प्रश्न 1. हिंदी भाषा के वैश्विक परिदृश्य पर आपके क्या विचार हैं ?
उत्तर – हिंदी भाषा का जो वैश्विक परिदृश्य है, वैसे तो भारत में जो अपनी हिंदी की स्थिति है यह सब उसके ऊपर ही बहुत निर्भर करता है। क्योंकि भारतीय लोग पूरी दुनिया में फैले हुए हैं | और उनके माध्यम से हिंदी भाषा भी समस्त विश्व में उनके साथ जाती है। लेकिन यदि हम इसे साहित्य की दृष्टि से देखें या पत्र-पत्रिकाओं की दृष्टि से देखें या फिल्मों की दृष्टि से देखें तो विश्व में जो हिंदी है वह हिंदी भाषियों के बीच फैली हुई है और खासकर उन देशों में जहाँ पहले से ही हिंदी का प्रचार प्रसार काफी था। इसलिए मुझे लगता है कि भारत का जो वैश्विक परिदृश्य है वो इसी पर ज्यादा निर्भर है कि किन देशों में भारतीय पहले से ही मौजूद थे और आज भी वहां पर उनकी मौजूदगी बनी हुई है। जैसे मॉरिशस,फिजी, श्रीलंका आदि |
प्रश्न 2. बाजारवाद के दौर में, हिंदी बाजार को किस प्रकार प्रभावित कर रही है ? 
उत्तर – जहाँ तक बाजार की बात है तो वहां जो चीज दिखती है, वही बिकती है, उसी की डिमांड होती है। जहाँ तक भारत की बात है, यहाँ की जनसख्या के दृष्टिकोण से उन लोगों की संख्या ज्यादा है जो हिंदी भाषी हैं और इसी कारण से बाजारवाद के युग में भी हिंदी का प्रचलन बहुत ज्यादा है| अब अगर विज्ञापन की बात करें तो हिंदी भाषी लोग ज्यादा हैं इसीलिए सभी अपने विज्ञापन भी हिंदी में ही बनाए जाते हैं। आम जनता भी हिंदी ज्यादा समझती है| इसके अलावा जहाँ तक हम देखें कि पठन-पाठन में उतना ज्यादा हिंदी का प्रयोग नहीं है, लेकिन सामान्य बोलचाल के भीतर कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक  हिंदी फैली हुई है। इसलिए बाज़ार की आवश्यकता को देखते हुए हिंदी का प्रयोग निरंतर बढ़ता जा रहा है। यहाँ तक कि जो तमिल या अन्य भाषाओं फ़िल्में हैं वो सब भी हिंदी में डबिंग होकर आ जाती हैं। तो इसका कारण यही है कि उसको बोलने वाले बहुत ज्यादा लोग हैं। और इसीलिए जब कोई चीज बेचनी है और अगर उसको खरीदने वाले उस भाषा में ज्यादा हैं तो वहां पर वह भाषा अपनी जगह बनाती है।
प्रश्न 3. हम देखते हैं कि हिंदी भाषा को कई सारे कारक आगे बढ़ाते हैं। एक महत्वपूर्ण कारक है अनुवाद। आपको क्या लगता है कि अनुवाद वाकई हिंदी को आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहा है। 
उत्तर – अनुवाद के माध्यम से हिंदी का विकास हो रहा, यह बिल्कुल सही बात है क्योंकि जैसे जिन लोगों को हिंदी ज्यादा अच्छी आती है चाहे अंग्रेजी भी आती हो, तब उनको कई तरीके की अवधारणाएँ हिंदी में ज्यादा अच्छी लगती हैं। अब हम लोग अंग्रेजी बोलते हैं, अंग्रेजी भाषा को जानते भी हैं, उसमें लिखते भी हैं, पढ़ते भी हैं लेकिन जब फिल्म देखते हैं या सीरीज आती हैं और नेटफ्लिक्स जैसी कंपनी ने सबका अनुवाद करवाया है। जिससे उन सीरीज या फिल्मों का प्रचार-प्रसार बढ़ा है। इस तरीके से अनुवाद के माध्यम से बहुत सारे लोग जो हिंदी अनुवाद करते हैं या जिनका दोनों भाषाओं पर अच्छा अधिकार है, उन्होंने हिंदी का प्रचार-प्रसार किया है। अनुवाद से अंग्रेजी के अलावा अन्य भाषाओं के बारे में भी हम जान पाते हैं और साथ ही जिन चीजों को नहीं पढ़ पाते थे, या जिन फिल्मों को नहीं देख पाते थे उन्हें अनुवाद के माध्यम से ही आज हम ये सब पढ़-देख और समझ पाते हैं। तो इस तरीके से तो अनुवाद के माध्यम से हिंदी का प्रचार प्रसार बढ़ा ही है। अनुवाद के द्वारा हम अन्य भाषाओं जैसे स्पेनिश, जर्मन, फ्रेंच के बारे में भी हम जान रहे हैं।
प्रश्न 4. सोशल मीडिया का हिंदी भाषा पर क्या प्रभाव है ? सोशल मीडिया ने इसके रूप को बिगाड़ा है या संवारा है ? 
उत्तर – यह एक इस तरीके की बात है जैसे एक समय में यह बहस चल रही थी कि जो पुराने गाने हैं उनको रीमिक्स बनाकर प्रस्तुत करने लग जाते हैं तो मुझे एक बड़ी अच्छी बात शमशाद बेगम की याद आ रही है कि “उन्होंने कहा था कि रीमिक्स के बहाने ही सही, वो गाना फिर से लोगों के बीच में आया  तो सही, मुझे इस बात की ख़ुशी है ”  तो सोशल मीडिया के ऊपर जिस हिंदी को हम देखते हैं उसमें यही बड़ी बात है। हम अपनी जरूरत के हिसाब से सोशल मीडिया पर नए-नए शब्दों को इजाद कर लेते हैं। किसी शब्द को छोटा कर देते हैं, किसी शब्द को बढ़ा कर देते हैं। तो अगर हम ये कहें कि हम मानक हिंदी को बिगाड़ रहे हैं तो बिगड़ना कह सकते हैं लेकिन अगर ये कहें कि सामान्य व्यवहार के अंदर आवश्यकता के अनुसार भाषा बदली भी जाती है। कम से कम सोशल मीडिया के माध्यम से हिंदी लोगों के बीच तो पहुँच भी रही है |
प्रश्न 5. अभी तक हम पुराने समय में प्रिंट मीडिया में हिंदी का चलन देखा है लेकिन अब मीडिया का भी डिजिटलीकरण हो गया है, तो उसके माध्यम से भी क्या हिंदी का विकास हुआ है या अभी उनकी भाषा में कुछ कमियाँ हैं जिनमें सही होने की संभावना है या उन्हें सही होना चाहिए ?
उत्तर – देखिए, डिजिटल माध्यमों ने तो हर एक भाषा को आगे बढ़ाया है। क्योंकि उनकी उपलब्धता बहुत आसान है। बहुत सारी ऐसी किताबें थीं जिनको हम नहीं पढ़ पाते थे लेकिन आज जो ई बुक्स हैं उनको हम सुन भी सकते हैं और पढ़ भी सकते हैं। तो अगर हमारे पास पढ़ने का वक़्त नहीं, तो भी हम उसे सुन सकते हैं। वो चाहे जिस भी भाषा में हो लेकिन जो लोग हिंदी में सुनना चाहते हैं वो सुन सकते हैं। इसलिए मुझे लगता है कि इलेक्ट्रॉनिक माध्यम ने ही हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार में फायदा पहुँचाया है। बहुत सारे लोग हैं जो हिंदी को नहीं पढ़ पाते हैं लेकिन हिंदी को समझ लेते हैं, वह ई-माध्यम के द्वारा सुन सकते हैं। इससे साहित्य और भाषा दोनों का ही प्रचार प्रसार बढ़ रहा है ।
प्रश्न 6. आजकल एक नई बहस चल रही है “नई वाली हिंदी”। आपको क्या लगता है कि ये ‘नई वाली हिंदी’ भाषा का जो एक स्वरूप है, उसको संरक्षित रख सकती है या हिंदी की दशा को बिगाड़ रही है ?
उत्तर – जैसे कि पोपुलर कल्चर की जब हम बात करते हैं तो पोपुलर कल्चर में जिस तरीके का साहित्य लिखा जाता है, उस दृष्टिकोण से देखें और हम यह सोचें कि चलिए साहित्य की रचना हो रही है, लोग उसको अपने हिसाब से पसंद कर पढ़ रहे हैं। क्योंकि हर समय हम यह नहीं कह सकते कि हम क्लासिक ही पढेंगे और हम क्लासिकल भाषा का ही प्रयोग करेंगे। शास्त्रीय भाषा या मानक भाषा का ही प्रयोग करेंगे। ये एक अलग तरीके के समाज में अलग तरीके के लोगों के बीच में भाषा के कुछ प्रयोग प्रचलित हो गये हैं और जब हम कहते हैं यादृच्छिक ध्वनि प्रतीकों की जो व्यवस्था है वही भाषा है और निरंतर प्रयोग के माध्यम से ही उसका विकास होता रहता है। तो जो व्याकरणिक या मानक भाषा जो कि शास्त्रीय भाषा के रूप में साहित्य में प्रयुक्त होती है वह एक अलग तरीके के साहित्य के लिए है और ये जो नई हिंदी है इसमें शब्द और प्रयोग जो हैं वो अलग हो सकते हैं लेकिन व्याकरणिक प्रयोग या वाक्यों का किस तरीके से निर्माण करना होता है ये संरचनात्मक दृष्टि से यदि गलती नहीं है तो मैं समझती हूँ कि एक अलग तरीके के समाज के लोगों  के लिए वो लिखी जा रही है। उसमें अगर वह प्रयुक्त होती है और प्रचलित होती है तो मैं उसमें कोई दिक्कत नहीं महसूस करती हूँ।
प्रश्न 7. एक वाक्य है “सिनेमा का हाथ थामकर आज हिंदी भाषा आगे बढ़ रही है” इस बारे में आपके क्या विचार हैं ? क्या आप इससे सहमत हैं ?
उत्तर – सिनेमा ने हिंदी को काफी आगे बढ़ाया है। पहले जब हम देखते थे तो उसमें उर्दू प्रधानता होती थी। क्योंकि कहानियाँ उन बड़े-बड़े मुस्लिम शाही परिवारों की होती थीं और भाषा भी उसी तरीके की होती थी। धीरे-धीरे यह एक नया स्वरूप लेती गयी जिसमें कि उर्दू के शब्द धीरे-धीरे खत्म होते गये और आज जो हमने हिंदी का मानक रूप बनाया है, खड़ी बोली हिंदी का वो उसमें आता चला गया। तो यहाँ हिंदी भाषा का विकास हुआ है। सिनेमा एक ऐसा माध्यम है जिसको हर व्यक्ति मनोरंजन के लिए, जानकारी पाने के लिए देखना चाहता है और उसकी पहुँच भी बड़ी आसानी से लोगों तक है। सामान्य लोगों तक उसकी पहुँच है तो अब अगर तमिल फ़िल्में भी आ रही हैं तो उन्हें देखने के लिए हम तमिल तो नहीं सीख पाएँगे तो अनुवाद और सिनेमा के माध्यम से भी वो फ़िल्में हमारे पास आती हैं और हम देख लेते हैं। तो इस तरीके से कह सकते हैं कि सिनेमा और मनोरंजन के माध्यम से हिंदी भाषा का विकास हो रहा है । क्योंकि मनोरंजन का सबसे सस्ता और सबसे आसानी से उपलब्ध साधन जो है वह सिनेमा है और भाषा उसका माध्यम है ही।

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