
- एक साहित्यिक गोष्ठी का सारांश
शहर के तमाम बुद्धिजीवियों
कथाकारों और कवियों ने
हिन्दुस्तान की समस्याओं
को लेकर संगोष्ठी की
मंच पर हिन्दुस्तान का
नक्शा लगा हुआ था
किसी ने बताया कि नक्शे के
इस भाग पर भुखमरी की समस्या
तो किसी ने बताया इस भाग पर
बेरोजगारी है कोई किसी हिस्से पर
हुए बलात्कार की घटना से
परेशान था तो कोई किसी का
किसी स्थान पर हुए आत्महत्या और
मानवाधिकारों के उल्लंघन से
हुआ बुरा हाल था
संगोष्ठी के बाद खानपान
और पीने का दौर चला
और बुद्धिजीवियों ने पी-पीकर
अनेक बोतलों को खाली कर
सभी समस्याओं को उन्हीं बोतलों में बंद कर दिया।
और इस बीच हिन्दुस्तान का
नक्शा अब जमीन पर गिरकर फड़फड़ा रहा था।
२. अब मुझे भगवान मिल गये हैं।
मैं एक सुबह उठकर
निकल पड़ता हूँ
कार्यालय के लिए
दौड़कर मेट्रो को
पकड़ता हूँ
और सीट पर बैठने
का प्रयास करता हूँ
तब तक कोई दूसरा बैठ जाता है
मैं थका हारा देखता हूँ
खिड़की से अनेक व्यक्तियों
को बड़ी गाडियों से जाते हुए
मैं पराजित सा महसूस करता हूँ
मैं कार्यालय में नोटिंग फाइल पर
नोटिंग लिखकर
बाॅस के कमरे में ले जाता हू
और झिड़क कर कक्ष से
बाहर कर दिया जाता हूँ
कि आई पर बिन्दी नहीं रखी
मैं पराजित महसूस करता हूँ
कुछ सुस्वादु भोजन खाने की
तलाश में शापिंग माल में घुस जाता हूँ
किन्तु भाव सुन पुनः
जेब में इकलौते नोट को
हाथ में दबाये
छोला-कुल्चा खाकर
अपनी क्षुधा को शांत करता हूँ
मैं पराजित महसूस करता हूँ
मैं तमाम पराजयों की गठरी लादे
विजय की आशा में
ढूँढता हुआ भगवान को
अनेक मंदिर-मस्जिद-और गिरजाघरों में
शाम को अपने घर की काॅलवेल बजाता हूँ
और दरवाजा खुलने पर
छह माह का नन्हा सा
बच्चा मुझसे लिपट जाता है
और अपने छोटे-छोटे हाथो से
मेरे दोनों गालों को सहलाता है
मैं उसके दैवीय स्पर्श से उर्जान्वित हूँ
अपनी अपनी तमाम पराजयों को झाड़कर
फिर तैयार हो जाता हूँ
दूसरे दिवस के विजय अभियान के लिए
अब मुझे मुझे भगवान मिल गए हैं।
3. इस नववर्ष पर
महानगर के व्यस्ततम सड़कों पर
घने कोहरे और हड्डियों को कंपा देने वाली शीत
के मध्य बड़ी-बड़ी गाडियों में
लोग गतिमान हैं
चैराहे के लाल सिग्नल
पर रूक जाती है गाड़ियों और
अनेक-छोटे-छोटे बच्चे
फटे-पुराने कपड़ों में
लिए पुष्प, पुष्प गुच्छ
दे रहे हैं इस नववर्ष का
शुभकामना संदेश
वे नहीं ले रहे बदले में कोई शुभकामना संदेश
क्योंकि इन पुष्पों से उन्होंने सीख लिया है
कांटो के बीच मुस्कुराना
और प्रदूषित फिजां में
सुगंध बिखेरना।
राकेश धर द्विवेदी
गोमतीनगर
लखनऊ