फणीश्वरनाथ रेणु हिंदी साहित्य के प्रमुख आँचलिक उपन्यासकार माने जाते हैं | रेणु ने अपने कथासाहित्य में मानवीय सम्बन्धो को केंद्र में रखकर साहित्य की रचना की है | उन्होंने अपनी रचनाओं में व्यक्ति को मानवीय धरातल पर खड़ा करके उसके विविध आयामों को साहित्य में समाहित किया है | “मैला आँचल” इनका प्रथम एवं मौलिक उपन्यास है जिनमें बिहार प्रान्त ही नहीं भारतीय ग्राम जीवन के विविध आयामों का चित्र दिखाई देता है | बिहार प्रान्त विशेष रुप में जिला पाटणा भारतीय ग्राम जीवन का प्रतिनिधित्व करता है | रेणु ने “मैला आँचल” उपन्यास में भारतीय धार्मिक, सांस्कृतिक, सामाजिक एवं राजनीतिक पृष्ठभूमि को उजागर किया है | आजादी के बाद भारतीय ग्राम जीवन में राजकीय क्षेत्र में आया परिवर्तन तथा सांस्कृतिक इतिहास को अपने चिंतन के माध्यम से भारतीय जनता के सामने लाने का प्रयास किया है | मूलत: वे साहित्यकार के साथ-साथ एक राजनीतिज्ञ भी थे | वे भारतीय क्षेत्र को सुजलाम्-सुफलाम् देखना चाहते थे | उन्हें राष्ट्र के प्रति प्रगाढ़ अस्मिता थी इसलिए वे भारतीय स्वातंत्र्यता आंदोलन में सक्रिय रहे | समय-समय पर उन्हें जेल भी जाना पड़ा | राष्ट्रीय अस्मिता के लेखक रेणु उन रचनाकारों में से है जिनमें प्रेम की अंगार तो दूसरी तरफ फूल भी बरसते हैं | सांस्कृतिक अस्मिता के साथ भाषाई अस्मिता भी उनके साहित्य में दिखाई देती है | जैसे “मैला आँचल” में ग्राम जीवन की बोलियों का ही प्रयोग हुआ है | उनके रचनाओं में समय-समय पर राष्ट्र की प्रखर चेतना दिखाई देती है | एक तटस्त एवं निपक्ष व्यक्ति के रुप में उनकी प्रतिमा रही है | इन्होंने छह उपन्यास और लगभग 41 कहानियाँ और कुछ कविताएँ भी लिखी | अधिकतर उपन्यास एवं कहानियों में ग्राम जीवन के यथार्थ का चित्रण है | उन्होंने साधना, संघर्ष और संकल्प के उद्देश पूर्ति रचनाओं का निर्माण किया | ग्राम जीवन को केंद्र में रखकर साहित्य की रचना की है | आम तौर पर कहा जाए तो तटस्थ एवं निपक्ष व्यक्ति के रुप में रेणुजी का चरित्र दिखाई देता है | बिहार देश का एक एैसा प्रान्त है जहाँ दिनकर, नागार्जुन एवं फणीश्वरनाथ रेणु जैसे महान, राष्ट्रप्रेमी, विद्रोही साहित्यकारों का जन्म हुआ |

     फणीश्वरनाथ रेणू का “मैला आँचल” प्रथम एवं मौलिक उपन्यास है जिसमें संपूर्ण भारतीय संस्कृतिका लेखा – जोखा प्रस्तुत है | भारतीय स्वतंत्रता के पश्चात ग्राम जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन हुए, पुरानी मान्यताएँ टूटी और नई मूल्य परम्परा विकसित हुई | शिक्षा एवं राजनीतिक गतिविधयों के कारण ग्रामीण जीवन में परिवर्तन हुआ | स्वतंत्रतापूर्ण ग्रामजीवन और स्वातंत्र्योत्तर ग्राम जीवन का चित्र रेणूजी ने सामने रखते हुए व्यक्ति जीवन के परिवर्तित रुप को “मैला आँचल” के द्वारा चित्रित किया है| गाँव के इस परिवर्तित रुप की ओर दृष्टिक्षेप करते हुए भगवती प्रसाद शुक्ल ने कहा है – स्वातंत्र्यता के बाद अपने देश में समाजवादी रचना से सम्बन्ध का विस्तार गाँव तथा आँचलों तक होने लगा जिसके फलस्वरुप अँचल-विशेष में राजनीतिक, सामाजिक आर्थिक और सांस्कृतिक चेतना मुखरित हुई |” भारतीय ग्राम परिवेश विविधताओं का अद्भुत जंगल है इसका चित्र रेणुजी ने चार आयामों में प्रस्तुत किया है | “मैला आँचल” में बिहार प्रान्त की पृष्ठभूमि को लेकर वहाँ का राजनीतिक, सामाजिक, अर्थिक एवं सांस्कृतिक यथार्थ का चित्रण दिखाई देता है |

     स्वातंत्र्योत्तर ग्रामीण जीवन में राजनीतिक चेतना की लहर आयी| इसका रुप “मैला आँचल” उपन्यास में दिखायी देता है | “मैला आँचल” उपन्यास का परिवेश बिहार के पुर्णिया जिले के मेरीगंज गाँव का है | उपन्यास का पात्र बालदेव जो अहिंसावादी नेता है परन्तु इसी गाँव का कालीचरण उसके प्रति विद्रोह करता है | कालीचरण एक आदर्शवादी नेता एवं देशभक्त के रुप में परिचित है | इसी गाँव का तीसरा काँग्रेसी नेता बावनदास गांधी, नेहरु से जुड़ा हुआ है | पार्टी में भ्रष्टाचार और ढ़ोंग देखकर वह बेहद दु:खी होता है और बैलगाडियों के नीचे आत्म बलीदान करता है| आजादी के बाद गाँव में अलग-अलग पार्टी के नेता अपने-अपने विचारों से जनता को प्रभावित करते हैं | इस प्रकार उपन्यास में एक-एक करके कई पात्र आते हैं | स्वतंत्रता के पश्चात् ग्राम में राजकिय चेतना की लहर सी आ गई जिसमें हर एक पार्टी का नेता अपने वर्चस्व को सिद्ध करने के लिए कोशिश करने लगा | इसी कारण रेणु ने “मैला आँचल” उपन्यास में किसी एक पात्र को उपन्यास का नायक नहीं बनाया |

     “मैला आँचल” में ग्रामीण क्षेत्र के सामाजिक जीवन का अधिकाधिक सूक्ष्म चित्रण हुआ है | जैसे कथा में लोकजीवन, लोकनृत्य, खान-पान तथा रुढ़ि परम्परा आदि का चित्र दिखाई देता है| स्वातंत्र्यता के बाद भी ग्राम जीवन के लोग रुढ़ि परम्पराओं का पालन करते हुए तथा जादू टोना आदि पर विश्वास करते हुए दिखाई देते हैं | वहाँ की लोकसंस्कृति एवं लोक संगीत की धुन का भी चित्रण उपन्यास में दिखाई देता है | रेणु जी ने कथा के नारी पात्र फुलिया, कमला, लक्ष्मी, कुसमी, रमपियारिया के कामुक भावनाओं का चित्रण किया है | आजादी के नामपर ग्रामीण जीवन की बदलती छवि को उज़ागर करते हुए वे कहते हैं- जैसे -संथालों के संघर्ष में चार आदमी मरने के बाद खेतों में छिपी हुई संथालियों को घेरकर गाँव के लोग कुहराम मचा देते हैं | कहते हैं – “एक आदमी फिशा आजादी है, जो जी में आवे करो | बुढ़ी, जवान, बच्ची जो मिले आजादी है| पार का खेत है | कोई परवाह नहीं |” इससे स्पष्ट है कि रेणु ग्राम जीवन का चित्रण करते समय अनकही बातों को भी चित्रित करते हैं |

     रेणु आजादी के बाद व्यक्ति में आये धार्मिक परिवर्तन का चित्र प्रस्तुत करते हुए लिखते हैं कि- गाँवो की धार्मिक स्थिति विकासग्रस्त है जैसे लोगों में अंधविश्वास अधिक दिखाई देता है | मेरीगंज में दवाखाना चालू करने की बात चली तो कुछ लोगों का यह मत रहा है कि डॉक्टर लोग ही रोग फैलाते हैं किसी ने यह भी कहा कि अंग्रेजी दवा में गाय का खून मिला रहता है | हैजे के फैलने में कुंओं में दवा डालने से डॉक्टर को रोकने प्रयत्न गाँव में मठ के महंत का विरोध आदि | मठ का महंत रामदास आदि का रमपियरिया को अपनी दामिन बनाना, उसकी जात लेने के बदले में तंत्रिमा टोली को भात खिलाना यह धार्मिक परिवर्तन का परिणाम है |

     रेणु जी ने मेरीगंज के आर्थिक जीवन का चित्र प्रस्तुत करते हुए वहाँ के बाबू लोगों की अजब कहानी प्रस्तुत की है| मेरीगंज के गरिब व्यक्ति किसी न किसी बाबू लोगों के कर्जदार है | गरीबों से सादे कागज़ पर अँगुठा लगवाकर बाबू लोग कर्ज देते हैं | कुछ लोग तो गरीबों की लाचारी देखकर बहू-बेटियों पर हाथ साफ करा लेते हैं | जैसे फुलिया का बाप सहदेव मिसार का कर्जदार है | इसी कारण सहदेव मिसार फुलिया को अपने चंगुल में फसा लेता है | इस प्रसंग को लेकर रमजूदास की स्त्री कहती है- “अरे फुलिया की भाये | तुम लोगों को न तो लाज है और न धरम | कब तक बेटी की कमाई पर लाल किनारी वाली साडी चमकाओगी ? अखिर एक हद होती है | किसी बात की मानती हूँ कि जवान बेवा बेटी दूधारु गाय के बराबर है | मगर इतना मत धुओं कि देह हा खून भी सुख जाए|” इस प्रकार स्वातंत्र्योत्तर गाँवों की आर्थिक परिस्थिति में कुछ बदलाव नहीं हुआ | बदलाव इतना हुआ कि आज़ादी के नाम पर गरीबी एवं आर्थिक विपन्नता के कारण गाँव के लोग पेट की भूख को मिटाने के लिए अलग-अलग रास्तों का इस्तेमाल करते हुए दिखाई देते हैं| गाँवों में कालाजार और मलेरिया जैसे रोगों का फैलना आर्थिक विपन्नता ही कारण है |

     उपर्युक्त विवेचन से यह स्पष्ट है कि स्वातंत्र्योत्तर भारत में गाँव की सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक एवं राजनीतिक परिस्थिति में कोई बदलाव नहीं आया | आजादी के नाम पर हर एक पक्ष या दल का व्यक्ति अपने स्वार्थ के लिए गाँव के व्यक्ति का फायदा उठाता रहा है | अपनी कुटील नीती द्वारा जनता में अपप्रचार फैलाना धर्म मानते गये | आज़ादी के नाम पर, जाति के नाम पर, धर्म के नाम पर जनता को लुटाते रहे हैं | रेणु जी ने गाँव की अलग-अलग परिस्थितियों का लेखा-जोखा प्रस्तुत करने के पहले उपन्यास की भूमिका में लिखा है – “यह है “मैला आँचल” आँचलिक उपन्यास| इसमें फूल भी है, शूल भी, धूल भी है, गुलाब भी, किचड़ भी है, चंदन भी, सुंदरता भी है, कुरुपता भी – मैं ‍किसी से भी दामन बचाकर नहीं निकल पाया|” इस प्रकार रेणु ने मेरीगंज के समष्टिगत जीवन का चित्र “मैला आँचल” द्वारा प्रस्तुत किया है |   

संदर्भ सूची :-

  1. फणीश्वरनाथ रेणु के कथासाहित्य का समाजशास्त्रीय अध्ययन- डॉ. रामप्रकाश राय, डी.पी.एस. पब्लिसिंग हाऊस-दिल्ली प्र.सं. 2007
  2. आँचलिकता से आधुनिकता बोध – डॉ. भगवती प्रकाश शुक्ल- ग्रंथम प्रकाशन, कानपूर, प्र.सं.1972 पृ. 129
  3. फणीश्वरनाथ रेणु “मैला आँचल” पृ. 174
  4. आस्था और सौंदर्य – डॉ. रामविलास शर्मा- किताब महल इलाहाबाद प्र.सं. 1883, पृ. 119
  5. फणीश्वरनाथ रेणु -“मैला आँचल”- भूमिका
प्रा. डॉ. अर्जुन पवार
हिंदी विभाग
डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर महाविद्यालय, लातूर

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