1. प्रिय तुम मेरी कविताओं में आओगे

जब रात चांदनी रो रोकर
कोई गीत नया सुनाएगी
ओस की बूंद बनकर
धरती पर वह छा जाएगी
उसकी उस मौन व्यथा को
तुम शब्दों का रूप दे जाओगे

प्रिय तुम मेरी कविताओ में आओगे
जब आंख के आंसू बहकर के
कपोलों पर ठहरे होंगेहों गे
जब काजल के शब्दों ने
कुछ गीत नए लिखे होंगेहों गे
तब इन गीतों के शब्दों में
तुम ध्वनि बनकर बस जाओगे
प्रिय तुम मेरी कविताओं

में आओगे
जब पीड़ा अपने स्वर को
कैनवस पर मुखरित करेगी
गजल और गीत बनकर वो
मन मन्दिर को हर्षित करेगी
तब तुम श्याम की बांसुरी बन करके

तन-मन को महकाओगे
प्रिय तुम मेरी कविताओं में आओगे।

2. वो मेरा दोस्त .!

 वो मेरा दोस्त मुझे अब खुदा सा लगता है।

तमाम मोड़ में सबसे जुदा सा लगता है।

हंसता है तो आकाश में चाँद खिला सा लगता है

जुल्फें जब वो लहराएं कजरारे मेधा घना सा लगता है।

हो जाये जब वो मुझसे रुख्सत दिन ढला सा लगता है।

जब वो फिर मुझसे मिल पाए दिन खुशनुमा सा लगता है

लफ्ज में है उसके जादू चाल है उसकी मतवाली

इस पूरी बस्ती में वो ही हमनवा सा लगता है

मेरी दीवानगी का आलम तो देखो मैं कहने से शरम करता हूँ

उसके बिना ये जीवन बेसुरा सा लगता है।

यदि मुझको न मिल पाए खुदा खफा सा लगता है।

वो तमाम भीड़ में सबसे जुदा सा लगता है।

3. धूप आज कुछ देर से निकली

धूप आज कुछ देर से निकली

कोहासा धीरे-धीरे हटने लगा

चिड़ियों की चहक महक

कुत्तों का आर्तनाद

उनके बीच से उभरता हुआ एक अस्पष्ट स्वर

स्वर के बोल शायद सिमटी हुई कातरता

खरीददार चाहिए-खरीददार चाहिए

उत्सुकता ने जोर मारा

मैं घर की चहारदीवारी पर पहुंचा

देखा एक कृषकाय युवक

हाथ में खादी का झोला

चेहरे पर तनाव की मुद्रायें और कद मझोला

मैंने पूछा मित्र तुम क्या बेचना चाहते हो?

प्रत्युत्तर मैं अपने सपनों को

बेचना चाहता हूँ, खरीददार चाहिए

मित्र तुम्हारे सपने क्या हैं? खादी के झोले में रखी कागज की प्रतियां

ये मेरे जीवन के विगत पच्चीस वर्ष

की कमाई है मैं इसे बेचना चाहता हूँ

कुछ ठगा सा स्तब्ध सा उसे देख रहा था

वह शायद समझ गया था कि मंजिल अभी दूर है

वह आगे बढ़ गया

मैंने सिर उठाकर ऊपर की ओर देखा

सूरज अब सिर पर आ गया था।

राकेश धर द्विवेदी

गोमतीनगर

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