- व्यर्थ –व्यथा
कितने व्यर्थ रहे
तुम जीवन
खुद को भी
न पुकार सके?
2. दुख
किसी विशाल बरगद
सा
सिरहाने उगा है दुख
उसे कहाँ लगाऊं कि
कुछ कम हो सके ?
3. सपना
उसने सपना देखा
और वो मर गया
उसने प्रेम किया और वो
मार दिया गया
उसने जीना चाहा और
वो खत्म हो गया
ऎसे रेशा-रेशा बनी
दुनिया उधडती चली गयी
4. आकाश
हर कोशिका में तुम्हें
बुना जाना
और फिर किसी
प्रकाश वर्ष में
तुम्हारा विलिन हो जाना
सुनो तुम आकाशगंगा तो नहीं
जो हर दिन विस्तत होते जाते हो
जिंदगी और दुरियों के बीच कहीं ?
पूर्णिमा वत्स
जामिया मिल्लीया इस्लामिया