सिनेमा मूक फिल्मों से होता हुआ श्वेत श्याम और रंगीन व थ्री डी तक आ पहुंचा है जिसमें मनोरंजन से होता हुआ सिनेमा विचारात्मक या प्रतिरोध का रूप ले चुका है। सिनेमा जहां दर्शकों के मनोरंजन का साधन माना जाता है वहीं उसके द्वारा समाज की ज्वलंत समस्याओं को भी सामने लाने का प्रयास किया जाता रहा है। सिनेमा द्वारा सामंती व्यवस्था का दंश झेलता किसान व मजदूर, पीढ़ियों के अंतराल, पारिवारिक विघटन, स्त्री दशा व पीड़ा, वर्ण जाति की समस्या आदि समस्याओं को सिनेमा द्वारा उठाया जाता रहा है। “कोई भी समाज जब करवट बदलता है तो उसकी छाप उस समय के कला माध्यमों पर साफ तौर पर दिखायी देती है। चाहे वह संस्कृति के उन्नयन का समय हो या अपसंस्कृति के उत्थान का, चाहे वह सामंतों के जुल्म का काल हो या सर्वहारा की जागृति का, चाहे वह राजनीतिक अस्थिरता का काल हो या राजनीतिक स्थिरता का, कला के माध्यम इन अलग-अलग कालखंडों को अपने-अपने ढंग से व्यक्त करते रहे हैं।”[1]
सिनेमा हो या साहित्य दोनों को लेकर दर्शकों में आरंभ से ही मनोरंजन की धारणा रही है किन्तु समय के साथ दोनों के पर्याय बदलते गए हैं जहां मनोरंजन के साथ समाज में व्याप्त ज्वलंत समस्याओं को भी उठाया गया है जैसे – नशे की समस्या। नशे की समस्या पर आधारित फिल्मों में हालिया रिलीज फिल्म की बात करें तो ‘उड़ता पंजाब’ (2016) और ‘राधे – योर मोस्ट वांटेड भाई’ (2021)।
सिनेमा में अधिकांश फिल्मों में यत्र-तत्र धूम्रपान या नशे के दृश्य दिखाए जाते हैं, जिनके साथ ही चेतावनी के तौर पर लिखा आता है ‘नशा जानलेवा है’। किन्तु दर्शक चेतावनी के बजाय फिल्मी पात्रों को ऐसा करता देख नशे को एक ‘ट्रेंड या फैशन’ मान कर अपनाने लगते हैं और यह युवाओं में फैशन के रूप में शुरू होता हुआ कब उनकी लत या आदत से भी बहुत ज्यादा जरूरी बन जाता है इसकी खबर स्वयं नशा करने वाले को भी नहीं होती। नशे की लत के अन्य कारणों में मित्रों या साथी द्वारा नशे की आदत पड़ना या व्यक्ति के अकेलेपन का सहारा ही नशा बन जाता है या बेरोजगारी, कुंठा आदि भी नशे की ओर आकर्षित होने के कारण हो सकते हैं। ‘उड़ता पंजाब’ फिल्म 2016 में पर्दे पर आई जिसका निर्देशन अभिषेक चौबे द्वारा किया गया। फिल्म में मुख्य कलाकार की भूमिका में शाहिद कपूर एक टोमी सिंह नाम के रॉक स्टार की भूमिका में हैं जो खुद तो नशे का शिकार है और अपने गानों के द्वारा नशे का गुणगान करता है, जिससे पंजाब के युवा उससे प्रभावित होते हैं और उसे अपना ‘रोल मॉडल’ भी मानते हैं और नशे की लत के शिकार पाये जाते हैं। वहीं नायक दिलजीत दोसांझ जो सरताज के रूप में एक पुलिस कर्मचारी हैं तथा व्यवस्था के प्रतिनिधि के रूप में भी नजर आते हैं। सरताज नशे के गांजा, ड्रग्स आदि को बिना किसी रोक-टोक के पंजाब में आने देता है वहीं दूसरी ओर उसी का छोटा भाई खुद नशे की लत में घर में चोरी करता है और नशा न मिलने मर बेकाबू हो जाता है जिसके लिए सरताज नशा मुक्ति केंद्र से जुड़ी डॉक्टर प्रीत सहानी (करीना कपूर) से मदद लेता है, उसी दौरान उसे पता चलता है कि प्रीत नशे के धंधा करने वालों के खिलाफ सबूत इकट्ठा कर रही है, जिसमें सरताज भी उसकी मदद करता है लेकिन प्रीत की हत्या सरताज का छोटा भाई नशे के न मिलने पर कर देता है जो बहुत मार्मिक है । इसी प्रकार का एक दृश्य पुलिस थाने में दो युवा लड़कों द्वारा सामने आता है जब वे जेल में टोमी सिंह से कहते हैं – हम आपके गाने सुनते हैं। ये दोनों लड़के नशे के लिए पैसे न मिलने पर अपनी ही माँ की हत्या कर देते हैं जिसका उन्हें कोई पछतावा भी नहीं होता। फिल्म की दूसरी नायिका आलिया भट्ट कुमारी पिंकी की भूमिका में हैं जो बिहार से पंजाब के खेतों में मजदूर का काम करती है जिसे काम करते हुए गांजे की एक पोटली मिलती है, जिसे बेचकर वह थोड़े पैसे कमाना चाहती है लेकिन वह नशे का धंधा करने वालों की पकड़ में आ जाती है और उसे नशे के इंजेक्शन और बलात्कार की असहनीय पीड़ा झेलनी पड़ती है। फिल्म में चारों पात्र नशे की समस्या और पंजाब से जुड़े हुए पाए जाते हैं।
उड़ता पंजाब फिल्म पंजाब में नशे की पीड़ा को झेलते युवा, उनके परिवार तथा समाज को दिखाया गया है जहां सिस्टम को केवल मुनाफे से मतलब है और मरने वाले उनके लिए केवल आँकड़े हैं। फिल्म युवाओं के नशे के शिकार होने और उसके दुष्परिणामों को समाज के सामने लाती है साथ ही यह भी व्यक्त करती है कि जब तक समस्या निजी नहीं होती, तब तक सत्ता या समाज को कोई फर्क नहीं पड़ता अर्थात् स्वयं भोगी होने पर ही व्यक्ति व समाज उस पीड़ा के दर्द को आत्मसात कर पाता है।
‘राधे : योर मोस्ट वॉन्टेड भाई’ फिल्म हाल ही में ईद के अवसर पर रिलीज की गई है जो दर्शकों के सामने नशे की समस्या द्वारा युवा वर्ग की आत्महत्या को उजागर करती है। फिल्म में एक्शन, ड्रामा, रोमांस आदि का तड़का लगा है। इस फिल्म का निर्देशन प्रभदेवा ने किया है। फिल्म में प्रमुख भूमिका में सलमान खान जो राधे के रूप में नजर आते हैं, जिनका काम करने का अपना अलग तरीका है जिसके कारण उन्हें कई बार सस्पेंड भी किया जाता है। राधे को मुंबई महानगर में नशे के माफिया या धंधा करने वालों से युवा मुक्ति और नशे की गंदगी की सफाई करने के लिए पुलिस विभाग द्वारा बुलाया जाता है। खलनायक के रूप में राणा की भूमिका अदा करते हुए रणदीप हुड्डा नजर आते हैं। राणा जो मुंबई नगरी पर अपना आधिपत्य स्थापित करने हेतु गांजा, ड्रग्स आदि द्वारा युवाओं को भटकाने और मुनाफा तथा अपना खौफ जनता में बनाए रखना चाहता है। यह फिल्म युवाओं के अपने सपनों से भटकने व नशे की लत के कारण आत्मघात को रेखांकित करती है। इसी प्रकार 1984 में आई फिल्म ‘शराबी’ है जिसका निर्देशन प्रकाश मेहरा द्वारा किया गया है। फिल्म में नायक विक्की कपूर की भूमिका में अमिताभ बच्चन नजर आते हैं जो अकेलेपन के कारण शराब के नशे को अपना सहारा बनाते हैं।
इस प्रकार देखा जा सकता है कि भारतीय सिनेमा मनोरंजन को ध्यान में रखने के साथ – साथ समाज में व्याप्त समस्याओं को दर्शकों के सामने लाता है साथ ही उसके दुष्परिणामों के प्रति भी जागरूक करता है। सत्ताधारी व मुनाफाखोरों के मुखोंटो को भी हटाता है। नशा एक ऐसी समस्या है जिसके प्रति पहली लड़ाई स्वयं नशे की लत में फंसने वाले की होती है क्योंकि यदि उसे नशे से मुक्ति चाहिए तो उनका स्वयं की इच्छा पर नियंत्रण होना आवश्यक है और वह नशा छोड़ने की ओर अग्रसर हो। नशे की लत वालों को इसके लिए नशा मुक्ति केंद्र व डॉक्टर से भी संपर्क करना चाहिए। परिवार, साथी व मित्रों को उसे व्यस्त रखना चाहिए तथा उसे अकेला नहीं छोड़ना चाहिए। उस व्यक्ति को आगे शिक्षित होने व सफल होने के लिए प्रेरित करते रहना चाहिए। नशे का दंश नशा करने वाले के साथ-साथ परिजनों व समाज को भी हानि पहुंचता है जिसके कारण नशा न मिलने पर नशाधारी व्यक्ति किसी की भी हत्या कर सकता है और खुद को भी मार सकता है। अतः समाज को नशा मुक्ति के लिए साझे प्रयास करने चाहिए और अपने देश के भविष्य को सुरक्षित रखना चाहिए।
मीनाक्षी गिरी
शोधार्थी
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय