आज सिनेमा का विश्व भर में प्रसार हुआ है । दुनिया की लगभग सभी भाषाओं में फिल्में बन रही हैं। भारत में भी सभी प्रमुख भाषाओं में फिल्में बनती हैं। इनमें केरल की भाषा मलयालम में बनी फिल्मों का भी प्रमुख स्थान  है। आधुनिक मलयालम सिनेमा सच्चे अर्थों में समाज का दर्पण बन चुका है। आज मलयालम सिनेमा व्यवसाय भारतीय फिल्म  क्षेत्र के सर्वाधिक विकसित फिल्म – उद्योगों में एक माना जाता है। मलयालम सिनेमा क्षेत्र में पहले ऐसी फिल्म बनती थीं , जिनमें आवाज नहीं होती थी, जिसमें केवल चलता-फिरता चित्र दिखाई देता था। उन्हें मूक फिल्म कहा गया। फिर आवाज के साथ  फिल्में आई। लोगों ने उन्हें बहुत पसंद किया। धीरे-धीरे सिनेमा ने कला का रूप ले लिया। बहुत से अभिनेता, गायक, कलाकार, नर्तक, संगीतकार आदि इस कला से जुड़ गए। धीरे- धीरे इस कला का व्यवसाय से गहरा संबंध हो गया। रंगीन फिल्में बनने लगीं, सिनेमा की तकनीक में निरंतर सुधार आने लगा। सिनेमा जगत् से जुड़े लोग जनता में प्रसिद्धि पाने लगे। सिनेमा के गीत-संगीत लोकप्रिय होने लगे। इस प्रकार वर्तमान समय में  मलयालम सिनेमा मनोरंजन का सबसे लोकप्रिय साधन भी बन गया है।

एम .एफ . थॉमस की राय में मलयालम सिनेमा का प्राचीन इतिहास की जानकारी हमें चेलंङाट गोपालाकृष्णन के लेखों से प्राप्त है । मलयालम की पहली मूक सिनेमा ‘विगत कुमारन ‘ (Vigathakumaran) 1928 में  रिलीज हुई थी। इस सिनेमा में किसी प्रकार की आवाज नहीं होती थी। लोग केवल चलता-फिरता चित्र देख सकते थे। यह सिनेमा पहली बार  7 नबंबर,1928 को द कैपिटल थियेटटर में प्रदर्शित किया गया था। इस फिल्म के पटकथा लेखक, कैमरामैन, निर्देशक और निर्माता भी जे .सी डेनियल थे। उन्हें मलयालम सिनेमा के जनक माना जाता है।  जे. सी. डैनियल अपनी पहली सिनेमा की तैयारी के लिए सबसे पहले मद्रास गए। वहाँ के  स्टूडियो से उन्हें सहयोग न मिलने के कारण अपने सपनों को साकार करने के लिए मुंबई गए। वहाँ से  डेनियल ने अपनी पहली सिनेमा के लिए  कैमरा से लेकर सब कुछ तैयार किया। उन्होंने केरल में पहला फिल्म स्टूडियो ट्रावनकूर/ त्रावणकोर नेशनल पिक्चर्स स्थापित किया। यह स्टुडियो तिरुवनंतपुरम में लोक सेवा आयोग कार्यालय के पास वकील नागप्पन नायर के घर शरदा विलास में स्थापित किया। उन्होंने इस  सिनेमा के निर्माण के लिए पैसे जुटाने के लिए अपना घर और चार लाख रुपये की जमीन आदि बेच दी। इस प्रकार बहुत कठिनाई के साथ ही इस सिनेमा’ का निर्माण पूरा हुआ। इस फिल्म की पूरी शूटिंग केरल में हुई थी। डेनियल ने भी इस फिल्म में एक छोटी भूमिका निभाई। इस फिल्म की नायिका रोसी  एक एंग्लो इंडियन लड़की थी। फिल्म में डेनियल का बेटा सुंदर भी  अभिनय किया।  इस फिल्म का उद्घाटन प्रसिद्ध वकील मल्लूर गोविंद पिल्लई ने किया। यह सिनेमा कोल्लम ,आलप्पुष़ा, त्रिशूर, नागरकोविल आदि स्थानों में प्रदर्शित किया गया था। बहुत दुख की बात है कि यह फिल्म एक वित्तीय विफलता थी, कला के इस आविष्कार से लोगों ने शुरू से ही मुंह मोड़ लिया। सिनेमा से हुए भारी कर्ज के कारण उनका अंतिम जीवन तिरस्कृत और अकेलापन के साथ नरक पूर्ण भी था। उनका जीवन सिनेमा के लिए एक बलिदान था। 1992 में केरल सरकार उनके नाम पर जे .सी. डानियल अवार्ड का आयोजन किया, जो मलयालम सिनेमा क्षेत्र के कार्यरत व्यक्तियों के जीवन भर की उपलब्धियों के लिए दिया जाता है।

मलयालम की दूसरी मूक सिनेमा ‘मार्तांडा वर्मा ‘(Marthanda  Varma)1933  में रिलीज हुई थी। सी. वी. रामन पिल्ले के प्रसिद्ध उपन्यास मार्तंडवर्मा पर आधारित इस पिल्म के निर्माता सुंदर राज  और निर्देशक पी.वी. राव  थे।  लोगों ने मार्तंड वर्मा को  स्वीकार  किया। लेकिन  ‘मार्तंड वर्मा ‘उपन्यास के प्रकाशक कमला बुक डिपो की अनुमति के बिना ही इसे एक फिल्म बनाया, इस पर सुंदर राज के खिलाफ कॉपीराइट संबंधी अदालती  मामलों में यह सिनेमा समाप्त हो गया।  बाद में ‘ फिल्म फेस्टिवल आफ केरला ‘ (1994) और ‘फिलका इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल’ तिरुवनंतपुरम आदि में यह सिनेमा फिर प्रदर्शित किया गया।

 बालन (Balan – 1938) मलयालम की पहली साउंड फिल्म है, जिसका निर्देशन एस.नोटानी ने किया है। ए.सुंदरम की लघु कहानी ‘विधियुम मिसेज नायरुम ‘ पर आधारित इसकी पटकथा और संवाद मुतुकुलम राघवन पिल्लई द्वारा लिखे गये हैं। इसमें दो अनाथ बच्चों की जिन्दगी की कहानी है । यह फिल्म मलयालम फिल्म इतिहास में मील का पत्थर माने जाते है। पहली साउंड फिल्म के साथ यह व्यावसायिक रूप से सफल फिल्म  थी।

मलयालम के पहले सुपरहिट सिनेमा ‘जीवित नौका’ 1951 में रिलीज हुई, जिसमें संयुक्त परिवार की समस्याओं का चित्रण है। ‘जीवित नौका’ नामक सिनेमा लगातार 284 दिनों तक थिएटर में प्रदर्शित किया गया। इसके निर्देशक के .वेंपु और निर्माता के. वि. कोशी और कुंचाको हैं।

 राष्ट्रपति के रजत पदक  से पुरस्कृत फिल्म ‘नीलाकुयिल’ (Neelakkuyil) 1954 में, रिलीज़ हुई। इसकी पटकथा प्रसिद्ध मलयालम उपन्यासकार उरूब ने लिखी थी और इसका निर्देशन पी. भास्करन और रामू करियाट ने किया था। 1955 में रिलीज हुई न्यूज़ पेपर बॉय  में इतालवी नवयथार्थवाद के तत्व देख सकते है। इसमें एक प्रिंटिंग प्रेस कर्मचारी और उसके परिवार की गरीबी  की कहानी चित्रित  है।

1960 के दशक में, एम. कृष्णन नायर , कुंचाको और पी. सुब्रह्मण्यम प्रमुख मलयाली निर्माता थे। तिक्कुरिश्शी सुकुमारन नायर, प्रेम नज़ीर, सत्यन, मधु, अटूर भासी, बहादुर, एस .पी पिल्लई, के.पी उम्मर, कोट्टारक्करा श्रीधरन नायर, राघवन, जी .के पिल्लई, मुतुकुलम, जोसप्रकाश, परवूर भरतन, मुत्तैय्या, शंकराडी, गोविंदनकुट्टी, के .आर विजया, शारदा, शीला, अंबिका, जयभारती, आरंमुला पोन्नम्मा और साधना इस समय के अधिक लोकप्रिय अभिनेताओं में से प्रमुख हैं।

1960 के दशक की अधिकांश फिल्में राष्ट्रवादी और समाजवादी विषयों पर आधारित थीं, जाति और वर्ग शोषण से संबंधित मुद्दों पर केंद्रित थीं । रूढ़िवादी मान्यताओं के खिलाफ लड़ाई, सामंती वर्ग का पतन और संयुक्त परिवार का टूटन आदि समस्यायें भी इस समय सिनेमा के प्रमुख विषय रहे। इस दौर में सिनेमा घरों का फैलाव महानगरों से लेकर छोटे-बड़े शहरों तक हो गया। बाद में श्वेत-श्याम फिल्मों की जगह जब रंगीन फिल्में बनने लगीं तो मलयालम सिनेमा-उद्‌योग ने नई ऊँचाइयों को छूआ। मलयालम सिनेमा की पहली रंगीन फिल्म ‘कंडम बच्चा कोट ‘ (1961)  है। टी.आर. सुंदरम  द्वारा निर्देशित इसके प्रमुख अभिनेता तिक्कुरिश्शी सुकुमारन नायर और आरनमुला पोन्नमा हैं। इस फिल्म को राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में योग्यता  प्राप्त हुआ।

कुंचाको ने मलयालम सिनेमा जगत में कुछ उल्लेखनीय फिल्मों के निर्देशक और एक निर्माता के रूप में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने 1947 में  अलाप्पुष़ा में उदय स्टूडियो शुरू किया। ‘वेल्ली नक्षत्रम’ उदया स्टूडियो द्वारा निर्मित पहली सिनेमा है।  इससे केरल में मलयालम फिल्म निर्माण को बढ़ावा मिला। इस काल में कई निर्देशक उभरे। ‘रोसी ‘ और ‘चेंपरत्ती ‘ के निदेशक पी. एन. मेनन इसमें उल्लेखनीय व्यक्तित्व है। अटूर गोपालकृष्णन भारतीय समानांतर सिनेमा के अग्रदूतों में से एक हैं। रामू कारियट द्वारा निर्देशित ‘चेम्मीन’ (Chemeen – 1965) मलयालम के प्रसिद्ध कथाकार तकष़ी शिवशंकर पिल्लई  के उपन्यास पर आधारित सिनेमा है। यह बहुत लोकप्रिय हुई और सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीतने वाली पहली दक्षिण भारतीय फिल्म बन गई । ‘चेम्मीन’ ने मलयालम सिनेमा इतिहास में नया अध्याय खोला। वयलार रामवर्मा के गीत रचना, देवराजन का संगीत और येशुदास का गाना तीनों  मिलकर यह जन प्रिय बन गयी।  इस समय फिल्मी गीत रचना, संगीत रचना एवं गायन तीनों क्षेत्रों में कलाकारों की संख्या बढ़ती चली गई।

1970 के दशक में मलयालम में सिनेमा का तेज़ी विकास  हुआ।  अटूर गोपालकृष्णन की पहली सिनेमा, ‘स्वयंवरम ‘(1972) ने मलयालम सिनेमा को अंतर्राष्ट्रीय फिल्म क्षेत्र में ला दिया। सन् 1973 में मलयाम के प्रसिद्ध साहित्यकार एम.टी वासुदेवन नायर ने अपनी पहली फिल्म ‘निर्माल्यम ‘ का निर्देशन किया, जो सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से सम्मानित है। जी. अरविंदन के ‘उत्तरायनम ‘ (1974),  के. पी कुमारन के ‘अतिथि आदि’ (1974) उल्लेखनीय फिल्म थी।

1970 के दशक के अंत के दौरान, कुछ युवा कलाकारों ने सिनेमा क्षेत्र को सक्रिय बनाने में सक्षम निकला। प्रसिद्ध निर्देशक, अरविंदन की महत्वपूर्ण फिल्मों में ‘कांचना सीता’ (1977), ‘तंपु’ (1978), ‘कुम्माट्टी’ (1979), ‘चिदंबरम’ (1985), ‘ओरिटत्तु’ (1986) और ‘वास्तुहारा’  (1990) शामिल हैं।

1970 के दशक में उल्लेखनीय निर्देशक पी .जी . विश्वम्भरन का उदय उनकी पहली सिनेमा ‘ओष़ुकिनेतिरे’ और पौराणिक फिल्म ‘सत्यवान सावित्री’  के साथ हुआ, जिसे अच्छी तरह से लोगों ने स्वीकार किया गया। इसके अलावा, इस अवधि में व्यावसायिक सिनेमा में श्रमिक-वर्ग की समस्याओं से जुडे फिल्में अधिक निकली, जिनमें ज्यादातर एम.जी. सोमन , सुकुमारन और सुधीर मुख्य अभिनेता थे। इसके बाद जयन के नेतृत्व में शुद्ध एक्शन-थीम वाली फिल्मों की एक नई शैली का उदय हुआ, पर यह तो अल्पकालिक था।

सिनेमा को समाज का दर्पण माना जाता है। समाज में जो कुछ अच्छी-बुरी घटनाएँ घटती हैं। उनकी झलक फिल्मों में देखी जा सकती है। साथ ही साथ इनमें कल्पनागत बहुत सी  बातें भी दिखाई जाती हैं। 1980 के दशक के मलयालम सिनेमा में हमारी जिंदगी से जुडे विषयों से संबंधित विस्तृत पटकथा थी, जिसमें हास्य और व्यंग्य के साथ गंभीर प्रौढ कथानक शामिल था। फिल्म में संगीत को भी प्रमुखता मिली।

1981 में फ़ाज़िल ने ‘मंजिल विरिंजा पूक्कल ‘को निर्देशित किया, इस फिल्म ने तत्कालीन रोमांटिक स्टार शंकर के साथ मोहनलाल को सिनेमा जगत के सामने पेश किया। अटूर गोपालकृष्णन ने 1981 में ‘एलिपत्तायम ‘ (Elipathayam) बनाया। इस फिल्म को ब्रिटिश फिल्म संस्थान का पुरस्कार मिला। 1980 के दशक के प्रमुख निर्देशक हैं – पद्मराजन, भरतन और के.जी.जॉर्ज आदि। पद्मराजन अपने सुंदर पटकथा लेखन और अभिव्यंजक निर्देशन शैली के लिए विख्यात है। पद्मराजन  द्वारा निर्देशित प्रसिद्ध सिनेमा है – ‘ओरिटतोरु फयलवान ‘ (1981), ‘कूटेविडे ‘ (1983), ‘ तिंकलाष्चा नल्ला दिवसम ‘(1985) ‘अरप्पट्टा केट्टिया ग्रामत्तिल’ (1986), ‘नमुक्कु पारक्कान मुंतिरि तोप्पुकल’ (1986) ‘तुवानतुंपिकल’ (1987), ‘मुन्नाम पक्कम’ (1988), इन्नले(1989) और ञान गंधर्वन (1991) आदि। के.जी.जॉर्ज द्वारा निर्देशित ‘यवनिका’ और ‘आदामिन्टे वारियेल्लु’ सहित कई फिल्में इस समय रिलीज़ हुई। इस अवधि के प्रमुख जनप्रिय फिल्में हैं आरण्यकम और ओरु वटक्कन वीरगाथा।

इस दौर में प्रियदर्शन, सत्यन अन्तिक्काटु, कमल और सिद्दीक – लाल जैसे निर्देशकों की फिल्में  हास्य – व्यंग्यात्मक  थीं। षाजी एन. करुण के ‘ पिरवी’ (1989) कान फिल्म समारोह में पुरस्कृत फिल्म थी। इस समय से उदित  प्रमुख सितारे हैं – मम्मूटी और मोहनलाल। मोहनलाल  पाँच राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित व्यक्ति है, जिनमें दो सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के लिए, एक विशेष जूरी पुरस्कार, एक विशेष उल्लेख और एक निर्माता के रूप में पुरस्कार मिले हैं। मम्मूटी को सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के लिए तीन राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिले है। वर्ष 1989 में उन्हें मतिलुकल और ‘ओरु वटक्कन वीरगाथा’ के लिए, 1993 में ‘पोंतन माडा’ और ‘विधेयन’ नामक सिनेमा के लिए, वर्ष 1999 में,  फिल्म ‘डॉ बाबासाहेब अम्बेडकर’ के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिले हैं, सात बार केरल राज्य के फिल्म पुरस्कार, तेरह फिल्म फेयर पुरस्कार से भी सम्मानित है।

1990 के बाद के प्रसिद्ध हिट फिल्में है – अटूर गोपालकृष्णन द्वारा निर्देशित ‘ मतिलुकल ‘(1990), पी.जी.विश्वभरन द्वारा निर्देशित ‘काट्टुकुतिरा’ (1990) , भरतन द्वारा निर्देशित ‘अमरम’ (1991), कमल द्वारा निर्देशित ‘उल्लटक्कम’ (1992),  प्रियदर्शन द्वारा  निर्देशित ‘किलुक्कम’ (1991), सिबी मलयिल द्वारा निर्देशित ‘कमलदलम’ (1992), अटूर गोपालकृष्णन द्वारा निर्देशित ‘विधेयन’ (1993) ऐ .वी. शशी द्वारा निर्देशित ‘देवासुरम’ (1993), फाज़िल द्वारा ‘मनिचित्रत्ताषु’ (1993), टी. वी .चंद्रन द्वारा ‘पोन्तन माडा’ (1993), भद्रन द्वारा ‘स्पटिकम’ (1995), षाजी कैलास द्वारा ‘कम्मीशनर’ (1994), ‘द किंङ ‘ (1995), सिद्दीकी द्वारा ‘हिटलर’ (1996) और जयराज द्वारा ‘देशाटनम’ (1997) आदि। इस समय रिलीज़ हुई ‘इन हरिहर नगर’ एक हास्य हिट सिनेमा थी, इस सिनेमा ने जगदीश, सिद्दीकी , मुकेश और अशोकन आदि अभिनेताओं को उनकी कॉमडी भूमिकाओं के लिए बहुत जनप्रिय बना दिया।

षाजी एन.करुण द्वारा निर्देशित स्वाहम (1994) कान इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में प्रतियोगिता के लिए पहली मलयालम फिल्म प्रविष्टि थी, जहाँ इसे Palme d’or के लिए नामांकित किया गया था। मुरली नायर के ‘मरना सिम्हासनम’ ने 1999 के कान फिल्म समारोह में camera d’or पुरस्कार प्राप्त फिल्म थी।  राजीव अंचल द्वारा निर्देशित ‘गुरु’  को ऑस्कर के लिए  सर्वश्रेष्ठ विदेशी फिल्म श्रेणी में नामांकन मिला, जिससे यह मलयालम में ऑस्कर नामांकन के लिए चुनी जाने वाली पहली फिल्म बन गई।

इस काल के प्रमुख हिट फिल्म षाजी कैलास द्वारा निर्देशित ‘नरसिम्हम’ (2000) ,’जॉनी एंटनी’ द्वारा ‘सी आई डी ​​मूसा’ (2003) , लाल जोस द्वारा ‘मीशा माधवन’ (2002), शशी शंकर द्वारा निर्देशित ‘कुंजिकूनन’ (2002), कमल द्वारा निर्देशित ‘मेघमल्हार’ , ‘मधुरनोंबरकाट्टू’ , रंजित द्वारा निर्देशित ‘नंदनम’ और ब्लेस्सी द्वारा निर्देशित ‘काष्चा’ आदि।

सिनेमा का निर्माण एक महँगी कला है। एक फिल्म के निर्माण में ही करोड़ों रुपये व्यय किए जाते हैं। नई पीढ़ी ने 2010 की शुरुआत में मलयालम फिल्म उद्योग को पुनर्जीवित करने में सफल बना। 2010 के बाद मलयालम फिल्म क्षेत्र में पुनरुत्थान एवं जागरण के संकेत  मिलता है। कई प्रयोगात्मक फिल्मों (न्यू वेव या न्यू जेनरेशन फिल्मों) की रिलीज के साथ, नए निर्देशकों और अभिनेताओं का भी उदय हुआ। परंपरा से हटकर  नवीन विषयों का चयन और नई शैलीगत तकनीक इसकी प्रमुख खूबियाँ है। इसीलिए ऐसी फ़िल्में बेहद पसंद की जाती हैं जो सच्चाई को बेपरवाह, बेखटके सबके सामने लाती हैं और साधारण व्यक्ति के दिल में घुसकर उसे सोचने-समझने पर मजबूर कर देती हैं। नई पीढ़ी ने मलयालम फिल्म उद्योग को अपना पुराना गौरव वापस पाने में बहुत अधिक सहयोग दी। इस नई लहर में सुपर स्टार  युग के अंत के साथ मलयालम सिनेमा में आमूल-चूल परिवर्तन देख सकते है। इस काल के प्रमुख अभिनेता हैं- दिलीप, पृथ्वीराज, सूरज वेंजारंमूडू, फहद फासिल, सिद्दीकी, कुंजाको बोबन, निविन पोली, दुलखर सलमान, पार्वती, मंजू वारियर, मीरा जासमिन, भावना, काव्या माधवन आदि। इस नये निर्देशकों के अधिकांश फिल्में मामूली बजट की होती हैं । राजेश पिल्लै (ट्रैफिक) आशिक अबू (साल्ट एन पेप्पर, 22 फिमेल कोट्टयम), लिजो जोस पेल्लिश्शेरी (नायकन,  आमीन), अरुण कुमार (कॉकटेल), समीर ताहिर (चप्पा कुरिश), माधव रामदासन (मेलविलासम), वी. के. प्रकाश (ब्यूटिफुल , त्रिवेंद्रम लॉड्ज) आदि इस दौर के प्रमुख निर्देशक एवं उनके कम बजट फिल्में  हैं।

सलीम अहमद के ‘अदमिन्टे मकन अबू’ को 2011 में सर्वश्रेष्ठ विदेशी फिल्म श्रेणी में नामांकन मिला। इस फिल्म को  सर्वश्रेष्ठ फिल्म और सर्वश्रेष्ठ अभिनेता (सलीम कुमार) केलिए भारत के राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिले हैं। क्रिस्टियन ब्रदर्स (Christian Brothers ) 2012 मार्च को कुल 310 प्रिंटों के साथ दुनिया भर में प्रदर्शित किया गया था, यह केरल में 154 केंद्रों, केरल के बाहर 90 केंद्रों और विदेशों में 80 केंद्रों पर रीलीज हुई ।   इस रिकॉर्ड को बाद में पेरुचाष़ी Peruchazhi (2014) ने तोड़ा, जो 29 अगस्त को दुनिया भर में 500 केन्द्रों पर रिलीज हुई थी। दृश्यम Drisyam (2013) बॉक्स ऑफिस पर 500 मिलियन पार करने वाली पहली मलयालम सिनेमा बनी। बाद में, 2016 में, पुलीमुरुकन (Pulimuru kan) बॉक्स ऑफिस पर एक बिलियन का आंकड़ा पार करने वाली पहली मलयालम फिल्म बनी। 2019 में रीलीज हुई प्रमुख फिल्में है- ‘लव एक्शन ड्रामा’, ‘लुसिफर’ , ‘तप्णीर मत्तन’, ‘काक्की’ आदि।  ‘लुसिफर’ 28 मार्च 2019 को दुनिया भर के सिनेमाघरों में रिलीज हुई थी। यह वर्तमान में अब तक की सबसे अधिक कमाई करने वाली मलयालम फिल्म है। 2020 -2021 वर्ष के प्रमुख फिल्में है – ‘अय्यप्पनुम कोशियुम’, ‘कप्पेला’, ‘खो-खो’, ‘वेल्लम’, ‘आरक्करियाँ’, ‘नायाट्टु’ , ‘ऑपरेशन जावा’ आदि।

‘केरल राज्य फिल्म पुरस्कार’ मलयालम भाषा में बने चलचित्रों को दिया जाता है। यह पुरस्कार केरल राज्य चलचित्र अकादमी द्वारा 1998 से कल्चरल एफेयेर्स विभाग, केरल सरकार  की ओर से प्रदान किए जाते है। पुरस्कार 1969 में शुरू किए गए थे। पुरस्कार विजेताओं का फैसला अकादमी  द्वारा गठित एक स्वतंत्र जूरी द्वारा किया जाता है। जूरी में आमतौर पर फिल्म क्षेत्र के व्यक्तित्व होते हैं। इस पुरस्कारों का उद्देश्य कलात्मक मूल्यों वाली फिल्मों को बढ़ावा देना और कलाकारों और तकनीशियनों को प्रोत्साहित करना है। केरल का अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव तिरुवनंतपुरम में प्रतिवर्ष नवंबर/दिसंबर में आयोजित किया जाता है। यह 1996 में शुरू किया गया था और राज्य सरकार के कल्चरल अफेयर्स विभाग की ओर से केरल राज्य चलचित्र अकादमी द्वारा आयोजित  है। इसे भारत के प्रमुख फिल्म समारोहों में से एक माना जाता है। मलयालम मूवी आर्टिस्ट एसोसिएशन (ए.एम.एम.ए) मलयालम सिनेमा में काम करने वाले फिल्म अभिनेताओं और अभिनेत्रियों का एक  संगठन है, जिसका गठन 1994 में किया गया था।

संक्षेप में कह सकते हैं कि आज मलयालम सिनेमा का विश्व स्तर पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ा है। पहली मूक सिनेमा विगतकुमारन से लेकर अब तक, मलयालम सिनेमा एक बहुत लम्बा सफ़र तय कर चुका है। आज सिनेमा बनाने के पीछे की सोच एवं तकनीक में भी तेज़ी से परिवर्तन आया है।  मलयालम  सिनेमा हमेशा अपने यथार्थवादी दृष्टिकोण के लिए जानी जाती है जो अपने मुख्य उद्देश्य मनोरंजन तक ही सीमित नहीं है बल्कि समाज व आम आदमी की बुलंद आवाज़ बनकर उभरा है। आज की फ़िल्में हर विषय या समस्या को निर्भीकता से खुलकर सामने रखती हैं। अतः वर्तमान  सिनेमा में विचारशीलता है, गतिशीलता है, सामाजिक व्यवस्थाओं से आम आदमी को लड़ने की शक्ति प्रदान करने की चाह है।  आज मलयालम सिनेमा उद्‌योग विश्व सिनेमा से प्रतिस्पर्धा करने तक योग्य है।

संदर्भ ग्रंथ सूची :-

  1. एम एफ.थॉमस,इंडियन सिनेमा, पृ 73
  2. एम. जयराज, मलयाला सिनेमा पिन्निट्टा वष़िकल,पृ 22
  3. एम. जयराज, मलयाला सिनेमा पिन्निट्टा वष़िकल , एम. जयराज ,पृ 29
  4. एम. जयराज, मलयाला सिनेमा पिन्निट्टा वष़िकल ,पृ 67
  5. साजन तेरुवाप्पुष़ा, क्लासिक सिनेमकल, पृ 52
  6. पालोट दिवाकरन, सिनेमा अन्नुम इन्नुम, पृ 46

 

डॉ. प्रीति. के
सहायक आचार्य एवं हिन्दी विभाग अध्यक्षा
हिन्दी विभाग एवं शोध केन्द्र
पय्यनूर कॉलेज ,
कन्नूर, केरला

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