मंझन कृत मधुमालती सूफी प्रेमाख्यानक काव्य परम्परा का प्रमुख ग्रन्थ है । इसका रचनाकाल सन 1545 ई. है । यह एक नायिका प्रधान कृति है, जिसमें लौकिक प्रेम से अलौकिक प्रेम की ओर जाने का मार्ग दिखाया गया है । यह अवधी भाषा की एक प्रमुख कृति है जिसमें हिन्दू मुस्लिम भेदभाव को दूर करने के लिए मंझन ने हिन्दू घरों की प्रेमकथाओं और लोककथाओं का आश्रय ग्रहण किया है । इस कृति में पूर्व जन्म की प्रीति का वर्णन मिलता है । इसका नायक मनोहर अपनी नायिका मधुमालती से इतना प्रेम करता है कि वह उसकी प्राप्ति के लिए भाँति-भाँति के कष्टों को सहन करने के अतिरिक्त महासुंदरी प्रेमा के प्रणय प्रस्ताव को ठुकराकर उसे बहन बनाता है । इसके अलावा सामान्यतः सूफ़ी प्रेमाख्यानों में नायक को बहुपत्नीवादी दिखाया गया है, परन्तु यह कृति इस दृष्टि से अपवाद है क्योंकि यहाँ नायक मनोहर केवल मात्र अपनी नायिका मधुमालती से ही प्रेम करता है तथा किसी अन्य स्त्री को आँख उठाकर भी नहीं देखता ।

               मंझन कृत मधुमालती में हमें कुछ सामाजिक मूल्य देखने को मिलते हैं जिनका वर्णन इस प्रकार है :-

  1. गुरू का महत्त्व – सभी प्रेमाख्यानों में सामान्यतः गुरू को विशेष महत्त्व प्रदान किया गया है । मंझन ने मधुमालती में भी गुरू की महिमा का वर्णन किया है और बताया है कि जिस प्रकार स्पर्शमणि के स्पर्श करते ही हीन से हीन धातु भी स्वर्ण में परिवर्तित हो जाती है उसी प्रकार गुरू (शेख़ मुहम्मद गौस) के दर्शन मात्र से ही बिना प्रयास के ही सिद्धि प्राप्त हो जाती है :-

            “जस पारस के परसत भीन हेम होइ जाइ ।

         तिमि मैं सेख मुहम्मद देखे बिनु साहस सिधि पाइ ।।”[i]

यहाँ मंझन गुरू की महिमा पर प्रकाश डालते हैं ।

  1. दान की महत्ता – मंझन ने अपनी कृति में दान की महिमा का भी वर्णन किया है और कहा है कि जब तत्कालीन शासक सलीम शाह दान देने के लिए अपने दान का द्वार खोलते हैं तो महा दानी कहलाने वाले स्वयं कर्ण भी दान प्राप्त करने के लिए हाथ फैलाते है :-

         “केहि मुख कहौं दान कै बाता । रायेन्ह पाट मटुक कर दाता ।

          जब वोह दान कर बार उबारै । करन आइ तहं हाथ पसारै ।”[ii]

यहाँ दान देने का महत्त्व प्रकट किया गया है ।

  1. न्यायपूर्ण व्यवहार – मंझन ने अपनी कृति मधुमालती में न्यायपूर्ण व्यवहार करने पर बल देते हुए कहा है कि – तत्कालीन शासक सलीम शाह सबके साथ न्यायपूर्ण व्यवहार करते थे अर्थात् वे किसी के साथ अन्याय नहीं करते थे । तभी उनके शासन काल में भेड़ और भेड़िये एक साथ चरते थे । आगे मंझन कहते है कि उनके राज्य में इतनी नयायपूर्ण व्यवस्था थी कि उसका बखान मैं अपने मुख से नहीं कर सकता और वे (मंझन ) बताते है कि तब शेर गाय की पूंछ अपने हाथ में पकड़े रहता था फिर भी वह गाय का कुछ नहीं बिगाड़ सकता था :-

         “न्याइ किरति जग ऊंच उतंगा । भेंड हुंडार चरहिं एक संगा ।

         न्याइ बखान न मोहि जा कही । गाइ कै पोंछि सिंघ कर गही ।”[iii]

उपर्युक्त पंक्ति में मंझन ने सलीम शाह के न्यायपूर्ण शासन की प्रशंसा करते हुए न्यायपूर्ण व्यवहार करने पर बल दिया है ।

  1. पाँव छूना – बड़ो के पाँव छूना हमारे भारतीय समाज एवं संस्कृति का प्रमुख सामाजिक मूल्य है । यहाँ बड़ो को सम्मान देने हेतु पाँव छूने की प्रथा है । मंझन ने भी मधुमालती में इस प्रथा का वर्णन किया है और उन्होंने बताया है कि जब मनोहर का विवाह मधुमालती से और ताराचंद का विवाह प्रेमा से होता है तो दोनों राजकुमार जाकर अपने अपने ससुर के पाँव छूते है और आशीर्वाद प्राप्त करते हैं :-

          “फुनि दुवौ निरिप जहां हुते खरे । दुवौ कुंवर गै पाइन्ह परे ।”[iv]

उपर्युक्त पंक्ति में ‘मधुमालती’ के दोनों राजकुमारों (मनोहर तथा ताराचंद) द्वारा अपने अपने ससुर के पाँव छूने का वर्णन किया गया है ।

  1. सत्य की महिमा – सत्य बोलने का हमारे भारतीय समाज एवं संस्कृति में प्रमुख स्थान है । सत्य बोलना एक प्रमुख सामाजिक मूल्य माना जाता है । विद्यालयों में अक्सर बच्चों को सच बोलना सिखाया जाता है । मंझन ने भी मधुमालती में सत्य के महत्त्व पर प्रकाश डाला है और कहा है कि – जब मनोहर मधुमालती को खोजते हुए वन में पहुँचता है तो वहाँ प्रेमा उससे उसका परिचय पूछती है और कहती है कि तुम सच सच बताओ कि कौन हो, यहाँ कैसे आये और वह सत्य की महिमा पर प्रकाश डालते हुए कहती है कि सत्य व्यक्ति के साथ नौ खंडों में भी रहता है । अत: व्यक्ति को मात्र सत्य ही बोलना चाहिए क्योंकि यदि मनुष्य सत्यपूर्वक रहे तो इस शरीर से भी ब्रह्माण्ड पर चढ़ सकता है अर्थात् ब्रह्माण्ड को भी प्राप्त कर सकता है :-

            “सत्त कहौं सत जानहु सत साथी नौ खंड ।

            मानुस जौ सत सेउं रहैं पिंड चढै ब्रह्मांड ।।”[v]

यहाँ सत्य की महत्ता का प्रतिपादन किया गया है और सच को एक प्रमुख सामाजिक मूल्य माना गया है ।

  1. विवाह से पहले प्रेम न करना – हमारे भारतीय समाज एवं संस्कृति में विवाह का प्रमुख स्थान है । अक्सर प्रेमी प्रेमिका प्रेम करते हुए विवाह के बंधन में बंध जाते हैं ताकि वे स्वछन्द होकर प्रेम कर सकें । मंझन ने भी मधुमालती में इस सामाजिक मूल्य का वर्णन किया है और कहा है कि हमें विवाह से पूर्व कुछ नहीं करना चाहिए । मधुमालती में मनोहर एक स्थान पर मधुमालती को विश्वास दिलाते हुए कहता है कि – हे प्रिया ! सुनों, मैंने यह शपथ ली है कि -जब तक हमारा धर्म विवाह नहीं हो जाता तब तक हमारे बीच पाप संचरण नहीं कर सकता अर्थात् तब तक मैं तुम्हारे रूप रस का पान नहीं कर सकता :-

             “बर कामिनि जब ताई तोहि मोहि होइ न धरम बियाह ।

               पाप न अंतर संचरै बिधि बाचा निजु आहि ।।”[vi]

यहाँ विवाह से पूर्व कुछ न करने के सामाजिक मूल्य का वर्णन है ।

  1. दुःख से घबराना नहीं चाहिए – यह भी एक प्रमुख सामाजिक मूल्य है जिसका वर्णन मंझन ने अपनी कृति मधुमालती में किया है और कहा है कि दुख से घबराना नहीं चाहिए क्योंकि दुख के अंत में सुख अवश्य ही होता है । अत: मंझन कहते है कि जिस प्रकार दो काली घटा के बीच श्वेत जलधारा होती है, उसी प्रकार दो दुखों के बीच सुख अवश्य ही होता है :-

         “दुख सों जग अकुताउ न कोई । दुख के अंत सुक्ख पै होई ।

         दुइ दुख बीच सुक्ख सयंसारा । कारी घटां सेत जल धारा ।”[vii]

यहाँ मंझन ने दुख से न घबराने के सामाजिक मूल्य का वर्णन किया है और कहा है कि दुख के बाद सुख अवश्य ही आता है ।

           अत: इस प्रकार मंझन कृत मधुमालती में हमें उपर्युक्त सामाजिक मूल्य देखने को मिलते हैं । अत: विभिन्न सामाजिक मूल्यों की दृष्टि से मधुमालती एक श्रेष्ठ कृति है ।

संदर्भ ग्रंथ – 

[i] मंझन कृत मधुमालती, संपादक – माताप्रसाद गुप्त, छंद सं.-१६

[ii] वही, वही, छंद सं.-१३

[iii] वही, वही, छंद सं.-१२

[iv] वही, वही, छंद सं.-५१७

[v] वही, वही, छंद सं.-१८९

[vi] वही, वही, छंद सं.-३३१

[vii] वही, वही, छंद सं.-२३९

रेखा
शोधार्थी
हिंदी विभाग
दिल्ली विश्वविद्यालय

 

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