महादेवी वर्मा छायावाद की प्रमुख कवियित्री थीं। रहस्यवादी चिन्तन की प्रधानता के कारण महादेवी का नारी चित्रण अनुभूति प्ररक हो गया है।उन्होंने नारी के मातृत्व,करूणा और आत्मसमर्पण की भावना को अधिक महत्व प्रदान किया है।

1- महादेवी के काव्य में नारी विषयक दृष्टिकोण –

महादेवी वर्मा नारी की मूल भावनाओं को समझने से अधिक सफल हुई हैं और उनके नारी विषयक चिन्तन में स्वाभाविकता भी आई है।महादेवी वर्मा ने नारी का आत्म समर्पण वाला रूप अधिक देखा है। इसी कारण उनके चित्रण करूण और मधुर हो गए हैं।महादेवी वर्मा ने ‘स्व’ को केन्द्रित करके नारी को देखा है।जो कुछ भी उन्होंने लिखा वह नारी जीवन का पर्याय बन गया।महादेवी वर्मा जी अपने अज्ञात प्रियतम को जिस रूप में देखती हैं, वह उनका अपना ढंग है। हृदय की रागात्मक वृत्तियों को कविता के सांचे में ढालकर वे प्रियतम तक अपना संदेश पहुँचाती हैं-

  “कैसे संदेश प्रिय पहुँचाती,

 दृग जल की सित मसि है अक्षय

मैं अपने ही बेसुध तन में

लिखती हूँ कुछ-कुछ लिख जाती।” 1

महादेवी के काव्य में प्रेयसी के जीवन की विरहानुभूति है। मिलन की आतुरता अलौकिक है।अपने प्रियतम को दुःखते हृदय मंदिर में बिठाकर वे स्नेह दीप से अर्चना करना चाहती है-

                         तुम मानस में बस जाओ, 

                          छिप दुःख के अवगुंठन से।

                          मैं तुम्हें ढूँढने के मिस,

                          परिचित हो लूँ कण-कण से।।2

कण-कण से परिचित होने की बात में महादेवी जी ने नारी हृदय की जिज्ञासु वृत्ति का परिचय दिया है।अपने प्रिय की खोज करना कोई आसान काम नही है।आध्यात्म में जो महत्व ईश्वर साक्षात्कार का है,समाज में वही भूमिका नारी की अपने जीवन साथी से मिलने में है।महादेवी वर्मा की करूणामयी नारी दो-चार पलों के सुखद मिलन की अपेक्षा विरह वेदना के अपार कल्पों को चाहती है।3 प्रियतम की मधुर स्मृतियां विरह के क्षणों में भी माधुर्य की धारा प्रवाहित कर देती है-

                                  “विरह का युग आज दीखा,

                                   मिलन के लघु पल सरीखा,

                                   दुःख सुख में  कौन  तीखा,

                                   मैं  न  जानी  औ  न  सीखा,

                                  मधुर  मुझको  हो गए सब,

                                  मधुर  प्रिय  की भावना से।”4

महादेवी वर्मा की वेदनानुभूति इतनी व्यापक है,इतनी गहरी है, कि सबकी अनुभूतियाँ उससे जुड़कर यह मान लेती हैं, कि यह मेरे ही जीवन की कथा है, इसी से यह कहा जा सकता है, कि महादेवी वर्मा की वेदना में विश्वनारी की वेदना समाहित है-

           ” मैं नीर भरी दुःख की बदली!  

             विस्तृत नभ का  कोई  कोना,

              मेरा  न  कभी अपना  होना,

              परिचय इतना,इतिहास इतना,

              उमड़ी कल थी मिट आज चली।”

उपरोक्त पंक्तियों में नारी हृदय की अनासक्त वेदना शाश्वत सत्य के धरातल पर प्रस्फुटित हुई है।महात्मा गौतमबुद्ध ने जिस दुःखवाद और करुणा भाव का प्रवर्तन किया है, महादेवी वर्मा ने उसे अपने गीतों में अभिव्यक्ति प्रदान की है।कहीं पर साध्य और कहीं पर साधना, किन्तु महादेवी वर्मा जी, ने अत्यन्त मार्मिक ढंग से वेदना भाव को अभिव्यक्त किया है-

                          “तुम दुःख बन इस पथ में आना,

                            फूलों में नित मृदु पाटल-सा

                            खिलने  देना  मेरा  जीवन,

                            क्या हार बनेगा वह जिसने

                            सीखा न हृदय को बिंधवाना।”

अपना सम्पूर्ण जीवन,बाह्य-अभ्यन्तर सब कुछ प्रियतम को समर्पित करने का अनूठा भाव महादेवी के गीतों में चित्रित नारी भावना में है-

                     “बीन भी हूँ मैं तुम्हारी रागिनी भी हूँ!

                     नींद थी मेरी अचल निस्पन्द कण-कण में,

                    प्रथम जागृति थी जगत के प्रथम स्पंदन में

                  प्रलय में मेरा पता,पद चिन्ह जीवन में,

                  शाप हूँ जो बन गया वरदान बन्धन में !”

प्रिय और प्रेयसी के मधुर मिलन का नाम ही जीवन है। यह मिलन रहस्यवाद में व्यापक भाव भूमि पर प्रतिष्ठित रहता है।महादेवी की आस्था प्रकृति के व्यापक फलक से लेकर हृदय तक है-

                         “कैसे कहती हो पना है,

                         अलि उस मूक मिलन की बात।

                          भरे हुए अब तक फूलों में,

                            मेरे आँसू उनके हास।”

मनुष्य ने सौन्दर्य और सुख से प्रेरित होकर अन्तर्जगत में चिन्तनशील व्यक्तित्व की कल्पना की है।इसके बल पर परोक्ष सत्ता की अनुभूति और दर्शन उसे मिलता रहता है।

मनुष्य तरह-तरह के रूपों और भावों में उस परम सत्ता का सामीप्य चाहने का प्रयास करता है।रहस्य भावना में प्रिय और प्रेयसी का पति-पत्नी भाव आरोपित रहता है।भारतीय नारी का भी यही आदर्श है।नारी अपना कुल, गोत्र सब छोड़ कर पति के प्रति समर्पित हो जाती है और अपने अटल प्रेम तथा समर्पित भावना के बल पर पति पर अधिकार प्राप्त करती है।

महादेवी वर्मा की आत्मा चिरन्तन प्रिय की सुहागिन रूप में-

      “प्रिय चिरन्तन है सजनि,

        क्षण-क्षण नवीन सुहागिन मैं।” 5 

महादेवी वर्मा के काव्य की अनन्य प्रणयिनी नारी अपने अलक्ष्य प्रियतम के स्वागत अभिनन्दन में भावान्जलि ले तैयार खड़ी रहती है। प्रियतमा प्रिय के चरणों पर अपना सर्वस्व न्यौछावर करने की आकांक्षा लिए हुए हैं।वह प्रेम के मार्ग पर सब कुछ देने को ही सब कुछ पा जाना समझती है।

                “आँसू लेते वे पद पखार

                 हँस उठते पल में आर्द्र नैन

                धुल जाता ओठों से विषाद

                 छा जाता जीवन में वसन्त

                  आँखे देती सर्वस्व वार।” 6 

प्रियतम की स्मृति साथ में है,तो फिर प्रेयसी के लिए संसार में और कुछ अपेक्षा नहीं है।प्रिय की स्मृति हृदय में जिस पुलक को भर देती है,उसकी समानता कोई धन नही कर सकता-

                     “तुम मुझमें प्रिय फिर परिचय क्या,

                           तारक में छवि प्राणों में स्मृति,

                           पलकों में नीरव पद की गति

                            लघु उर में पुलकों की संसृति

                             भर लायी हूँ,

                तेरी चंचल और करूं जग में क्या।”7 

महादेवी वर्मा का नारी भाव करूणा और वेदना से संपृक्त होते हुए भी अपने इष्ट के प्रति पूर्ण संतुष्टि के भाव से मण्डित है।ऐसा अलौकिक भाव जहाँ प्रेयसी का हृदय करूण आनन्द से लवालव भरा है।सुख और दुःख की स्मृतियों में सदा साथ रहने वाले प्रियतम से परिचय की और अभिलाषा ही क्या-

                             “तुमको पहचानूँ  क्या सुन्दर

                              जो मेरे सुख दुःख में उर्बर

                             जिसको मैं अपना कह गर्वित।” 8 

प्रियतम से मिलने वाले सुख अथवा दुःख की महादेवी की नारी को कोई परवाह नही है।चाहे सुख भरा वसन्त हो चाहे क्रोध का भ्रूभंग लिए पतझर हो,महादेवी की वेदना दोनों ही स्थितियों का स्वागत करने के लिए तत्पर है-

                “हास का मधु दूत भेजो,

                 रोष की भ्रू भंगिमा पतझर को चाहे सहेजो।

                ले मिलेगा उर अचंचल,

                 वेदना जल,स्वप्न शतदल। 9 

महादेवी वर्मा के मातृ हृदय में सम्पूर्ण विश्व भोले-भाले शिशु सदृश्य है।वे परमपिता से सम्पूर्ण जगत के प्राणियों की कल्याण कामना करती हैं।महादेवी के विराट भाव में उनका विराट प्रियतम विश्वमानव का पिता है-

                     “इन स्निग्ध लटों से छा दे तन,

                      पुलकित अंकों में भर विशाल,

                      झुक सस्मित शीतल चुम्बन से

                      अंकित कर इसका मृदुल भाल।

                       दुलरा देना बहला देना

                        यह तेरा शिशु जग है उदास।”  10 

उक्त विवेचन से ज्ञात होता है, कि महादेवी के काव्य में विश्व वेदना का भाव उनकी व्यापक नारी संवेदना का परिणाम है।नारी का करूण, मधुर रूप विश्व मानव को एकता के सूत्र में बाँधने की प्रेरणा देने वाला है। प्रेयसी और माँ के सम्बन्ध में महादेवी की अनुभूति व्यापक धरातल का स्पर्श करती है।

 

संदर्भ ग्रंथ – 

1- नीरजा-महादेवी वर्मा, पृष्ठ संख्या – 46

2-यामा – महादेवी वर्मा, पृष्ठ संख्या – 77

3-आधुनिक हिन्दी काव्य में नारी- श्रीमती सरला दुआ,पृष्ठ संख्या-216

4-यामा- महादेवी वर्मा, पृष्ठ संख्या – 221

5- सांध्यगीत- महादेव वर्मा,पृष्ठ संख्या- 51

6-  नीहार –  महादेवी वर्मा, पृष्ठ संख्या – 64

7- नीरजा –  महादेवी वर्मा, पृष्ठ संख्या – 24

8-नीरजा-  महादेवी वर्मा,पृष्ठ संख्या- 53

9 – दीपशिखा – महादेवी वर्मा, पृष्ठसंख्या-5

10 – नीरजा – महादेवी वर्मा, पृष्ठ संख्या – 23

 

डाॅ. क्षमा सिसोदिया उज्जैनी

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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