कुछ विद्यार्थी इन दिनों बेहद याद आते हैं।
कुछ माह पहले मुझे टेल बोन फ्रैक्चर हुआ, डॉ० ने तीन माह के लिए बेड रेस्ट के लिए कहा। कॉलेज जॉइन करना था, तो चोट लगने के 10-15 दिन के अंदर कॉलेज जॉइन किया। बेहद दर्द था, घर से कॉलेज भी बहुत दूर था। अपनी एक शुभ चिंतक प्रोफेसर मैम से बात हुई उन्होंने कहा कि तुम बहुत साहसी हो, अब तक नहीं हारी अब भी नहीं हरोगी, देखना जब सब ठीक हो जाएगा तुम्हारा ये संघर्ष तुम्हारी जीत बनेगा। मेरे जीवन के हर उतार-चढ़ाव हर संघर्ष से परिचित थी वो। जब भी खुद को कमजोर पाया उन्होंने हमेशा मार्गदर्शन किया। एक गुरु की तरह, एक माँ की तरह, उन्हें पता था कि जब केंसर तक डायग्नोज़ हुआ और मैंने हार नहीं मानी और जीवन में न जाने कितनी विषम परिस्थितयाँ आयी और मैं फिर उठ खड़ी हुई, तो ये तो छोटी-सी हड्डी टूटी है जबकि हड्डी छोटी नहीं थी, ये रीढ़ की हड्डी का वो हिस्सा है लापरवाही जिसके लिए घातक हो सकती है। डॉ० ने कहा पैरालिसिस भी हो सकता है। पर मरता क्या न करता। जॉइन कर लिया। गाड़ी में लेटकर कॉलेज आना-जाना दर्द चार घंटे का सफर। फिर अपने बच्चों का चेहरा याद आता दर्द कुछ भूल जाती। पहला दिन क्लास का एक बच्चा क्लास के बाद बाहर तक मुझे थामने की कोशिश करता मैंने दर्द को नजरअंदाज करते हुए कहा बेटा मैं ठीक हूँ, आप जाकर दूसरी क्लास लीजीये। आंखों में आँसू लिए बोला मैम आपको इतनी जल्दी कॉलेज नहीं आना चाहिये था, मेरी मम्मी को भी यहीं चोट लगी और वो आज तक बिस्तर से नहीं उठी पाई। तब से अब तक खाना बनाकर मैं ही आता हूँ, मेरे पास उसके उन सहानुभूति भरे शब्दों का जवाब नहीं बन पा रहा था, फिर मैंने अपनी आंखों में आये आंसुओं को छिपाया और उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा कि चिंता मत करो आपकी मम्मी भी ज़रूर ठीक होंगी और आपकी ये मैम भी क्योंकि हमारे लिए आप जो दुआ कर रहे हो। वो पहले दिन इतना भारी था कि मेरी आंखों के सामने से उसका चेहरा जाता ही नहीं था, छोटी -सी उम्र और इतनी ज़िम्मेदारी बुरा तो तब और लगा जब मैंने उससे पूछा कि पापा क्या करते हैं और उसने कहा कि उन्होंने हमें छोड़ दिया मम्मी को चोट लगने के बाद, अब मैं नाईट ड्यूटी करता हूँ और सुबहा अपना और मम्मी का खाना बनाकर आता हूँ। ये बात सुनकर मेरे पैरों तले जमीन खिसक गयी, कितनी मुश्किल से उसने ये बात मुझसे कही होगी। मुझे लगा बचपन से जो मैं अपने पिता के स्वास्थ्य को देखकर परेशान होती आयी, उनके स्वस्थ होने की दुआएं करती आयी। आज ये बच्चा कितना कुछ झेल रहा है इसका मैं अंदाज़ाभर लगा सकती हूँ। मेरे पास बच्चे अपनी परेशानियां लेकर आते हैं। कोई आर्थिक तो कोई मानसिक जितना होता है, करने की कोशिश करती हूँ। कई बार मन में ख्याल आता कि ये मेरे ही पास क्यूं आते हैं, फिर ध्यान आया कि इतने शिक्षक स्कूल-कॉलेज में होते थे हम भी किसी के पास जाते थे जिन्होंने हमें गढ़ा है और आज भी हम उनके प्रति नतमस्तक हैं आज भी जिनका आशीर्वाद हम पर बना है। ईश्वर का धन्यवाद की उसने इस लायक बनाया की बच्चे कामियाब होकर हमें मिलने आते हैं। और समय-समय पर हमें याद करते रहते हैं। फिर इस घटना ने मुझे ताक़त दी, और मुझे एहसास कराया कि मेरा दर्द उससे बहुत कम है जो वो बच्चा और उसकी माँ झेल रहें हैं। वो बच्चा रोज़ मिलता और मुझसे गेट से ही मेरा रिंग पिलो जिस पर मैं बैठती थी, मेरा फोल्डर हाथ से छिनता मैं मना करती वो नहीं मानता, उसके साथ और बच्चे भी भागे आते। बात जो दिल को छू गयी……

डॉ० दीपा
सहायक प्रोफेसर
दिल्ली विश्वविद्यालय

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