1. हिन्द के बाग में 

ये कौन आया? हिन्द के बाग में
यह कदम किसके है?
किसके नेत्र उठे हैं?
किसमें जगी ज्वालामुखी जैसी अग्नि
हिन्द के खिलाफ में
पहचान अभी बाकी है ं
पर नफरती कुछ जिस्में हैं
जहर उगलती लबे हैं
इंसानी लिवाज में
क्या तुम्हे याद है?
क्रुरता से कायरता तक का सफरनामा
जो दर्ज है सौ वर्षों के इतिहास में
विदेशी
हाँ वही विदेशी जिसने उजाड़ दिया सिंहासन,
नौच लिए थे पर सोन चिड़िया के,
दुष्टता की, किए अत्याचार
जमा अपने ही साम्राज्य में
कारण एक नहीं पर एक कहो तो
गलत भी नहीं एकता के अभाव में
नये युग के आगमन वाले हिन्द की
समृद्ध खुशियों में
शत्रुता के बीज बोने फिर से
कोई विदेशी ही है
नापाक इरादे लिए साथ में
अब देर न करो हिन्द के वीर सपुतो
अहा्न हैं
आहुति देने का वक्त फिर से आ गया है
खदेड़ दो नापाकपरस्त और साजिशसार
दुश्मनों को , ढूँढ निकालो जो छिपे है
इंसानी नकाब में
कदमों को पहचानो जो ़बढे है
हिन्द्  के बाग में लिए मंशा रक्त की होली
खेलने बम, गोली, पत्थरबाजों को बना कर
हथियार में

2.मुझे जाना है

किस मुँह से कह रहे हो
रुक जा़ओ!
ठहर जाओ!
क्या समझुँ इसे?
चालाकी या सच में साेच में तुम्हारी
हृदय परिवर्तन
पर कैसे भूल जाउँ?
कल रात की भयावह संवाद
जिसमें अपनापन तो न था
जिसमें था डर
और सिर्फ डर
जिसके वास्ते अपने जन्म प्रदेश
छोड़ आया कर्म प्रदेश
बच्चपन बिता यहाँ
लगा दी जवानी मैंने मेरे पुरखो ने
शहर आबाद करने में
पर नहीं जानता था कि
विपदा में साथ न मिलेगा
आनाज गोदामों में सड़े और
हम मरे तो मरे तुम्हे क्या
हम तो सिर्फ आबादी है तुम्हारी नजरों मे
बर्बादी का कारण
हम भुखे रह लेगें
साहब!
पर मेरे छोटे-छोटे बच्चे की खातिर
मेरे बुढे जन्मदाता के खातिर
मेरे सफर के साथी के खातिर
मुझे जाना है
कर्तव्य हैं
मेरा कुछ भी कर अपनों को बचाना है
चूकना नहीं है कूच कर जाना है
हाँ कुछ जाने बचाने के लिए जाना है
मुझे जाना है

3. कोरोना का कटघरे में साक्षात्कार —-साक्षात्कार शैली में कविता

कोरोना आप कटघरे में आ गए
क्या कहना है?
कैसा महसूस कर रहे हैं?
सवाल ये इसलिए कि
यह तो आप की जगह नहीं
सच कहूँ तो मेरा अस्तित्व तो था ही नहीं
इंसानों की लोलुपता, जालसाजी और गलत
अविष्कार के नतीजे मेरे उद्भव का कारण
पर आप पर संगीन आरोप है कि
आप इंसानी जिस्मो से नफरत करते हैं
क्या सच है?
आरोप – प्रत्यारोप के तो आप इंसान पुतले है
क्या आप यह स्वीकार करते हैं?
इंसानो की मौतें करने और श्वासे तोड़ने में
आपको खुशी मिलती हैं
क्या आप इंसान खुश होने का अवसर नहीं तलासते?
मैं भी तलाशता हूँ
कैसे लाशें बिछा कर?
यह तो आप की सोच है और कोरोना आप की करनी
खुशी तलासने  की ओर भी तो तरीके होते हैं
हम इंसान आर्थिक लाभ होने पर, श्रेष्ठता का पद पाने पर,
दूसरे से अव्वल होने पर, विजय के शंखनाद पर
खुश होते हैं
असल चुक तो तुम इंसानों से यही पर होतीहै
श्रेष्ठता की होड़ ने तुम इंसानों को कितना निचे गिरा दिया है? कहना क्या चाहते हो ?कोरोना!
जो तुम इंसान समझना नहीं चाहते
कोरोना तुमनें असंख्य जाने एक झटके में ली है
स्वास्थ्य की बड़ी संगठन संस्था ने
तुम्हें महामारक की उपाधि दी है
क्या इसी उपाधि की भूख के खातिर
निर्दोष, नि अपराध, मासूम इंसानों को
काल की गाल में पहुचा दिया
हाँ-हाँ- हाँ,…. …… हाँ-हाँ-हाँ
तुम इंसान निर्दोष, नि अपराध, मासूम
अरे! तुम तो प्राणी पिशाच हो
अरे! तुम तो सृष्टि के सभी
बड़े प्राणी को भक्ष जाते हो
तुम्हारी आत्मा की भूख का भैचाल
तब भी शांत नहीं होता जब
प्राणियों के छोटे-छोटे  बच्चे की करुण
चू-चू-चू, ची-ची-ची आवाज सुन कर भी
अनसुना कर उसे कच्चा चबा जाते हो
संसार में तुमसे बड़ा भूखा-नंगा कोई नहीं
तुम हत्यारो की भूख ने मुझे बनाया
मेरे निजीॅव वजूद को दिया मकसद
हम भायरस वायरस तो पहले भी थे
आगे भी रहेंगे पर अब वो दिन दूर नहीं
जब तुम इंसान इस धरा से गायब हो जावोगे
कोरोना! मत करो ना ऐसी बाते भगवान से डरो
किस भगवान से जिसनें तुम्हें बनाया
या मुझे बनाया इतना घमंड, अंहकार
क्या तुम नहीं जानते हम इंसान इस सृष्टि के श्रेष्ठ जीव है
जीवन की जब जब बात आती हैं हम नवरुप मे शक्ति के
साथ ़उभर कर आते हैं
मैं जानता हूँ तुम इंसान श्रेष्ठ हो
पर तुम मे से भी कोई है जो श्रेष्ठ बनने में
अपना सारा बल लगा रहा है
कौन? मेरा भगवान जो इंसान का शत्रु
युग का जन्मदाता है और मेरा भी
वे मेरे जैसे अनेक जैविक औजार बना रहे हैं
वे सब का इस्तेमाल आने वाले दिनों में भविष्य में करेंगे
विश्व विजयी के लिए
युद्ध का विगुल बजा ़अपने मांद में
बैठा हैं मौत के सौदागर
कोरोना कहाँ रहता है ?वह नरपिशाच
मैं ढूँढ रहा हूँ  इंसानी देह से देह में जा कर
कई देशों में ढूँढा तुम इंसान भी अब बिना समय का
इंतज़ार किए ढूँढो देर हुई तो तिसरा विश्व युद्ध बिना लड़े जीत
जाएगा वह मरकट
फिर न दोष देना मुझे
मैं चला खोज में विनाशक के मांद
पुजा करनी है ………. उसकी
तुमसे पहले
तुम्हें पहले मिले तो पूछना
स्वार्थ में
क्यों कोरोना बनाया वतॅमान

4. असम्भव नहीं है लौटना

असम्भव नहीं है लौटना
उन राहो में
जहाँ से कभी पैर उखड़े थे
न चाहते हुए पर
चाहते हुए मजबूरी में
हाँ माना दुश्मन हैं जमाना
जीने नही देतीं स्थिरता से
मगर हम कैसे भूल जाए?
वो गलिया, मुहल्ले, मेरे घर वह का आँगन
जहाँ झूमता था
कभी वसंत कभी सावन और भी ऋृतुएँ पावन
वो मेरे छत का टपकना झीर- झीर
बूदों की टीप टाप मदहोश ध्वनि
दोस्तों की पुकार अपनों का प्यार
प्रकृति से प्रकृति का मिलन
क्षण-क्षण प्रति क्षण जहाँ जीवन
मुझे बुलाती है क्रन्दन-क्रन्दन
कहते हैं लौट आया मैं लेकर यौवन
कितने वर्ष बिते इंतजार में तेरे
अब तुम भी लौट आओ वादे अनुसार
असम्भव नहीं है लौटना
जैसे मैं लौट आया
वैसे तुम भी लौट आओ
खेलेंगे नित नये खेल  साथ-साथ हम तुम
खुशियों से महकेगा फिजा
दहकेगें तन-मन
नई सृष्टि के संचार की
नई कहानी रचने को
नवजीवन

5.बहुत दुःख होता है

बहुत दुःख होता है
जब अपने अस्मिता की खोज में
खुद को पाता हूँ कि मनुष्य हूँ
सृष्टि के श्रेष्ठ प्राणी (जीव)
श्रेष्ठता की कहानी में
हम मनुष्य
पशु-पक्षी, पेड़-पौधे और
अन्य सभी जीवों को पीछे छोड़ आए हैं
हमें आपत्ति नहीं है कहने में कि हमने
मनुष्य होने का पूरा फर्ज निभाया है
मन लगा कर हमने वो सब किया है
जो दूसरे जीवों के लिए कर पाना स्वप्न भी नहीं
सर्वभौम सत्य है घृणा, त्याग, हत्या, षड्यंत्र,
अपहरण, चीरहरण, नारीहरण, बालिकाहरण,
नवजात शिशुअंगहरण और भी जघन्य से जघन्य
अपराध जिसके बारे में प्रकृति का कोई उपादान
सोच भी नहीं सकता और हम बड़ी ही सहजता से
अंजाम दे देते हैं
बहुत दुःख होता है कि हम मनुष्य ही है
जैव-अजैव तत्वों के मरण-क्षरण के कारक
दूसरा कोई नहीं
बात वर्तमान की है हम मनुष्यों ने
बहुत भारी कार्य अपने हथे-मथे ले लिया है
प्रलय जैसे महान कार्य
बहुत दुःख इस लिए भी होता है कि
हमारे अलावा ओर कोई इस महान कार्य
को करने का जिम्मा लेने को तैयार नहीं हुआ
हमें ही आगे आना पड़ा

बिनोद कुमार रजक
प्रभारी शिक्षक
जलपाईगुड़ी, पश्चिम बंगाल

 

 

 

 

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