते हुए कवियों एवं रचनाकारों को इस पत्रिका में स्थान दिया है,ताकि हम नई पौध से भी अवगत हों सकें।अब यह अंक आप सबके समक्ष उपलब्ध है,आपके राय एवं मत का हमारी पूरी टीम को इंतज़ार है ताकि हम निरंतर बेहतर कर और आगे आएँ।

डॉ.आलोक रंजन पांडेय

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