मीडिया समाज का आईना होता है। यही नहीं यह लोकतंत्र के चार स्तम्भ में से एक सशक्त स्तम्भ माना जाता है। स्वतंत्रता के बाद सामाजिक ,राजनीतिक और आर्थिक ढाँचे में जहाँ परिवर्तन आये, वहीं पत्रकारिता के क्षेत्र में भी व्यापक बदलाव आया। पत्रकारिता की भौतिक लालसा और इस लालसा की पूर्ति के लिए कुछ करने की नि:संकोची भावना ने मीडिया के स्वरूप को पूरी तरह बदल दिया है। आज के दौर में मीडिया एक सफल उद्योग का स्वरूप ग्रहण कर लिया है। इस तरह निष्पक्ष पत्रकारिता का पूरा आदर्श औप ढांचा ही चरमराने लगा। जहां पत्रकारिता का स्वरूप बदलता जा रहा है वहीं विचार शून्यता साफ झलकती है।

                         राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने कहा था कि सरकार का धर्म है कि वह गति को पहचाने और युगधर्म की पुकार का बढ़कर आदर करे। उन्होंने कहा हिन्दी को देश में उसी तरह से लाया जाना चाहिए जिस तरह से अहिन्दी भाषी भारत के लोग उसको लाना चाहते हैं। यही वाक्य हमारे देश में हिन्दी के प्रसार की नीति का अधार है और भविष्य में भी होना चाहिए। शुरूआत में सोशल मीडिया पर अंग्रेजी का वर्चस्व था जिससे यह अंग्रेजी जानकार लोगों के बीच काफी लोकप्रिय था। लेकिन पिछले दशक से देश में तकनीक का फैलाव काफी तेजी से हुआ और मीडिया में विभिन्न भाषाओं एंव साहित्य को जगह मिलनी शुरू हो गई, जो सोशल मीडिया के  पत्रकारिता के स्वरूप को बदल रहा है। स्मार्ट फोन के बढ़ते चलन से अब पाठकों में चलते-फिरते पढ़ने की आदत बढ़ती जा रही है। सोशल साइट्स के फैलाव से साहित्य लिखना आसान हुआ है। अगर किसी कवि या काहनीकार की रचना किसी कारणवश नहीं छप सकती है तो उसके पास अपने पाठकों तक पहुंचने का एक वैकल्पिक मंच है। यद्यपि सोशल मीडिया पर साहित्य का प्रारम्भिक दौर है लेकिन यह भविष्य का माध्यम है।

                                      सोशल मीडिया अपने आप को उद्दघाटित करने का बेहतर मंच है और हिन्दी के फैलाव के हित में है लेकिन इसके श्वेत और श्याम दोनों ही पक्ष हमारे सामने मौजूद है उजले पक्ष के रूप में संवाद और विमर्श है तो श्याम पक्ष के रूप में इसके सतहीपन की खास कमियां देखने को मिलती है। सोशल मीडिया खासकर फेसबुक ने दो काम किए हैं। एक तो इसने तमाम हिन्दी जाननेवाले को रचनाकार बना दिया है जिसे भी थोड़ी बहुत साहित्य में रचा वो लिखकर पोस्ट कर दे रहा है। उनेक मित्र उनकी रचना को पढ़े या कभी बिना पढ़े लाइक कर देते है जिससे उनकी रचना पर मिली तारीफ उनको भ्रमित भी करती है। सोशल मीडिया के लिए यह अच्छा भी है और बुरा भी। अच्छा इसलिए की रचने वाले को मंच मिला, बुरा इस वजह से कि अच्छे बुरे लेखन का भेद मिटता जा रहा है।

            कुल मिलाकर हम कह सकते हैं कि सोशल मीडिया के फैलाव से हिन्दी भाषा साहित्य का हित ही हो रहा है। जरूरत इस बात की है कि लोग इस माध्यम को अपनाएं और सोशल मीडिया द्वारा हिन्दी भाषा साहित्य को समृध्द बनाने में अपना योगदान दें।

                                                            डा.कृष्णा कुमारी
                                                            इतिहास विभाग
                                                          कालिन्दी कॉलेज

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