कारण

प्रेम कारण से परे होता है

लेकिन कारण से परे हर कुछ

प्रेम नहीं होता

प्रेम की लाश ढ़ोने वाले बहुत हैं

इतने हैं कि दूर नहीं जाने देंगे

रिश्ते की मृत्यु से

या कि उसे जीने भी नहीं देंगे

अपनी अलग अलग कब्रों में

दुनिया में बहुतों ने किया है अवैध प्रेम

विवाहेतर  प्रेम

शायद उनकी चमड़ी का रंग

इस प्रेम की मर्यादा को ढंक देता है

हमारी चमड़ी के रंग के समाज में

जीवन का सबसे बड़ा किस्सा है

प्रेम का किस्सा

शादी और बच्चों वाला

कारण ढूंढ कर थोपे जाते हैं

हर विवाहेतर प्रेम पर

इंसानी आकृति

सौंदर्य के पैमानों की लड़ाई नहीं है

मोटापे, दुबलापे की लड़ाई

इंसानी आकृति के सौंदर्य की लड़ाई

नहीं है, कई बार यह वज़ूद की लड़ाई बन जाने वाली लड़ाई

कमाल कि

वह भी आकर ठहर जाती है

औरत ही की देह पर

और लगभग बच लेते हैं पुरुष इससे

लेकिन बड़ी आधारभूत सी

बच्चों की स्कूली लड़ाई सी

जबकि इसके परिणाम सबसे अधिक दिखते हैं

युवा अवस्था की राजनीति में

और यहीं से शुरू होती है स्त्री विमर्श की लड़ाई

कुछ उसकी अपनी राजनीति भी

यहीं से शुरू होती है

स्त्रियों की सत्ता की आतुरता भी

किस्म किस्म की

कुछ वैसी भी

जिसमें बेटे की माँ एक स्त्री

हुकुम चला लेती है

किसी और स्त्री पर

या बेटे की पत्नी एक स्त्री

बना लेती है ज़्यादा दबदबा

लेकिन आपसी उठा पटक

के समीकरण से दूर

लड़ाई तो यह है

कि औरत का वज़ूद

न उसकी आकृति हो

न सौंदर्य, न आकर्षण

उसे बनने दिया जाए

स्वामिनी खुद अपने व्यक्तित्व का

चोर पकड़ना

हर प्रेम की कुछ खुफ़िआ बातें होती हैं

खुफ़िआ तहखाने, कमरे होते हैं

खुफिया दरवाज़े जिनसे हो कर

लोग आते और चले जाते हैं

खुफ़िआ खिड़कियां होती हैं

जिनसे रौशनी में भी अँधेरे आते हैं

दाखिले की चिट्ठी में किसी का जन्मदिन होता है

और होती है सब कुछ उसी समय तत्काल बूझ लेने की ज़िम्मेदारी

ये ज़िम्मेदारी भी खुफ़िआ होती है

और इसलिए खतरनाक

ज़्यादा उलझनों से भरे होते हैं

कुछ प्रेम

अजब ग़ज़ब किस्म की शर्तों से

ये शर्तें भी खुफ़िआ होती हैं

ये वो नहीं होती

जो देख ली जाती हैं

समझ ली जाती हैं

एकबारगी, एकदम से

चल देता है प्रेम चुराकर आपका अक्स

आप नंगे पाँव भटकते हैं उस चोरी के पीछे

चुप्पी जो जाल बुनती है और धक्के कि अभी करो बात

एक कविता में कहने के बाद

एक ख़ास किस्म की चुप्पी की बात

एक कविता में कर लेने के बाद

उस चुप्पी की शिकायत

जो जाल बुनती है

बंद करती है दरवाज़े

औरतों की पढ़ाई के

हर बड़े अवसर के

ग़ायब कर देती है

उनके घर के रास्ते

 सरे रात

और फिर ग़ायब कर देती है

समूचा घर भी

एक डकार तक नहीं सुनाई देती

सब कुछ हजम कर जाने के बाद भी

उस चुप्पी में छिपे षड़यंत्र को

ढूंढना सागर के हाहाकार में

आसान नहीं

पर सम्भव है

करते ही बात इस सम्भावना की

और करते ही शिकायत चुप्पी की

लोगों का पिल पड़ना

रात बेरात कि अभी करो बात

फिर से करो बात

वह जो बनने जा रहा है

तुम्हारा नया रिश्ता

उसे ऐसे सम्भालो

वैसे सम्भालो

ताक़ीद ही नहीं

धकेल देना रिश्ते में

जैसे पानी या खायी में

या कि तेज़ चलो का धक्का

अर्ध रात्रि

जब आप पढ़ रहे हों फिर से

फोन के इनबॉक्स में सवाल

कि क्या भाषा नहीं आती तुम्हे?

या ये सब कुछ नहीं

खाम खाह केवल भाषा की राजनीति?

गवनों के रहस्योद्घाटन

जेल के दरवाज़ों पर अँटकी हुई हैं

बहुत सी राजनैतिक लड़ाइयां

और वो नहीं लड़ी जा रही

फाइलों में गवनों के रहस्योद्घाटन से

पत्रकार भी कहाँ देख रहे हैं फाइल?

फाइलों को लेकर

लाइब्रेरी इंचार्ज चल रहे हैं

लड़किओं के पीछे

उनका किसी लड़के से मिलना

सबसे बड़ी खबर है

यह विदेश में भारतीय समय का

कृत्रिम आयात नहीं

इमीग्रेशन की देशी राजनीति है

औरत को न आज़ाद आवाज़

न आर्थिक स्वतंत्रता देने की साजिश

आख़िर नहीं ही लेने दिया उसे

सबने मिलकर

काग़ज़ का वह टुकड़ा

जिससे ख़रीद सकती घर वह

होकर पति से अलग विदेशी ज़मीन पर

और लौटने पर देश

शाम सुबह

खींची जा रही है

राज्य और राजधानी की सीमा

उसी के दरवाज़े पर

आगे पीछे की ज़मीन

जितना घेरा जाता था

सवालों से उसे

उतना वह पीछे लौटती थी

उस परिचित ज़मीन पर

जो कभी उसकी थी

जो छीन ली गयी थी

इस तरह

एक छीनी हुई ज़मीन

बनती जाती थी

सम्पूर्ण परिचय उसका

और दरअसल

यह एक विकट स्थिति होती है

चोरी के एक किस्से का

बन जाना आपका सम्पूर्ण परिचय

बड़ा लम्बा देना होता है

परिचय फिर

और गुज़रना होता है

भूमि अधिग्रहण की सम्पूर्ण पीड़ा से

मानो अभी अभी आप जहाँ हैं

वह होने की क्या जगह हुई?

और जितना घेरा जाता है

सवालों से आपको

उतनी बाधित होती है

आगे की राह

भले ही, सारे सवाल

आगे भेजने के नाम पर किये गए हों

पंखुरी सिन्हा

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