जिस  प्रकार मनुष्य अपने भावों एवं विचारों को अभिव्यक्त करने के लिए किसी विशिष्ट भाषा का प्रयोग करता है, उसी प्रकार एक राष्ट्र भी अपने सरकारी काम-काज सम्पन्न करने के लिए भाषा के एक विशिष्ट रूप को ग्रहण करता है। भाषा का यही विशिष्ट रूप ‘राजभाषा’ के नाम से जाता है। भारत राष्ट्र में समय-समय पर भिन्न-भिन्न राजभाषाओं का प्रयोग हुआ है। मुगल काल में राजभाषा के रूप में फ़ारसी का प्रयोग प्रचलित था, तो अंग्रेज़ों के शासन काल में अंग्रेज़ी भाषा को यह सम्मान प्राप्त हुआ। वस्तुतः सदियों से भारतीयों को एकता के सूत्र में बाँधने का कार्य हिंदी भाषा ने ही किया है। आरम्भ में हिंदी केवल बोलचाल की भाषा थी, किन्तु समन्वयवादी एवं लोक व्यापक प्रकृति के फलस्वरूप इसके अनेक रूप प्रचलित हो गए। आज हिंदी का प्रयोग साहित्यिक रूप में, पत्रकारिता के रूप में, खेलकूद की भाषा के रूप में, बाजार-भाव की भाषा में तथा कार्यालयी भाषा के रूप में हो रहा है। स्वतंत्रता के पश्चात् हिंदी का एक अन्य रूप विकसित हुआ, जिस का प्रयोग न्यूनाधिक रूप से सरकारी कार्यालयों में होने लगा।

                7 जून, 1955 में श्री बी.बी.खेर की अध्यक्षता में राजभाषा आयोग का गठन हुआ। इसमें हिंदी को संघ की राजभाषा घोषित किया गया। संविधान द्वारा स्वीकृत होने पर भी कुछ अंग्रेज़ी भक्तों की ज़िद के कारण हिंदी के प्रयोग में कुछ रुकावटें उत्पन्न की गईं, किन्तु काफी वाद-विवादों एवं मत मतान्तरों से गुज़र कर हिंदी राजभाषा के सिंहासन पर स्थापित हो ही गई। सरकारी कार्यालयों में अधिक-से-अधिक हिंदी को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने समितियों की स्थापना की। इसमें केन्द्रीय हिंदी समिति प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में कार्य करती है। इस समिति का उद्देश्य भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालयों द्वारा हिंदी के विकास और भारत सरकार के संबंध में चालू कार्यक्रमों में समन्वय स्थापित करना है। दूसरी समिति गृहमंत्री की अध्यक्षता में गठित की गई है। इस समिति का कार्य सरकारी प्रयोजनों के लिए हिंदी के प्रगामी प्रयोगों से सम्बद्ध मामलों पर भारत सरकार को सलाह देना है। तीसरी समिति भारत के राजभाषा सचिव की अध्यक्षता में गठित की गई है, जिसमें भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालयों के संयुक्तसचिव, सदस्यों के रूप में कार्यरत हैं। इसी प्रकार अन्य अनेक मंत्रालयों, विभागों, निगमों और कार्यालयों में राजभाषा कार्यान्वयन समितियों की भी स्थापना की गई है। इस दिशा में मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा उठाए गए कदम विशेष उल्लेखनीय है। हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए इस मंत्रालय ने अनेक महत्वपूर्ण योजनाएँ बनाई हैं, जिनमें हिंदी शिक्षण, स्वैच्छिक हिंदी संगठन, हिंदी माध्यम में परीक्षाओं को मान्यता, संगोष्ठियों एवं पुस्तक प्रदर्शनियों का आयोजन, हिंदी पुस्तकों का निःशुल्क वितरण,  हिंदी प्रचार के लिए राज्य सरकारों को वित्तीय सहायता, केन्द्रीय हिंदी संस्थान, केन्द्रीय हिंदी निदेशालय, वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग की स्थापना तथा पत्राचार पाठ्यक्रम के माध्यम से हिंदी की शिक्षा देने पर विशेष बल दिया गया है। ये सभी योजनाएँ अंग्रेज़ी की प्रभुता को समाप्त कर हिंदी के उत्तरोतर प्रयोग को बढ़ावा देने के लिए प्रयत्नशील हैं।

                राजभाषा के रूप में हिंदी की अपनी कुछ विशिष्टताएँ हैं, जो उसे हिंदी की अन्य प्रयुक्तियों से भिन्नता प्रदान करती हुई उसका एक निजीस्वरूप निश्चित करती हैं। सामान्य बोलचाल की हिंदी तथा साहित्यिक हिंदी में हम कभी अपने भावों को सीधे व्यक्त कर देते हैं तो कभी उसमें चमत्कार उत्पन्न करने के लिए किसी मुहावरे या लोकोक्ति का प्रयोग भी कर देते हैं, अर्थात् साहित्य में हम अभिधा, व्यंजना तथा लक्षणा का प्रयोग करने के लिए स्वतंत्र होते हैं, किन्तु राजभाषा की स्थिति इसके ठीक विपरीत है। इसमें बात को सीधे-सादे ढंग से कम-से-कम शब्दों में अभिव्यक्त किया जाता है। इस प्रकार ‘अभिधात्मकता’ राजभाषाहिंदी की एक मुख्य विशेषता कही जा सकती है। राजभाषा हिंदी के काफ़ी सारे शब्द ऐसे हैं, जो मूलतः उसी के हैं। यदि अन्य प्रयुक्तियों में भी इनका प्रयोग किया जाता हैं, तो इन का चयन राजभाषा की शब्दावली से ही किया जाता है जैसे-

  1. आयुक्त – commssioner
  2. निविदा – tender
  3. प्रशासकीय – administrative
  4. आयोग – commission
  5. विवाचक – arbitrator
  6. मंत्रालय – ministry

                इन शब्दों का निर्माण विभिन्न भाषाओं के मेल से हुआ है। उदाहरणार्थ ‘उप किराए दारी’ = sub-tenancy इसमें ‘उप’ संस्कृत उपसर्ग है तो ‘किराएदारी’ फ़ारसी भाषा का शब्द है। अनुबंध contract में तत्सम शब्द ‘अनुबंध’ में फ़ारसी प्रत्यय ‘दार’ जोड़ा गया है। इसी प्रकार के अन्य कुछ शब्द इस प्रकार हैं-

  1. जिलाधीश – collector
  2. मुद्राबंद – sealed
  3. अरजिस्ट्रीकृत – unregistered
  4. स्टांपित – stemped

                समासों के आधार पर निर्मित शब्दों में भी इसी प्रवृत्ति के दर्शन होते हैं, जैसे-

  1. सूचनाब्यूरो – information bureau officer
  2. रोज़गार अधिकारी – officer employmentऽ
  3. मिथ्या-दस्तावेज – false  document
  4. उपस्थितिरजिस्टर – attendance register

                राजभाषा हिंदी की एक अन्य विशेषता यह है कि उस के पास एक ही शब्द के लिए कई शब्द उपलब्ध हैं-

  1. कार्यालय -दफ्तर-ऑफिस
  2. न्यायालय – अदालत – कोर्ट – कचहरी
  3. शपथ-पत्र – हलफ़नामा- ऐफ़िडेविट
  4. अधिकारी – अफसर – ऑफिसर

                कई बार देखा गया है कि कई शैलियों का मिश्रित प्रयोग भी किया जाता है। जैसे-

                ‘आज कई आफ़िसर/अधिकारी न्यायालय/कोर्ट में नहीं आए।’ राजभाषा हिंदी के कुछ शब्द ऐसे हैं जो सामान्य बोलचाल की हिंदी में किसी अन्य अर्थ में प्रयुक्त होते हैं तथा राजभाषा हिंदी में किसी अन्य अर्थ में। जैसे-भ्रष्टाचार-corruption, सहचारी-concomitant आदि।

                शब्दों की भाँति कार्यालयी हिंदी में कुछ संक्षेपों का प्रयोग भी किया जाता है, जो सामान्यतः हिंदी की अन्य प्रयुक्तियों-बोलचाल की हिंदी, साहित्यिक हिंदी, बाजार-भाव की हिंदी, खेलकूद की हिंदी-में प्रयुक्त नहीं होते। जैसे-

ऽ     आ. छु.       –     आकस्मिक छुट्टी

ऽ     दै. भ.        –     दैनिक भत्ता

ऽ     अ. छु        –     अर्जित छुट्टी

ऽ     नि. श्रे. लि.   –     निम्न श्रेणी लिपिक

                राजभाषा का प्रयोग करते समय राजतंत्र का कोई व्यक्ति, व्यक्ति न रहकर तंत्र का एक अंग बन जाता है। अतः वह वैयक्तिक रूप से कुछ न कहकर निर्वैयक्तिक रूप से कहता है। इसी कारण राजभाषा हिंदी में कर्मवाच्य की प्रधानता है। इसमें कथन व्यक्ति निरपेक्ष होता है। उदाहरणार्थ –

  1. सर्व साधारण को सूचित किया जाता है (न कि- मैं सर्वसाधारण को सूचित करता हूँ।)
  2. कार्यवाही की जाए (न कि-आपकार्यवाही करें।)

                इसी प्रकार की अन्य अनेक ऐसी विशेषताएँ हैं जो राजभाषा हिंदी को एक विशिष्ट स्वरूप प्रदान करती हुईं, उसके प्रयोग को अधिकाधिक बढ़ावा दे रही हैं। सम्पूर्ण देश में राजभाषा को व्यापक रूप से लागू करने तथा सुचारू ढंग से कार्यान्वित करने के लिए 1976 में राजभाषा नियम का निर्माण किया गया। जिससे यह स्पष्ट हो जाता है कि सभी सरकारी कार्यालयों में हिंदी का प्रयोग निर्बाध रूप से हो सकता है। यदि इसमें कोई समस्या है तो वह है सरकारी विभागों, कार्यालयों में काम करने वाले व्यक्तियों की अंग्रेज़ी भाषा के प्रति रूझान से ग्रस्त मानसिकता। अतः आवश्यकता है कि विचारों के आदान-प्रदान के द्वारा इस मानसिकता में परिवर्तन लाया जाए। उन्हें हिंदी की विशिष्टताओं से अवगत कराया जाए ताकि वे इस संकुचित मानसिकता की दीवार को तोड़कर राष्ट्रीय भाषा  के गौरव से अभिभूत हो सकें। संभावना है कि सरकार द्वारा उठाए गए कदमों के फलस्वरूप सरकारी कार्यालयों में राजभाषा हिंदी का पूर्ण अनुपालन संतोष जनक रूप में संभव हो सकेगा।

डॉ. ममता सिंगला
एसोसिएट प्रोफेसर, हिंदी विभाग
भगिनी निवेदिता कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *