अहमद रॉय के निर्देशन में बनी ‘ द थॉट ऑफ़ यू ‘ ( The thought of you , perfect 10 winner at the mumbai film festival) फ़िल्म आज के समाज में रिश्तों में उलझन और उस उलझन से उपजी आक्रामकता को दर्शाती है। फ़िल्म में मुख्य भूमिका निभाई है कल्कि कोचलिन ने और सहायक क़िरदार की भूमिका में हैं गुलशन और मोनिका डोगरा ।
फ़िल्म अपने पहले दृश्य से आखिरी दृश्य तक  प्रतीकात्मक रहती है । फ़िल्म के  आरंभिक दृश्य में जब कल्कि और गुलशन ( दंपति ) कार दुर्घटना के कारण घायल होते हैं तो वही से प्रश्नों की कतार लग जाती है और फ़िल्म उन प्रश्नों को सुलझाने के लिए अतीत में जाने के लिए तत्पर रहती है , जहां एक पार्टी में तीन दोस्तों की बातें एक ऐसा राज़ उजागर करती हैं जहां से उनकी ज़िंदगी के पर्दे उठ जाते हैं और उनके अंत के साथ ही गिरते हैं । मोनिका और गुलशन के संवाद से कल्कि को ये भनक हो जाती है कि मोनिका और गुलशन सिर्फ़ दोस्त नहीं हैं और ये सोचते हुए वो किचन में जाके बर्फ़ निकालने लगती है जहां उसकी अँगुली में चोट लग जाती है जिस में उसने वही अँगूठी पहनी होती है जो गुलशन और उसके प्रेम की निशानी होती है । उसके बाद कल्कि उस पार्टी में रुक नहीं पाती और गुलशन को लेकर वहां से चली जाती है , कार में बैठने के बाद उसे अपने इस व्यवहार पर  पछतावा  होता है ,  तभी कार का संतुलन बिगड़ जाने के कारण , कार एक पेड़ से टकरा जाती है । कल्कि खुद को संभालते हुए मदद के लिए जैसे ही कॉल करने को होती है तभी मोनिका का कॉल , गुलशन जो बुरी तरह घायल है ,  को आता है और उसके वाक्यों से स्पष्ट हो जाता है कि गुलशन और मोनिका का एक अलग संबंध था और दोनों मिलकर कल्कि को धोखा दे रहे थे , कल्कि ‘ आधुनिक स्त्री ‘ की भूमिका निभाते हुए अपने पति की सांस रोक कर हत्या कर देती है और फ़िल्म का अंत ‘ बीमार आधुनिकता ‘ के कितने ही प्रश्नों का उत्तर या उत्तर जो खुद प्रश्नों का रूप ले लेते हैं के साथ होता है । तीनों ही कलाकारों ने अपनी – अपनी भूमिका बखूबी निभाई है और साथ में जो संवादों की संरचना है वो इस फ़िल्म की रचना को चार चांद लगाती  नज़र आई है । फ़िल्म की भाषा भले ही अंग्रेज़ी है लेकिन कलाकारों के हाव – भाव इतने सशक्त हैं कि बिना अंग्रेज़ी आए भी कहानी को समझा जा सकता है । फ़िल्म की भावनात्मक शैली यह दर्शाती है कि आज समाज में प्रेम का कोई महत्व नहीं रहा , संघर्ष यदि है तो बस ‘ सैटिस्फैक्शन ‘ का जो हम सभी किसी एक व्यक्ति में नहीं खोज पाते । इसका अंत कितना सही था या कितना नहीं यह हर ‘ इंडिविजुअल ‘ के ऊपर निर्भर करता है क्योंकि इस संसार में ग़लत या सही कुछ नहीं होता । शार्ट फ़िल्म के सारे तत्व को पूरा करती हुई यह एक बेहतरीन फ़िल्म है ।
निहारिका शर्मा

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *