1. खेल सांत्वना का

मृतक परिवार से
मिलते हो ऐसे जैसे
कुछ हुआ ही नहीं
उनके जीवन में
सांत्वना के पुल भी तुम बाँधते हो
बच्चों के लिखाई -पढाई का सारा
जिम्मा भी लेते हो
जताते हो हमदर्दी
ऐसे जैसे दर्द का अम्बार
तुम कम करने आए हो
आते हो जिस राह तुम
भर कर मित्थ्या का संसार
बहुत खुबसूरती से शब्दों को
सत्य का पायजामा पहना कर
भरम का जाल ओढा चले जाते हो
फिर कभी न लौट कर आने के लिए
पर मृतक परिवार इंतजार करते रह
जाते हैं कातर दृष्टी से अपने मृतक होने तक
करे भी क्या आ़शा मे रहने के अलावा
खेल जो वो समझ नहीं पाते
सांत्वना का

 2. बादल

आ रे बादल मेरे प्यारे बादल
जल की तू काया दूर आसमानों
में जा कर समाया
अब देर न कर उमड़-घुमड़ कर
आ रे बादल मेरे प्यारे बादल
आ तू तपती धरती प्यासी हैं
उसके अधरों को चूम ले, तृप्त कर दें
कि तृप्ति में तेरी भी खुशी हैं क्योकि
तु तो जुदा हैं जा कर आसमानों में
आसमानों को तेरी न जरूरत
हर प्राणी मिट्टी की काया
मिट्टी की काया में तू जब तक न समाया
तेरा वजूद भी अधूरा है
मिलने का यह समय है
माना तेरे आसमा छोड़ने में
करूणा में वरुणा है
पर आ तू कुछ पल के लिए फिर चला
जाना चुपके-चपके जैसे तू जाता है
सह लेंगे धरती और मिट्टी की काया
तेरे विरह……..
सहना और रहना इन्हें आता है
पर तू न रह सकेगा आसमानों में
तू न सह सकेगा विरह…….
आना पड़ेगा बार-बार मिलने को
उमड़-घुमड़ कर आसमानों से
आ रे बादल मेरे प्यारे बादल

बिनोद कुमार रजक
प्रभारी शिक्षक
पश्चिम बंगाल

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