दोनों ने पुराने किले के खंडहर की ओर कदम मोड़ लिए। भागते हुए एक चोर बोला,‘‘मैं कहता हूं एक बार सोच लो, क्या उसी ओर दौड़ना है। वहां तो पहले से ही भूत प्रेत ,भंयकर नागों या फिर जंगली जानवरों का बसेरा है।’’ दूसरे चोर ने जवाब दिया,‘‘ये जो पीछे लगे हैं,ये कोई जानवरों से कम हैं। जिस तरह साधारण इंसानों के लिए वे किले मौत के डर से भरे खंडहर हैं हमारे लिए वे खंडहर ही जीवन की नई राह खोल सकते हैं।’’ ऊपर पूर्णिमा का चांद भी तेजी से भाग रहा था  | पहला चोर बोला,‘‘तुम्हें भागते हुए भी शायरी सूझ रही है।’’ दूसरा चोर बोला,‘‘यह शायरी नहीं सच है।’’दोनों अनगिनत अंधेरी पगडंडियों को रौंधते हुए बढ़ते जा रहे थे, सुरक्षित पनाह की तलाश में। गांव के भूखे शेरों की तरह दौड़ते फुर्तीले नौज़वान उनसे मात्र आधी कोह ही दूर होंगे। इस बार उन्हें ज्यादा डर इसलिए भी था क्योंकि उन्होंने एक मंदिर में चोरी की थी। लोगों की भावनाओं पर सीधा प्रहार कर डाला था।
धार के मध्य में पक्की सड़क के किनारे के पुराने मंदिर में एक ने सेंध लगाई व दूसरे ने मंदिर से थोड़ी दूर के पीपल के पेड़ के इर्द-गिर्द बने टियाले के पीछे छिपकर उसका साथ दिया ताकि इस उजाड़ जगह पर वह चेतावनी दे सके पर जैसे ही उनका काम खत्म हुआ कि मंदिर का बूढ़ा पुजारी नीचे धार वाले गांव से लौट आया और फिर शोर मच गया।तब तक धार वाले गांव के लोग इक्ट्ठे होते तब तक वे दोनों निकल गए थे।
वे सड़क की ओर नहीं भागे,यही योजना थी जो उन्होंने चोरी से पहले मंदिर से थोड़ी दूर के पीपल के पेड़ के इर्द-गिर्द बने टियाले पर बैठ कर बनाई थी।झाड़ियों, सूखे पेड़ों को लांघते हुए उन चोरों के पतले फुर्तीले शरीरों में धड़कने पूरी रफतार में धड़क रही थी। उन्होंने पगडंडियों को लांघा, आगे एक चौराहे को लांघा और फिर पुराने खंडहर किले की ओर कदम बढ़ा दिए। इसी चौराहे से एक रास्ता पक्की सड़क की ओर जाता है, एक रास्ता धार से नीचे उतर जाता है और एक खंडहर किले की ओर। चांदनी रात में रास्ते ठीक से पहचाने जा सकते थे। चोर तेजनाथ बोला,‘‘चल दौड़, वर्ना लाठियां खाने के लिए तैयार रहना, बस आखिरी परीक्षा है हमारी, बच गए तो बस वहीं खंडहर में बच सकते हैं। मात्र तीन – चार कोह ही दूर होगा। हम इस पगडंडी वाले रास्ते को पूरा करके झाड़ झगाड़ों में थोड़ा सुस्ताएंगे, वर्ना कलेजा फट जाएगा।’’ दूसरा चोर भोलाराम बोला,‘‘बुरे फंसे यार – आज , क्या जिंदगी है हमारी!’’
तेजनाथ बोला, ‘‘रातों के चोर हैं हम, और कैसी जिंदगी चाहिए तुम्हें, न कोई रोजगार की चिंता, न समाज के उसूलों की चिंता। बस चोरी के पैसों की उम्मीद और फिर बच निकलने की उम्मीद, मज़े वाली है हमारी जिंदगी।’’
भोलाराम बोला,‘‘कमाल हो यार तुम भी, यहां जान की पड़ी है और तुम्हें मज़ेदार जिंदगी नज़र आ रही है।’’
‘‘ईश्वर के बनाए प्रपंच का हिस्सा है हम कि कभी चैन से मत बैठो, जो तुम्हारा है वह सदा नहीं रहेगा।जो लोगां ने इच्छाओं के पीछे भाग कर कमाया,वह किसी ने लूट लिया। ये नश्वर संसार है इसलिए इच्छाओं को त्यागो।’’
‘‘गुरू हो तुम लोगों के, चोर तो वे तुम्हें मज़ाक में कहते होंगे।वैसे तुम फिर शायर बन गए हो। जब डंडे सिर के उपर पढे़गे तो तेरे अंदर का शायर भी निकल जाएगा। मुझे तो आज आखिरी रात नज़र आ रही है जिंदगी की।’’
‘‘भागता रह,बस देख रुक, वो लोग चकमा खा गए हैं, देख उनकी बैटरियों की लौ नीचे की ओर जा रही है देख पीछे मुड़ कर वे धार उतर रहे हैं। उन्होंने सोचा होगा कि हम धार उतरेंगे,जबकि हम तो किल्ले की ओर धार चढ़ रहे हैं।‘‘
‘‘वो तो ठीक है पर अब हम और कितना भागेंगे, रास्ते का अब का अब कोई निशान नहीं है। मुझे अभी भी मार खाने व पकड़े जाने की चिंता हो रही है।’’
‘‘अरे मेरे प्यारे भोला राम चोर कभी समाज के बनाए रास्ते पर नहीं चलते।’’
तेजनाथ ने ऊपर धार के किले की मामूली धुंधली सी दिखाई देती आकृति की ओर देख कर कहा, ‘‘अगर पूरी तरह से बचना है तो फिर वो खंडहर वाला किला ही हमें बचा सकता है। ये लोग सपने में भी नहीं सोच सकते कि हम उस किले की ओर गए है पर बस झाड़ झंगाडों का लांघना चोरी से भी मुश्किल काम है। रास्ता हमें खुद बनाना है अपने कदमों के निशान से। थैले में खाना है न, जो हमने दोपहर को ढाबे वाले से बंधवाया था। बस अब तो वहीं खंडहर में पहुंचकर ही खाना खाएंगे।’’
भोलाराम बोला, ‘‘अरे! इधर हमारी जान जा रही है और तुम्हें खाने की पड़ी है।’’
‘‘भगवान पर भरोसा रख!’’
‘‘क्या चोरों के भी भगवान होते हैं।’’
‘‘क्यों नहीं! उसकी दृष्टि तो सब पर रहती है। उसे हमारे दुर्दम्य साहस और अथक प्रयासों के बल पर जिंदगी की धारा को कई मोड़ देने के लिए तो आर्शीवाद देना ही होता है। जीवन के कई रंग हे मेरे प्यारे, जिसे तुम चोरी कहते हो ईश्वर की नज़र में वह नश्वर चीजे़ है जो इंसानों ने बनाई हैं। शायद उसने ही हमारे पापी पेट को चोरी करना सिखाया हो’’
‘‘अच्छा तो अब तुमने भगवान को भी न छोड़ा।’’
‘‘अरे उसकी मर्जी के बिना कभी पत्ता भी हिलता है।’’
‘‘वैसे तुम इतने बुद्धिमान कैसे हो।’’
‘‘तुम्हें पता नहीं मुझे उपन्यास पढ़ने का शौक है, अगर आज जल्द ठिकाने पर पहुँच जाते तो एक नया उपन्यास जरूर पढ़ता।’’
‘‘धन्य हो! तुम बुद्धिमान चोर। 10वीं पास कि नहीं मैं तो नौवीं ही पास कर पाया था और फिर बापू के साथ निकल गया था पंजाब।‘‘
‘‘हां, हां, दंसवी की परीक्षा तो दी थी पर पास नहीं हो पाया था, उन्हीं दिनों तो उपन्यास पढ़ने का चस्का पड़ा था। पढ़ाई कौन करता। मैं तो अपने चाचा संग निकला था पंजाब, गन्ने की फसल का काम किया वर्षों और फिर एक दिन तुम मिल गए।तब से कई बार ताले तोड़े और अब तो मंदिर भी नहीं बचा है।’’
‘‘अच्छा अब कोई और काम सोच लो महात्मा जी, मैं तुम्हारा ज्यादा दिन साथ अब नहीं दे सकता।’’
‘‘कोई बात नहीं बबुआ, बस देखते है भगवान अब कौन सा प्रपंच करवाता है हमसे।बस जरा आज की रात निकल जाए फिर कोई और काम जरूर होगा। अच्छा भागो, अभी शायद बहुत रास्ता है दोड़ो।’’
झाड़ झगाडों, गहरी उभरी ज़मीन, कंदराओं को लांघते हुए वे धार की उंचाई पर बने खंडहर में पहुंच गए। कपड़े फट चुके थे, बाहें काटों भरी झाड़ियों से छिल चुकी थी। जूतों के तलवों को लांघते हुए कांटे पैरों तक पहुंच कर उनको छील चुके थे। पर फिर भी उनके कदम नहीं रुके थे।
खंडहर के नाम पर यह बहुत बड़ा पुराना किला रहा होगा, एक ओर तो खड़ी धार थी, जहाँ से तो कोई अंदर दीवारों को लांघ ही नहीं सकता था। दूसरी ओर भी ऊंची मोटी दीवार थी, एक कोने से किले में अंदर जाने का मार्ग था। वो दोनों खुशकिस्मती से अंदर जाने वाले मार्ग की ओर ही पहुंचे थे। दोनो अंदर घुसे, विशाल बाहरी दीवारों के अलावा अंदर सब बेहाल था। वे दोनों खंडहर किले के अंदर कुछ खाली जगह पर बैठ गए। वैसे ये खंडहर किला कभी राजाओं की सेना की छावनी रहा था।
थैले से खाना निकाला और जल्दी – जल्दी खाना खाने लगे। ‘‘वाह भई भोला राम, अब जरा जेब से बीड़ी निकाल और सारे दुखों को भूलकर कुछ अच्छी सी गप्प सुना दे, तभी तो मन किसी दूसरी ओर निकलेगा वर्ना रात भर पकड़े जाने का डर तुझे सताता रहेगा।’’
‘‘वाह भई अलबेले यार, तेरे को भी गप्पों की क्या सूझी, इधर दीमाग में लोगों की टोली हमारी ओर आती महसूस हो रही है और तुम इस वक्त फन्ने खां बन रहे हो।’’
‘‘वैसे तू चाहे बाहर से डरता रहे भोला राम, पर अंदर से बहादुर है।’’
बीड़ी का धुआं चांद की रोशनी में इधर उधर फैल रहा था। तेजनाथ बोला,‘‘यार चांद की रोशनी थोड़ी और होती तो मैं थैले में डाले उपन्यास के कुछ पन्ने और पढ़ लेता, बस यही कमी रह गई है। वर्ना तो अभी तक सब ठीक ही चल रहा है। अरे भाई इधर उधर से थोड़ा घास बगैरा इक्ट्ठा करते हैं। इन पक्के पत्थरों के फर्श पर सो नहीं पाएंगे।’’
दोनों ने इधर उधर से सूखा घास पत्ते, पतली झाड़ियों के तने इक्ट्ठे करने शुरू कर दिए। भोला राम ने एक कोने की ओर सूखे घास की जडों की ओर जैसे ही हाथ बढ़ाया। बिजली की तेज रफ्तार से घास में छिपे सांप ने उसके हाथ पर ढंक मार दिया। ‘‘हे भगवान ! बस सब कुछ तबाह हो गया।’’
‘‘भाई! क्या? क्या हुआ?’’ तेजनाथ ने माचिस जलाई । भोलाराम हाथ को पकड़े बैठ गया था।
‘‘अरे ये तो कोबरा प्रजाति का सांप लग रहा है।’’ तेजनाथ ने सब देख लिया था।काला नाग वहां से आगे पत्थरों की ओर निकल रहा था।
‘‘तु चिंता न कर, कुछ नहीं होगा, मामूली सांप है। इसका ज़हर अपने आप उतर जाता है, बैठ मैं तेरे हाथ को बांध देता हूं।’’ वह अभी अपने गले में लिपटे कपड़े को भोलाराम की हथेली के थोड़ा ऊपर कस कर बांध कर हटा ही था कि भोलाराम एक ओर लुढ़क चुका था। वह बेहोश हो चुका था। ‘‘अब क्या करूं भोलाराम, तुझे बचाना ही होगा। अच्छा यहंा से शोर मचाता हूं तो लोग सुन भी न पाएंगे, इसे अकेले यहां छोड़ता हूं तो पता नहीं वापिस आ पाऊं।’’
उसने एक दम से बेहोश भोला को अपने कंधों पर मुश्किल से उठाया, पैसों वाला झोला गले में लटकाया और नीचे झाड़ झगाडों को लांघता हुआ उतरने लगा, उतराई की वजह से वह थोड़ा आसानी से उतर पा रहा था। उसने थोड़ी खाली जगह उतरने के लिए अपनाई अभी लोगों को ढूंढना था उनसे बचना नहीं था। लगभग कुछ उतरता, कुछ देर रूकता, कभी भारी दोस्त को नीचे उतारता, फिर उठाता, अंधेरे को चीरता और फिर उसी रास्ते का अंदाजा लगाता जहाँ से मंदिर को रास्ता जाता है जहाँ उन्होंने कुछ पहर पहले चोरी की थी।
वह मन में बुदबुदाया,‘‘हे भगवान तूने अपना खेल खेल दिया। बस अब इसे बचा लेना और मेरा प्रपंच करने में साथ देना, दोस्त की जान बचाने के लिए अब मुझे कई झूठ बोलने हैं बस तुम ज़रा मदद कर देना। चौराहे पर खड़े होकर उसने फिर से आवाज लगाने की सोची पर चोरों को कौन बचाएगा और वह भी आधी रात को। वह कंधे पर अपने दोस्त को चौराहे से सड़क पर आ गया और सड़क से होता हुआ भोला राम को उठाए घिसटता हुआ मंदिर तक ले गया। मंदिर में पहुंच कर उसने बस पहले भोला को नीचे लिटाया। उसका मन किया कि वह चुराए हुए गहनों व रुपयों को मंदिर में वापिस रख देता हूँ पर फिर उसने सोचा कि भोला के ईलाज के लिए भी तो खूब पैसे चाहिए। वह चुराए हुए गहनों व रूपयों वालेे थैले को गले में लटकाए फिर जोर जोर से चिल्लाने लगा।
वह चिल्लाता रहा, बीच – बीच में उसने मंदिर की घंटी को जोर – जोर से बजाया, मंदिर के आस पास कुछ नहीं था एक गांव धार की एक ओर की ढलान पर कुछ कोह दूर था। बस ईश्वर ने सुन ली। वही लोग जो चोरों के पीछे भागे थे, फिर वापिस लौटते वक्त मंदिर में पहुंच चुके थे। क्या हुआ, कौन हो तुम! कोई चिल्लायां एक ओर पढ़ा बेहोश व्यक्ति को देख कर भाव बदले। सांप ने काट खाया हम तो श्रद्वालु है माता के दर्शनों को निकले हैं पैदल यात्रा पर मंदिर देखा तो कुछ पल पानी पीने रूक गए, सोचा पुजारी जाग रहा होगा, बस मंदिर के प्रागंण के बाहर ही इसे काट खाया। ये मरने वाला है काला नाग था भाई। लोग चोरों को भूल गए, कोई भीड़ में से बोला ,‘‘अरे जीप वाले श्यामू के घर को कोई दोड़ो, उसे बुलाओ, शुक्र्र है आज जीप उसके घर के बाहर ही है। 20 किलोमीटर दूर बड़ा अस्पताल है वहां पहुंच गया तो बच सकता है। प्रदेशी लग रहे हो क्या बिहारी हो या यू.पी. के। जी यू.पी. के हैं दूर उना में मजदूरी करते हैं, माता के दर्शनों की पैदल मन्नत की थी, बस माता ने पता नहीं कौन सी सजा दे दी। बचा लो मेरे भाई, हम गरीब हैं, जीप का किराया थोड़ा बहुत ही दे सकते हैं अरे किराए की छोड़ो, पहले ये बच तो जाए। थोड़ी देर मे जीप वाले के साथ गांव का एक नौजवान लड़का और वे दोनों जीप में बैठ चुके थे और बेहोश को एक ओर सुला दिया था। जीप में बैठा तेजनाथ मन ही मन सोचता जा रहा था, बस यार भोला अब अगर तू बच गया तो फिर कभी ये काम नहीं करेंगे, ईश्वर आज मुझे पक्का भरोसा हो गया कि चाहे कोई चोर हो, पर तुम अपनी दृष्टि सब पर रखते हो तुम नश्वर चीज़ों की भी रक्षा करते हो।
अस्पताल वालोें ने कुछ इजेक्शन देने के बाद उसकी हालत ठीक न होने पर भोला राम को बड़े अस्पताल चंडीगढ़ रैफर कर दिया था। तेजनाथ ने चुपचाप थैले में से रुपयों को गिनकर एंबुलैंस का किराया व दवाईयों का खर्च चुकाया और फिर बाकी गहनों को ठिकाने लगा कर ईश्वर का धन्यवाद किया। हे भगवान ये नश्वर चीजें कितनी उपयोगी हैं ये सिर्फ हम इंसान जानते हैं पर तेरा प्रपंच हर जगह चलता ही है। उन गांव वालों को तो कभी पता भी नहीं चलेगा कि उन्होंने अपने ही मंदिर के चोरों को ही बचाया है। भोला राम आखिर बच गया था। भोला राम और तेजनाथ फिर से पंजाब की ओर खेतों में मजदूरी ढूंढने निकल गए थे।

संदीप शर्मा
हिमाचल प्रदेश

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