न्यू मीडिया का मतलब मीडिया के क्षेत्र में कुछ नयापन से है…. इसमें प्रतिदिन कुछ न कुछ जुड़ता ही चला जा रहा है.. अगर थोड़ा पीछे मुड़ कर देखे तो रेडिया और टेलीविजन को न्यू मीडिया कहा जाता था… लेकिन तकनीक में विकास होता गया और न्यू मीडिया का स्वरूप भी बदलता चला गया… और आज देखते ही देखते हमारे पास न्यू मीडिया के रुप में तमाम सोशल नेटवर्क जैसे फेसबुक, ट्विटर, ब्लॉग, विक्किस, टैक्सट मैसेजिंग, ई-मेल मौजूद है जिसके माध्यम से लोग संवाद स्थापित करते हैं…
पत्रकारिता जगत डॉट वर्डप्रेस डॉट कॉम की माने तो वेब मीडिया ही न्यू मीडिया है… जो एक कंपोजिट मीडिया है… जहां संपूर्ण तत्काल अभिव्यक्ति संभव है, जहां एक शीर्षक अथवा विषय पर उपलब्ध सभी अभिव्यक्तियों की एक साथ जानकारी प्राप्त करना संभव है… जहां किसी अभिव्यक्ति पर तत्काल प्रतिक्रिया देना ही संभव नहीं… बल्कि उस अभिव्यक्ति को उस पर प्राप्त सभी प्रतिक्रियाओं के साथ एक जगह साथ-साथ देख पाना भी संभव है…वहीं पहली वेब पत्रिका भारत दर्शन को शुरु करने वाले न्यूजीलैंड के अप्रवासी भारतीय रोहित हैप्पी का कहना है कि तो न्यू मीडिया संचार का वह संवादात्मक स्वरूप है जिसमें इंटरनेट का प्रयोग करते हुए हम पारस्परिक संवाद स्थापित करते हैं…
न्यू मीडिया को समाज का आईना भी कह सकते है… क्यूकिं इसमें सबकी सहभागिता होती है.. वहीं पहले के समाचार पत्रों, टीवी और रेडियों की बात करें तो इनमें पाठक, दर्शक और श्रोताओं की सहभागिता नहीं थी… पाठक, दर्शक और श्रोतागण डाक के माध्यम से अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते थे… जिसे दफ्तर पहुंचते पहुंचते ही काफी समय निकल जाता था… अगर डाक ऑफिस पहुंचता भी था तो छटाई के दौरान कहीं न कहीं दब के रह जाता था… इसी के साथ उस व्यक्ति की प्रतिक्रिया भी दब जाती थी…. लेकिन आज न्यू मीडिया पर प्रसारित पर प्रसारित सामग्री ऑडियो-वीडियो के रूप में हो या टैक्स्ट पर आधारित हो पाठक, दर्शक और श्रोताओं को अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करने की सुविधा होती है… न्यू मीडिया का विस्तार इस कदर हुई कि हर दूसरे ही पल पहले पल की खबर इतिहास बन रही है… न्यू मीडिया का सबसे खासा असर 2014 के लोकसभा चुनाव में देखा गया… वर्तमान की सत्तारुढ़ पार्टी ने इस न्यू मीडिया की महत्ता को पहचाना और इसका भरपूर फायदा उठाया… इनकमिंग कॉल, टैक्स्ट मैसेजिंग, ई-मेल, फेसबुक और अन्य वेबसाइट के माध्यम से प्रचार कर जनता के साथ खुद को जोड़ा… स्लोगन के रूप में वादे, मेनिफेस्टो, विपक्षी पार्टियों पर हमला कर जनता का विश्वास जितने में कामयाब हुए… जो दिखता है वहीं बिकता है को केन्द्र बिंदु में रखते हुए राजनीतिक दल न्यू मीडिया के माध्यम से हर प्लेटफॉम पर दिखने की कोशिश में लगे रहे… परिणामस्वरूप केंद्र में बीजेपी और दिल्ली में आम आदमी पार्टी को आपार जनसमर्थन मिला… इस पूरे प्रकरण में न्यू मीडिया ने अहम भूमिका निभाई है….
सिक्के के दो पहलू होते है अगर न्यू मीडिया ने लोगों अपनी बात रखने का प्लेटफार्म दिया है तो वहीं दुसरी ओर इसकी प्रमाणिकता भी सवालों के घेरे में है… जैसे हर पीली चीज सोना नहीं होती वैसे ही न्यू मीडिया के माध्यम दी गयी जानकारी हमेशा सही नहीं होती… न्यू मीडिया के माध्यम से कुछ लोगों बहुत तेजी के साथ आमजन को गुमराह भी किया है… हर पल सोशल मीडिया में किसी व्यक्ति, धर्म, राजनैतिक दल, पत्रकार, बुद्धजीवी विशेष पर लेख लिखकर, तस्वीरों से, ग्राफिक्स से और वीडियो के जरिये हमला किया जा रहा है… तथ्यो को तोड़मडोड कर ऐसे पेश किया जाता है कि देखने वाला उसे ही सत्य मान लेता है… जिससे समाज के लोगों में एक गलत तरह का संदेश जाता है… कई बार ये ब्लॉग्स या न्यूज पोर्टल्स किसी व्यक्ति विशेष को टारगेट कर के समाचार को गढते बुनते है… आलम यह है कि अब इन समाचार की पुष्टि अब न्यूज चैनल अपने रिपोर्टर या सूत्रों के माध्यम से करवा रहे है… और विशेष तरह के शो लेकर आ रहे है जिसमें वायरल हो रहे संदेश का सच और झूठ का पोस्टमार्टम करते है… हाल ही में हुई एक घटना से ये समझा जा सकता है कि आज के समाज में न्यू मीडिया की क्या भूमिका है… एक न्यूज पोर्टल कश्मिर इंडिया डॉट कॉम ने कथित रुप अरूंधति रॉय के बयान को लेकर एक लेख प्रकाशित किया जिसमें कश्मीर को लेकर आपत्तिजनक बात कही गयी… इस न्यूज को पाकिस्तान के न्यूज चैनल जियो ने 16 मई को चलाया… जिसके बाद 17 मई को भारत के पोस्ट कार्ड न्यूज डॉट कॉम, सत्यविजयी डॉट कॉम, विराटहिंदू डॉट कॉम आदि न्यूज पोर्टल्स ने जियो टीवी का हवाला देते हुए अपने पोर्टल में प्रकाशित किया… जिसके बाद 21 मई को अभिनेता से सांसद बने परेश रावल ने अरुंधति रॉय पर टिप्पणी करते ट्वीट किया की सेना को जीप के आगे पत्थरबाजों की बजाय अरुंधतिरॉय को बांधना चाहिए था… इस ट्वीट को आगे बढ़ाते हुए संगीतकार अभिजीत ने कहा कि ना सिर्फ बांधना चाहिए बल्कि अरुंधति रॉय को गोली देनी चाहिए… पाकिस्तानी चैनल को स्त्रोत रखते हुए अमेरिका की फेयर ऑब्ज्र्वर साइट में मयंक सिंह ने अरुंधती रॉय को लेकर लेख लिखा कि क्या क्या कश्मीर के बारे में अरुंधति रॉय ने कहा… जिसके बाद भारत में प्रतिस्थित अंग्रेजी साइट न्यूज लांड्री ने मयंक सिंह के लेख का हवाला देते हुए अपने पॉर्टल में लेख प्रकाशित किया… जो कि टीवी चैनलों के लिए बहस का मुद्दा बन गया था… भारत में इंडिया टुडे ग्रुप के रिपोर्टर ने अरुंधति रॉय से इस बयान के बारे में पूछा जिसके बाद पता चला कि रॉय ने ऐसा कुछ बयान कश्मीर को लेकर दिया ही नही है ना ही किसी चैनल या पोर्टल को साक्षात्कार दिया है… जिसके बाद मयंक सिंह ने माफी मांगी और फेयर ऑब्ज्वर साइट ने माफी मांगते हुए वो लेख हटा लिया.. इसी प्रकार से न्यूज लांड्री ने भी माफी मांगते हुए मयंक सिंह का लेख अपनी साइट से हटा लिया… कश्मीर की साइट पर एक फेक खबर ने भारतीय, अमेरिकी पोर्टल के साथ साथ पाकिस्तानी चैनल और भारतीय चैनल में भी जगह बना ली…इतना ही नहीं सत्यता जाने बिना हे राजनेता और गायक भी बयानबाजी करते हुए इसमें कूद पड़े… ऐसी दिन भर में मैसेज, ईमेल फेसबुक, ट्विटर इंस्टा और वॉट्सएप के माध्यम से न जाने कितने ही गलत तथ्यों के साथ संदेशो को किसी विशेष मंशा से न्यू मीडिया के माध्यम से एक साथ कम समय में फैलाया जाता है..
न्यू मीडिया ने मीडिया जगत में क्रांति ला दी है यह कहना गलत नहीं होगा… हर सैकेंड में आमजन तक खबर पहुंच रही है… कम्प्यूटर या फोन में इंटरनेट के माध्यम से समाचार चैनल, रेडियो और अखबार को एक ही प्लेटफार्म पर देख सुन और पढ सकते है… लेकिन पढने सुनने और देखने के बाद यह तय करना होगा की इस खबर में सत्यता कितनी है… या यह किसी को विशेष को केंद्र में रखकर गलत मंसूबों के साथ इसे आमजन को पढ़ाकर, दिखा कर आमलोगों के दिमाग पर हावी किया जा रहा है…

 

दीपक झा

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